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ARVIND KUMAR KASHYAP
सुमंत्र राज्य से बाहर वन के किनारे उन्हें छोड़कर वापस लौटने को तैयार नहीं थे।राम ने समझा-बुझाकर मंत्री सुमंत्र को वापस भेजा। राम - लक्ष्मण और सीता पैदल चलते हुए गंगा के किनारे पहुंचे जहां उनकी केवट से भेंट हुई। राम ने केवट से गंगा पार कराने के लिए कहा। परन्तु केवट ने रामजी द्वारा अहिल्या उद्धार की बात सुन रखा था।वह हाथ जोड़कर राम से कहा -" प्रभु! मैं आपको गंगा पार अवश्य उतार दूंगा परन्तु पहले आप मुझे अपने चरण पखार लेने दीजिए।आपके चरणों के स्पर्श से पत्थर की अहिल्या, नारी रूप धारण कर स्वर्ग को चलीं गईं थीं।अगर आपके चरण स्पर्श से मेरी यह नौका भी स्वर्ग सिधार गई तो मैं अपने बाल - बच्चों का पेट कैसे पालूंगा ? केवट की भक्ति और प्रेम देखकर राम मुस्कुराए। उन्होंने केवट की अपने चरण पखारने की अनुमति दे दी। केवट ने बड़े प्रेम से गंगा जल से राम - लक्ष्मण और सीता के चरण धोए और फिर उन्हें गंगा पार उतार दिया पर उतराई नहीं ली। उसने श्री राम प्रभु से आग्रह की -" आप तो सबसे बड़े पार-करैया हो, जो भवसागर से पार उतारते हो प्रभु , मुझे भी बिना उतराई मांगें पार उतार देना प्रभु ।" ये कहते हुए केवट फुट - फुटकर रो पड़ा। रामजी ने उसे गले लगा लिया और उससे कहा कि वह चिन्ता ना करे। ©ARVIND KUMAR KASHYAP श्री राम प्रभु का केवट से भेंट
Singer Radheshyam
जिंदगी के सफ़र में चलते चलते न जाने कितने मोड़ आते हैं!! लेकिन जब बात आती है अपनों को छोड़कर जाने की तो आंखो में आंसू आ जाते हैं ©Singer Radheshyam शायर राधेश्याम केवट
Sukhdev
केवट संग प्रसंग केवट! हो भैया मेरे ये, कैसे छेड़ रहे तुम तान? कहते हो श्रीराम प्रभु से, मिले हो तुम श्रीमान। ये बातें तुम्हरी तो हमरे, छील रहीं बस कान। मानों सूखे रेत में कोई, डाल रहा हो धान। कहाँ तुम्हारी नाव ही है, है कहाँ तुम्हारा ज्ञान? सदियों गांजे डाले हो, तुम पुण्यों के थान? मैंने भी तो कितने कल्पों, है किया प्रभु का ध्यान। लेकिन दर्शन देने को तो, तुम्हें बनाये शान। व्यर्थ हमारी आवाज़ें है, व्यर्थ सभी हैं आन। सुखी वही जिनसे मिलने, प्रभु ही खुद लें ठान। कह दोगे क्या प्रभु से कि हम खूब रहे हैं छान? और निरन्तर गाते उनके, स्वागत के सब गान। प्रभु ने हमको निज दर्शन का, नहीं दिया जो दान। शपथ हमारे कुल की है फिर, त्याग देंगे सब जान। ©Sukhdev केवट से complaint.
Vikas Sharma Shivaaya'
जाता है सो जाण दे-तेरी दसा न जाइ। खेवटिया की नांव ज्यूं-घने मिलेंगे आइ। जो जाता है उसे जाने दो-तुम अपनी स्थिति को, दशा को न जाने दो,यदि तुम अपने स्वरूप में बने रहे तो केवट की नाव की तरह अनेक व्यक्ति आकर तुमसे मिलेंगे ! 🙏 बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' केवट की नाव