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Yakshita Jain
बढ़ रही है दहेज़ की प्रथा रूढ़िवादी सोच की है ये कथा जलाया जा रहा है लड़कियों को ऐसे लोगो को ज़रा पकड़िये तो कंगाल हो गए लड़की के माँ -बाप फिर भी खत्म नहीं हुई दहेज़ की आग रुपये ,गहने ,गाड़ियां देकर क्या पाये लड़की के माँ-बाप उन्होंने भेज दी लड़की की लाश जीवन से हो गए हताश बढ़ता जा रहा है दहेज़ का लोभ एक से नहीं मिला ,तो दूसरे से ले रहे भोग डालो ऐसे लोगो को जेल मे जो रहे दहेज़ के महल मे तभी कहलायेगा भारत सोने की चिड़ियाँ जिसमे बसती थी खुशिया ही खुशिया my 8 class poem on dowry
Ñimra writes
"Nature" Nature is might Nature is strong Nature is beauty Natire is moody Nature is smart Nature is blue Nature is green Nature is true Nature is you Nature is me Nature will for ever be free ©Nimra writes #Nature #English poem for kids "Nature"
RaJ
घर के आंगन की तुलसी सी कुम्हार के मिट्टी की कलशी सी जो बनती है,पकती है कहीं और, और किसी और को सौंपी जाती हैं. धान के नाजुक छोटे छोटे पौधों सी जो जमती है,खिलती है कहीं और और कहीं और को रोपी जाती है. वो एक बेटी है जो एक जन्म में दो जन्म को जी जाती है, वो एक बेटी है जो "ठीक हूं" कह के एक एक आंसू को पी जाती हैं. बचपन में चव्वनियों में खुश रहने वाली, सिंपल ड्रेस में भी परियों सी दिखने वाली रस्मों को निबाह कर दूर चली जाती है खुद तो रोती ही है,हमें भी रुलाती है. वो एक बेटी है जो हर रुप में,हर किरदार में पूरी तरह ढल जाती हैं. वो एक बेटी है जो एक जन्म में दो जन्म को जी जाती है, वो एक बेटी है जो "ठीक हूं" कह के एक एक आंसू को पी जाती हैं. एक बेटी के जन्मने से एक पिता जन्मता है, बेटी के लिए पिता का स्नेह और मां की ममता है. कुदरत से मिलने वाली उपहार है बेटियां, संसार इनसे है,खुद में संसार है बेटियां. वो एक बेटी है जो अपने दुआओं में दो परिवारों की खुशी चाहती है. वो एक बेटी है जो एक जन्म में दो जन्म को जी जाती है, वो एक बेटी है जो "ठीक हूं" कह के एक एक आंसू को पी जाती हैं. उड़ती तितलियों के रंग-बिरंगी पंखों सी, पवित्र ध्वनि जैसे किसी यज्ञ के शंखों की. बेटी होती है जैसी वैसा कोई नहीं, बेटियों के जैसे यहां बेटा कोई नहीं. वो एक बेटी है जो अपने साथ पूरा बागवान महकाती है. www aapkisafalta.com वो एक बेटी है जो एक जन्म में दो जन्म को जी जाती है, वो एक बेटी है जो "ठीक हूं" कह के एक एक आंसू को पी जाती हैं. जिसके पसंद की चीजें मेज पे लगी है, जिसके सामानों से आलमारी भरी पड़ी है बाप की बूढ़ी आंखों का सहारा अब बेटी है, मां बाप के जीवन का उजियारा अब बेटी है, वो एक बेटी है जो बेटों से ज्यादा सुख दुख में साथ निभाती है. वो एक बेटी है जो एक जन्म में दो जन्म को जी जाती है, वो एक बेटी है जो "ठीक हूं" कह के एक एक आंसू को पी जाती हैं. poem on daughter #3
RaJ
एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। वर्षा ऋतु आई जब उसपे पानी बरस गया। पानी पाकर अंकुरित हुआ, धीरे धीरे जड़ें बढ़ाई धीरे धीरे चढ़ी ऊंचाई. फिर नन्हा हरा पौधा बनके धरती पे उभर गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। वायुमंडल से हवाएं सोखकर, मिट्टी से थोड़ी नमी चुराकर। धीरे धीरे बढ़ता रहा अपना पोषण करता रहा। कभी आई तेज हवाएं उसके उसको बहुत झकझोरा, उसके आसमान छूने की उम्मीदों को आंधी पानी ने भी रोका। मौसम का मार सहता गया, और मजबूत बनता गया। कभी अनचाहे में इंसानों ने भी क्षति किया कभी मवेशी उसके पत्ते खाते रहें। सब कुछ झेलकर वो एक दिन एक विशाल पेड़ बन गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। आज वह इंसानों को लकड़ियां और फल देता है, आज वह मवेशियों को छाया और चिड़ियों को घर देता है। आज वह इस वातावरण का हिस्सा बन गया है, आज वह सबके लिए अच्छा बन गया है। कठिनाइयों में डटे रहने से जीवन उसका संवर गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। www aapkisafalta.com सुनो भाईयो! सहते रहना,डटे रहना और आगे बढ़ते रहना सफलता का मंत्र यही है और ऊंचे चढ़ते रहना। आज तुम छोटे हो तो नजर नहीं आते हो, कल जब बड़े हो जाओगे,हर कोई नजर उठा के देखेगा, जब काम आने लगेगा दूसरों के तब तुम्हारी पूछ बढ़ेगी ,हर कोई सर आंखों पे रखेगा। जब एक अवचेतन बीज अस्तित्व पा सकता है, तुम्हारे पास तो चेतना है,सोचो तुम क्या कर सकते हो, अगर तुम्हे इंतजार है कोई मसीहा आएगा, जो तुम्हारे अंदर बैठा है,क्यों उसे तुम बाहर ढूंढ़ते हो? एक एक सेकंड,एक एक मिनट कर के कितना साल गुजर गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। poem on tree #3
RaJ
एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। वर्षा ऋतु आई जब उसपे पानी बरस गया। पानी पाकर अंकुरित हुआ, धीरे धीरे जड़ें बढ़ाई धीरे धीरे चढ़ी ऊंचाई. फिर नन्हा हरा पौधा बनके धरती पे उभर गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। वायुमंडल से हवाएं सोखकर, मिट्टी से थोड़ी नमी चुराकर। धीरे धीरे बढ़ता रहा अपना पोषण करता रहा। कभी आई तेज हवाएं उसके उसको बहुत झकझोरा, उसके आसमान छूने की उम्मीदों को आंधी पानी ने भी रोका। मौसम का मार सहता गया, और मजबूत बनता गया। कभी अनचाहे में इंसानों ने भी क्षति किया कभी मवेशी उसके पत्ते खाते रहें। सब कुछ झेलकर वो एक दिन एक विशाल पेड़ बन गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। आज वह इंसानों को लकड़ियां और फल देता है, आज वह मवेशियों को छाया और चिड़ियों को घर देता है। आज वह इस वातावरण का हिस्सा बन गया है, आज वह सबके लिए अच्छा बन गया है। कठिनाइयों में डटे रहने से जीवन उसका संवर गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। सुनो भाईयो! सहते रहना,डटे रहना और आगे बढ़ते रहना सफलता का मंत्र यही है और ऊंचे चढ़ते रहना। आज तुम छोटे हो तो नजर नहीं आते हो, कल जब बड़े हो जाओगे,हर कोई नजर उठा के देखेगा, जब काम आने लगेगा दूसरों के तब तुम्हारी पूछ बढ़ेगी ,हर कोई सर आंखों पे रखेगा। www.aapkisafalta.com जब एक अवचेतन बीज अस्तित्व पा सकता है, तुम्हारे पास तो चेतना है,सोचो तुम क्या कर सकते हो, अगर तुम्हे इंतजार है कोई मसीहा आएगा, जो तुम्हारे अंदर बैठा है,क्यों उसे तुम बाहर ढूंढ़ते हो? एक एक सेकंड,एक एक मिनट कर के कितना साल गुजर गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। poem on tree #3
Sudev Majumdar
This is a poem for class nursery
Suyash Kamble
संभल जाओ ऐ दुनिया वालो वसुंधरा पे करो घातक प्रहार नही ! रब करता आगाह हर पल प्रकृति पर करो घोर अत्यचार नही !! लगा बारूद पहाड़, पर्वत उड़ाए स्थल रमणीय सघन रहा नही ! खोद रहा खुद इंसान कब्र अपनी जैसे जीवन की अब परवाह नही !! लुप्त हुए अब झील और झरने वन्यजीवो को मिला मुकाम नही ! मिटा रहा खुद जीवन के अवयव धरा पर बचा जीव का आधार नहीं !! ©Suyash Kamble My Poem On Nature #coldmornings