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poonam atrey
Village Life मर्यादा गर मानव तोड़े , होता पतन मानवता का, यदि तोड़ दे प्रकृति तो , होता हनन सुंदरता का, भूल जाये गर अग्निदेव , तो बचे राख बर्बादी की, टूट जाये जनसँख्या चक्र,तो थाह नही आबादी की, तय कर रखी है क़ुदरत ने ,मर्यादा हर एक शय की, मर्यादित हो आचार विचार ,यही है पूंजी जीवन की, सिंधु तोड़ दे मर्यादा , तो जल प्रलय आ जायेगी, मर्यादित है पर्यावरण गर,ये श्वास तभी तो आएगी, हवा बहे यदि मर्यादा में ,शीतल कर दे तन मन को, टूटे जिस दिन मर्यादा ,ले जाये उड़ा हर गुलशन को, शुद्ध आचरण ,नीति नियम ,यही खज़ाना जीवन का, हर फूल महकता रहे सदा, धरती माँ के आँगन का।। -पूनम आत्रेय ©poonam atrey #मर्यादा #पूनमकीकलमसे #नोजोटोराइटर्स Niaz (Harf) Neha verma Gyanendra Kukku Pandey honey khattri अदनासा- Sita Prasad Urmeela Raikwar (par
poonam atrey
White आज खोला जो सन्दूक ,बिखरी धुँधली यादों का, एक खत लिपटा था उसमें ,तेरे अधूरे वादों का, धुँधलाए थे अल्फ़ाज़ उसके,मिट गई स्याही थी, फ़िर भी कई रँग लिए , तेरी याद चली आई थी, झाड़ पोछ कर खोला जो ,यादों के पिटारे को, नही रोक पाए हम ,अश्कों के बहते धारो को, कुछ हिस्सा उस खत का , आज भी कोरा था, लिख दूँ कुछ इसमें नए किस्से , मैंने क़लम को झकझोरा था । -पूनम आत्रेय ©poonam atrey #यादों_के_पन्नों_पर #पूनमकीकलमसे #नोजोटोराइटर्स kasim ji sana naaz Sita Prasad Urmeela Raikwar (parihar) Ishika Sita Prasad kasim ji Mahi
Kajal Singh [ ज़िंदगी ]
INDIA CORE NEWS
Poonam Pathak Badaun
Santosh Narwar Aligarh
White तेरा बड़ा नाम है मेरे शहर में और मैं गुमनाम हूं अपने ही शहर में चाहने वाले हैं बहुत तुझे हर शहर में क्या कोई खत तेरा मेरे नाम से आयेगा मेरे शहर में ©Santosh Narwar Aligarh #City Anshu writer Satyajeet Roy MohiTRocK F44 (Musafir) Ashutosh Mishra Sethi Ji 0 miss.Riyarajput FAKIR SAAB(ek fakir) •~• Sarfaraj idr
INDIA CORE NEWS
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
शेर:- नशे की लत उसे ऐसी लगी यारों । जैसे उसको भी मर जाने की जल्दी थी ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR शेर:- नशे की लत उसे ऐसी लगी यारों । जैसे उसको भी मर जाने की जल्दी थी ।। महेन्द्र सिंह प्रखर
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
White ग़ज़ल :- वो आती लौट पर जाने की जल्दी थी । पुकारो मत उधर जाने की जल्दी थी ।।१ छुपा लेता खुशी सारी सभी से मैं । करूँ क्या आँख भर जाने की जल्दी थी ।।२ हटे कैसे नज़र मेरी हँसी रुख से । जिसे अब देख तर जाने की जल्दी थी ।।३ न था अपना कोई उसका मगर फिर भी । उसे हर रोज घर जाने की जल्दी थी ।।४ सँवरना देखकर तेरा मुझे लगता । तुझे दिल में उतर जाने की जल्दी थी ।।५ बताती हार है अब उन महाशय की । उन्हें भी तो मुकर जाने की जल्दी थी ।।६ नशे की लत उसे ऐसी लगी यारों । जैसे उसको भी मर जाने की जल्दी थी ।।७ सही से खिल नहीं पाये सुमन डाली । जमीं पे जो बिखर जाने की जल्दी थी ।।८ लगाये आज हल्दी चंदन वो बैठे । न जाने क्यों निखर जाने की जल्दी थी ।।९ किये सब धाम के दर्शन प्रखर ऐसे । खब़र किसको निकर जाने की जल्दी थी ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- वो आती लौट पर जाने की जल्दी थी । पुकारो मत उधर जाने की जल्दी थी ।।१ छुपा लेता खुशी सारी सभी से मैं । करूँ क्या आँख भर जाने की जल्दी थ