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Anupama Jha
बल्लीमारान वहीं है, पर रहता अब कोई ग़ालिब नहीं बेनज़ीर है वो, उसके जैसा कोई कातिब नहीं... #ghalib #बल्लीमारान #yqdidi
Anupama Jha
ग़ालिब की गलियाँ ,अब नही गाती नज्म और शेर बल्लीमारन की गलियाँ बन के रह गयी है बस यादोँ का ढेर #ग़ालिब#यादें#बल्लीमारान#गालियाँ #YQdidi
R Rajkumar Kesharvani
मित्रो अजीत की शादी होनी चाहिए कि नही होनी चाहिए अजीत को दुल्हन लानी चाहिए कि नही लानी चाहिए #अजीत_की_दुल्हन #कंल हम बात करेंगे अपने मित्र अजीत के बारे में और उनके किस्सों को साझा करेंगे #ajeetkesharwani #बल्लीवाले
Sangeeta Patidar
मतलब समझते अगर शब्दों की तकार बच जाती, बेवजह आती-जाती ख़यालों की गुहार बच जाती। मानते अपने जैसा ही औरों की ज़िन्दगी का मोल, डूबते-डूबते किसी के साँसों की कनार बच जाती। अगर कुछ मोल-भाव मुखिया कर लेता सलीके से, भले कुछ लोग गिर जाते, मगर सरकार बच जाती। सह लेते कुछ बे-सिर-पैर के इल्ज़ामात यूँही अगर, टूट के बिखरते तो सही, मगर ये बिगार बच जाती। देखे बिना क़ाबिलियत, करना था हमें बखान 'धुन', होती नहीं दूरियाँ, झाँकने के लिए दरार बच जाती। तकार- तकरार बिगार- बिगाड़ Rest Zone 'काव्य सृजन' "अगर कुछ मोल-भाव मुखिया कर लेता सलीके से, भले कुछ लोग गिर जाते, मगर सरकार बच जाती।" -बल्
Ravendra
ittu Sa
कहने को तो बहुत कुछ हैं, पर कोई सुने वाला तो मिले। हाल-ए-दिल ब्यान तो कर दें हम, पर कोई समझने वाला तो मिले। या होगा वही हाल मेरा , मिलेगा वही ग़म , जो अरसे पहले घूमता था , बल्ली बार के मोहल्ले में। _इत्तु सा ©Ittu Sa इत्तु सा पैग़ाम हाल-ए-दिल के नाम। कहने को तो बहुत कुछ हैं, पर कोई सुने वाला तो मिले। हाल-ए-दिल ब्यान तो कर दें पर कोई समझने वाला तो मिले। या
Deepak Mishra
चलो बाल निकाल लो खाल की, यों खाल निकाल लो बाल की, राम नाम की छुरी चलाय के, कर दो जय कन्हैया लाल की... ©Kalamgeer चलो बाल निकाल लो खाल की, यों खाल निकाल लो बाल की, राम नाम की छुरी चलाय के, कर दो जय कन्हैया लाल की... चाय लेलो चाय चाय चाय लेलो चाय ले लो
Abhishek Yadav
तुम सत्य खोजते फिरते हो, बाहर का कुछ भी पता नही, अंदर ही बैठे रहते हो, तुम साकार, जगत साकार, निराकार कुछ हो तो कहो, साकार बिना जाने ही प्यारे, निराकार बने तुम फिरते हो, बाहर का छप्पर उड़ता जाता, तुम भीतर की बल्ली पकड़े हो, बाहर उड़ता है तिनका तिनका, तुम भीतर भीतर रहते हो, घट खाली या भरा हुआ है, जल भीतर है या बाहर, तुम भीतर से नाटक करते, बाहर जाने से डरते हो, नदियाँ बहती ताल तलैया, सागर बहता है भीतर ही, तुम तो नदी हो बाहर वाले, खुद सागर के भ्रम में रहते हो, जबतक तुम कुछ सोच हो पाते, ब्रह्मांड अनेकों बन जाते हैं, तारों का तुमको पता नही कुछ, ब्रह्मांड समेटे फिरते हो, समझ सको तो बाहर समझो, भीतर तो सब नासमझी है, बाहर खाली हाथ तुम्हारे, भीतर से जकड़े रहते हो, अपने तल का पता नही कुछ, करते हो दूजे तल की बात, जिसका तल है उसे पता है, अंतरतल का नाटक करते हो, पहले बाहर सुनना सीखो, सीखो साकार, रूप सौंदर्य, जो कीड़ों के पदचाप हो सुनता, तुम उसकी बातें करते हो, निराकार देखा है तुमने, कृति साकार, प्रतिकृति निराकार, कृति का अता पता नही कुछ, प्रतिकृति में गूँगे रहते हो, साकार तुम्हारा भ्रम है प्यारे, पर निराकार तो विभ्रम है, पहले भ्रम, फिर विभ्रम के पार, पर तुम!असमंजस में रहते हो, तुम साकार, जीवन साकार, निराकार तो प्रियतम है, साकार बने गोता तुम मारो, क्यों असत्य में रहते हो? -✍️ अभिषेक यादव तुम सत्य खोजते फिरते हो, बाहर का कुछ भी पता नही, अंदर ही बैठे रहते हो, तुम साकार, जगत साकार, निराकार कुछ हो तो कहो, साकार बिना जाने ही प्यार