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दशरथ सिंह भुवाल

पावस ऋतु पर कविता

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Dheeraj Dhandore

सावन कविता #Unframed

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Er.Mahesh

# रक्षा बंधंबकी कविता# सावन महीना कविता

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Raginee Gupta

कविताबारिशसावनस्कूलकेदोस्त

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बचपन और बारिश न जाने वो बारिशें किस ओर मुड़ गई
जो बिना डराए भिगो दिया करती थी
अब तो भीगने से डर लगता है 
मन को समझाए बैठे है 
यूँ भीगना अच्छा नहीं #कविता#बारिश#सावन#स्कूलकेदोस्त

ऋतु गुलाटी ऋतंभरा

सावन पर

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Krishan Gopal Solanki

कविता ,सावन की रुत आई...

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रिमझिम-रिमझिम बादल बरसे पवन चले पुरवाई,
भारत का अभिनंदन करने सावन की रुत आई।

आसमान में काले बादल मस्तक तिलक लगाते हैं,
इंद्रधनुष के सातों रंग करके श्रृंगार सजाते हैं।
नदियाँ कल-कल साज़ बजाएँ ,हवा करे अगुवाई .
भारत का अभिनंदन..........

दादुर मोर पपीहा बोले ,झूमें रुत मतवाली,
पंचम स्वर में कोयल गाये बैठ आम की डाली।
बरखा रानी तीजों की ,अंजुली भरकर लाई ...
.भारत का अभिनंदन.........

वृक्षों की शाखाएँ झुक-झुक, नमन आठों पहर करें,
दिन भर उड़ें पतंग बहुरंगी ,रात को जुगनू सैर करें।
झूला झूलें मौज मनाएं,'गोपाल' करे कविताई ........

भारत का अभिनंदन करने सावन की रुत आई।

krishan Gopal solanki #कविता ,सावन की रुत आई...

Ajay Nema

कविताशायरीबारिशमानसूनसावन

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बारिश "बारिश न  हो सावन में
तो बदरा शरम से पानी
और हो जाये जो मूसलधार
तो दुनिया पानी पानी "


-अजय नेमा #कविता#शायरी#बारिश#मानसून#सावन

Lata Sharma सखी

सावन कविता कसूर दिल नासूर

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जब भी चलती है ये बरसाती हवाएं,
कहती हैं हमसे अब बादल बरस जाएं..
चला आता है झूमकर हर बरस सावन
उड़ा कर ले आती है ये वो सावन..
जो धरती भिगोए या आखों की कोर,
पर ले जाये दिल न जाने किस ओर...
कोई भी तो नहीं जो यादों में रहे मेरी,
फिर भी होती है तकिया गीली मेरी..
हाँ एक साया था जो बरस पहले छूट गया,
एक आईना था दिल, झटके से टूट गया।
अब तो दिल नहीं दिल की जगह,
रिस्ता हुआ बस इक नासूर है,
हां सावन की हवाओ इसे उघाड़ने में 
बस और बस तुम्हारा ही कसूर है।  

©सखी #सावन #कविता #कसूर #दिल #नासूर

राजीव भारती

#हरियाला सावन #कविता #राजीव भारती

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KrishnaSharma

कविता का शीर्षक बसंत ऋतु का आगमन #Morning #poem

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कविता का शीर्षक:- बसंत ऋतु का आगमन
लेखक:- कृष्णा शर्मा
 स्वरचित

पेड़ों पर कलियाँ फूट पड़ी मन सरसों सा लहराया है

 मेरे जीवन में एक बार फिर से बसंत यह आया है

 फूलों में रंग लगा भरने कोयल की कूक सुनाई दे

वह पवन बसंती है देखो मनवा को जो पुरवाई दे

 हरियाली खेतों में है आमों पर बौर लगा आने

देखो पलाश के फूलों को आकर्षित हैं करने वाले

मन बना बसंती झूम रहा क्या मस्त बहारें लाया है

 मेरे जीवन में एक बार फिर से बसंत ये आया है

हो गर बसंत जीवन में तो हर मौसम में खुशहाली हो

पतझड़ चाहे जीवन हो पर अंतर्मन में हरियाली हो

भंवरा बन कर के फूलों पर जीवन को यूं महका  जाऊं

फिर बना बसंती खुद को मैं सारे जग को बहका जाऊं

 एक बसंती पवन ने ही मेरे मन को महकाया है

 मेरे जीवन में एक बार फिर से बसंत यह आया है

इस फगवा और बसंती का जग में है मेल निराला सा

मदमस्त सभी को करता है मुझको कर दिया शिवाला सा

 सबके मन को ही भाता है देखो बसंत जब आता है

जीवन को रंग बिरंगा कर यह नई बहारें लाता है

इस एक अनोखी ऋतु ने ही सारे जग को महकाया है

 मेरे जीवन में एक बार फिर से बसंत यह आया है

 जय शारदे मां

©KrishnaSharma कविता का शीर्षक बसंत ऋतु का आगमन

#Morning
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