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अनिल कसेर "उजाला"
a-person-standing-on-a-beach-at-sunset *जिंदगी जीने की कला* ज़िंदगी जीने की आती जिसे भी कला है जीवन में उसका होता हरदम ही भला है वफ़ा जो करता यहाँ वो जाता नहीं कभी छला है दौलत के पीछे जो गया दिल में उसके नफरत पला है सबकी जो सोचे भला, जीवन कभी न उसको खला है अँधेरा दूर करने को 'उजाला' हमेशा ही तो जला है। ©अनिल कसेर "उजाला" जीने की कला
जीने की कला
read moreHimanshu Prajapati
हुनर हमने भी मोहब्बत का पाला है, रिश्ता टूटता जा रहा है सब का सब, कमबख़्त किस्मत तो किस्मत शकल भी पूरा कला है..! ©Himanshu Prajapati #newplace हुनर हमने भी मोहब्बत का पाला है, रिश्ता टूटता जा रहा है सब का सब, कमबख़्त किस्मत तो किस्मत शकल भी पूरा कला है..! #36gyan #hpstran
Knazimh
__अपने__ आँखे अब नहीं रोती, पुराना वक्त याद कर के। टूटे लहज़े से नाजिम, अब नहीं हकलाता है। बढ़ गया है आगें समय से वो जहां पहले कभी तुम थे। जितने अपने न थे उससे ज्यादा कही विरोधी, थी तो क़ामयाबी पास उसके । फिर भी असफलता के नारे थे कितना हताश बैठा हूँ , जहाँ मेरे अपने थे। जहाँ मेरे अपने थे।। ©Knazimh अपने.....!. . . #आत्मविश्वास * #आगे_बढ़ना * #चुनौतियाँ * #सफलता
अपने.....!. . . आत्मविश्वास * आगे_बढ़ना * चुनौतियाँ * सफलता
read moreBanarasi..
शब्द सृजन की सदी अनोखी अनदेखी कुछ अनजानी सी डगर, ढूंढ रहा वो अपनी सी सुनहरी सहर। व्यापक विरूपाक्ष का व्यवसाय सा ओझल, जिंदगी बिन सादगी हो रही बेरंग सी बोझल। नितदिन न्योतित निहायत से निर्मित, मानव मंचित मोह माया में हो मिश्रित। काल की कालिका से हो कलंकित, खग खोजे खोह ख़लिश मुक्त खोखलित। गमन गति गीत से हो गतिमय ग्रसित, घृणा घेर घूर घर घाल घड़ी घालित। चमक चेतन चैतन्य चिन्मय में चीर चिंतन, छटी छठा छोह छः छल छीछल की छनछन। जीवन जटिल जीभ जंबू जाल जल से जलना, झंकृत झांझ झांझर झंझट झपट झेल बना झरना। टूटी टहनी टोहे टकराव की टंकार टंकित टिटहरी, ठूंठ ठहर ठौर ठग ठनकती ठिगनी ठकुराई की ठुमरी। डाकिया डर डपटे डगरी डकैत डंठल डसे डुगडुगाई, ढूंढे ढोंगी ढपली ढोलक ढाबा ढकोसलायुक्त ढिठाई। तिल तिल तीर तोरण तकती तेज त्यागी की तरूणाई, थाम थाली थिरकी थकी थोड़ा थपकी से थम थर्राई। दाम दया दंड दमनकारी दृष्टिगोचर दानव द्राक्ष दूषिताई, धर्म ध्यान धर धीरज ध्येय धन धवन ध्वजा धाय धराई। पाहुन पाए पोल्हाए पिंजरा पवन पोषित प्रेम पाप पनपाय, फिरे फनी फेरत फूले फ़राक फर्क फर्ज फैल फ़नफ़नाय। बनारसी बहुल बहुसंख्यक बहुलता बैर बेचैनी बहाए, भोले भंवर में भयानक भयंकर भजन भोजन भरमाए। यज्ञ यति योनि याज्ञवल् युगान्तर योग योग्य यमनयान, रोग रहित रेवती रंक रंजन रंगोली रंगाई राग रसिकपान। लोभ लाभ ललित लक्ष्य लंका ललाट लाग लपेट लगाए, वजन वारि वाक्य विकास वांछनीय विशेषता की विधाए। संकल्प स्तोत्र से संबंधित स्थित समाधानयुक्त संभावनाएं, शीर्ष शिखर शोषित शिशिर शेखर शनि शेष शुभकामनाएं। षट् षड्यंत्री षट्भुजी षड्यंत्रकारी षचि षट्कर्मित, हिमाचल हिमखंड हेमंत हजार हमलावार हठ हर्षित। क्षय क्षत्रिय क्षीण क्षति क्षणभंगुर क्षितिज क्षतिधारी, त्रिकालदर्शी त्रिरत्न त्रिपाद त्रेता त्रिगुण त्रय त्रिशरारी। श्रमिक श्रृंखला श्रुतिनन्दन श्रवण श्रमिक श्रुतिशास्त्री, ज्ञाचक ज्ञानी ज्ञानमीमांसा ज्ञानप्रकाश ज्ञपित ज्ञानदात्री। अनोखी अनदेखी कुछ अनजानी सी डगर, ढूंढ रहा वो अपनी सी सुनहरी सहर। - लेखक: बनारसी ©Banarasi.. "अभिव्यक्ति की अनूठी कला - शब्दों की सदी में नई डगर की तलाश।" #शब्दसृजन #हिंदीकविता #हिंदी_साहित्य साहित्य #शब्दोंकाजादू #कवितासंग्रह #अभिव
"अभिव्यक्ति की अनूठी कला - शब्दों की सदी में नई डगर की तलाश।" #शब्दसृजन #हिंदीकविता #हिंदी_साहित्य साहित्य #शब्दोंकाजादू #कवितासंग्रह अभिव
read moreVijay Vidrohi
|| नकली बाबा|| घरबार की जिम्मेदारी निभाना, ना हो जिसके बस की बात। लेकर कर्जा भग जाते हैं, बच्चों को वे छोड़ अनाथ। बढ़ा के दाढ़ी- बाल छुपाते हैं वो अपनी पहचान। अनपढ़ अज्ञानी बाबा बन कर, देते मूर्खों को ज्ञान। कोई कत्ल का कोई रेप का, कोई चोरी का अपराधी आधे से ज्यादा की होती, सोच बहुत जातिवादी। सच्चे साधू संत कभी भी, छुआछूत नहीं करते ऊंच-नीच जो करते हैं, होते ढोंगी पाखंडवादी। क्यों पढ़ने नहीं देते दूसरी, जात को आखिर वेद पुराण किसने यह षड्यंत्र रचा, ब्राह्मण को मिला उच्च स्थान। पंडित पुजारी मठाधीश, ये ही बनते महामंडलेश्वर क्या यह भेदभाव करता है, कोई भगवन परमेश्वर। ©Vijay Vidrohi ||नकली_बाबा|| #gururavidas #कबीर #शैली #my #new #poetry #doha #qoutes Hinduism metaphysical poetry hindi poetry hindi poetry on life poetry
अदनासा-
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अदनासा-