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Santosh Verma
इश्क़ की राह में मैं अनजान था, मालूम नहीं कैसे कोई खींच रहा मेरा ध्यान था। ख्वाबों से सजाएं बैग ले चल पड़ा, छूट गया वो बस्ता मेरा,जिसमें रिश्तों से भरा सामान था ।। कैसे से कैसा हो गया, कैसा मेरा खानपान था,, निकल पड़ते हैं आंसू सोचकर, क्योंकि हर कोई मुझ पर कितना मेहरबान था!। ना किसी से ताल्लुक ,ना कोई जान पहचान था, बेखबर था जमाने से बस आराम ही आराम था।। उलझ पड़ा ना जाने किस कैदखाने से, डूब के निकल ना पाया इस मयखाने से। पता चल गया ये रोग लेना नहीं आसान था, पहुंचा दिया कहीं और नहीं , वो जगह शमशान था। भर अाई सबकी आंखें हस्र मेरा देखकर, झेल न सका गम मैं, शायद इश्क़ में नादान था।।। WRITTEN BY,(संतोष वर्मा)आजमगढ़ वाले खुद की ज़ुबानी.. मेरा हस्र..