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Deepak Pandey
"भैरव बाबा" -जिन्दगी मुहावरों जैसी- आ गया हूं ऐसे मोड़ पे लगता है उमर अब कांच नहीं, बोलता हूं डंके की चोट पे क्युकी सांच को होत आंच नही। बचपन मे सीखा मैंने जीवन जीना एक कला है, ईमान ही सबकुछ है धरती पे लालच बुरी बला है। बाटता रहता हूं मै प्रेम खुश रहता हूं सबके साथ, शान्त हो कर मै बात करू रहती मर्यादा अपने हाथ। उनसे बना कर रखता हूं मै इक छोटी सी दूरी, जिनके मुख में राम रहे और बगल में रहत है छुरी। मुश्किलों में कहीं फस ना जाऊ करता हूं इसपे गौर, उतना ही पैर पसारता हूं कि जितनी लंबी सौर। इसी लिए ये दोस्त मेरी खुद से और खुद की मुझसे खूब जमती है, कर्म मै करता रहता हूं क्युकी किस्मत खुद के बनाए बनती है। ✍️By Deepak Pandey "जिन्दगी मुहावरों जैसी" #message #story #kavita #कविता #कहानी #शायरी #किताब #poem #Poetry
Er. Mohit India
Shivani Goyal
Shankki Sharma
आप जिस दिन massage Pack करवाये और आपकी जान उसी दिन रूठ जाए 😄 आपने बस को कैंसल कर ट्रेन की टिकट कराई और फिर हड़बड़ी में वो ट्रेन छूट जाए 😁 आप पुरानी कुर्सी को तोड़ नई कुर्सी लाये और वो नई वाली कुर्सी बैठते ही टूट जाये 😞 तब होता है गरीबी में आटा गीला 😁😁 दैनिक जीवन में हम ऐसे अजब ग़ज़ब मुहावरे सुनते हैं मगर इन पर लिखना बहुत कम होता है। ऐसे रोचक मुहावरों पर लिखना कम रोचक न होगा। ग़रीबी में आटा
Rajnish Shrivastava
बरसो से चल रहा सिलसिला क्या करे अब किसी से गिला गरीबी मे होता आटा गीला तकदीर से मिला है यही सिला दैनिक जीवन में हम ऐसे अजब ग़ज़ब मुहावरे सुनते हैं मगर इन पर लिखना बहुत कम होता है। ऐसे रोचक मुहावरों पर लिखना कम रोचक न होगा। ग़रीबी में आटा
NEERAJ SIINGH
गरीबी में आटा गीला YQ पर भी बहुत होता है दिल की फिराक में ना जाने क्या क्या होता हैं दैनिक जीवन में हम ऐसे अजब ग़ज़ब मुहावरे सुनते हैं मगर इन पर लिखना बहुत कम होता है। ऐसे रोचक मुहावरों पर लिखना कम रोचक न होगा। ग़रीबी में आटा
Gumnaam
पर सौकत नवाबों के। दैनिक जीवन में हम ऐसे अजब ग़ज़ब मुहावरे सुनते हैं मगर इन पर लिखना बहुत कम होता है। ऐसे रोचक मुहावरों पर लिखना कम रोचक न होगा। ग़रीबी में आटा
vishnu prabhakar singh
विवेक से अर्थ का अनर्थ करते अंजान अंत तकअपनी सूझबूझ को दें सम्मान क्या बात परख ली हैआपाधापी तमाम अबअपरदन से दें निर्मलता भरा पैगाम स्वीकार हो स्वार्थ वो भी असंगत हराम संशोधन में पिछड़ रहा निजता बेलगाम क्यूँ तुम्हें अंदेशा नहीं अनिष्ट का उफान उत्पन्न कारक सुविधा भरी विधि विधान जब जैसा तब वैसा की पद्धति का धाम बहुतेरे अवसर में लगाया है सत्य विराम क्या बात मरते रहिये जीविका को थाम इस मनमोहकता के छांव को भी प्रणाम अर्थ के अनर्थ में सिर्फ मुहावरों का ही समावेश नहीं हुआ।यथावत रहने का कारण ढूंढें।। विवेक से अर्थ का अनर्थ करते अंजान अंत तकअपनी सूझबूझ को द
Nishh.
हिंदी दिवस हिंदी की कक्षा में बहुत कुछ सीखा था, सीखा था अक्षर ज्ञान और उन पर मात्रा लगाना। वर्णों को मिलाकर शब्द और शब्दों से वाक्य बनाना। शब्दार्थ भी किए याद, तब कहीं जाकर शुरू किया कठिन शब्दों को अपनाना। फिर सीखा शब्दों की संधि कराना। समझा समास फिर हमने, फिर देखा छंदों में काव्य का गुनगुनाना। काव्य पढ़-पढ़ कर समझा, अलंकारों का काव्य को सजाना। साथ ही गद्य के पाठों का पढ़ना व पढ़ाना। मुहावरों कहावतों से बातों को रोचक बनाना। इसी तरह बहुत कुछ सीखा गया, हिंदी की कक्षा में जाना। ए हिंदी तुझे बस इतना ही बताना, मातृभाषा हे तु हमारी, तुझे जितना भी जाना हमने कम जाना... हिंदी की कक्षा में बहुत कुछ सीखा था, सीखा था अक्षर ज्ञान और उन पर मात्रा लगाना। वर्णों को मिलाकर शब्द और शब्दों से वाक्य बनाना। शब्दार्थ भी