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Nikhat
चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना! जाग तुझको दूर जाना! अचल हिमगिरि के हॄदय में आज चाहे कम्प हो ले! या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले; आज पी आलोक को ड़ोले तिमिर की घोर छाया जाग या विद्युत शिखाओं में निठुर तूफान बोले! पर तुझे है नाश पथ पर चिन्ह अपने छोड़ आना! जाग तुझको दूर जाना! बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बंधन सजीले? पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले? विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन, क्या डुबो देंगे तुझे यह फूल दे दल ओस गीले? तू न अपनी छाँह को अपने लिये कारा बनाना! जाग तुझको दूर जाना! ©. #जाग_तुझको_दूर_जाना#छायावादी_कविता
siddharth vaidya
कमल कोश में विश्राम मिथ्या मृत्यु का अपमान है इस तुक्ष आकर्षण के लिए किस त्याग का अभिमान है सिद्धार्थ वैद्य #छायावाद की ओर
sweta kumari
'साँवरी हूँ मैं' ............... कृष्ण-सा रंग,कृष्ण के संग बावरी हूँ मैं, हाँ साँवरी हूँ मैं। घनानंद के प्रेम के पीर पर बलिहारी हूँ मैं, हाँ साँवरी हूँ मैं। र्दुबुद्धि से उत्पन्न उसके बीज का संहारकारी हूँ मैं, हाँ साँवरी हूँ मैं। कदंब की अनोखी डाली-सी चमत्कारी हूँ मैं, हाँ साँवरी हूँ मैं। प्रकृति की नैसर्गिक छटा-सी मनोहारी हूँ मैं, हाँ साँवरी हूँ मैं। संपूर्ण जगत में प्रेम की संचारी हूँ मैं, हाँ साँवरी हूँ मैं। मानव की मानवीयता का प्रतिहारी हूँ मैं, हाँ साँवरी हूँ मैं। श्वेता कुमारी विशुनपूर(गायत्री नगर),धनबाद झारखंड। ©sweta kumari छायावाद को स्पर्श करती कविता #one session
जगदीश्वर ' तश्नगी'
शशि- चांदनी -------- शशि किरणों में, मधुर गीत की राग,जैसे निर्झरिणी में नीर का अनुराग, अमा में चंद्र का विधान ,कृष्ण पक्ष में कला महान स्वबस बस कर बसु प्रेम जताए ,सुरपुर सी दुनिया बसाए। दुग्ध धवल सा रूप क्षण पाए ,रेशमी विभा में को कोई आए। रका में रजनीश मयुंखे , रजनी वासर जानाती। अवनि पर आकर रजत सी ,राज कन को आभा बनाती। अंबु नवीन सी वह धनी ,सभ्य जीवन जैसे सनी। रैन में चंद्र चांदनी,उजाला की रानी बनी। व्योम में मलयाज सस्मित हुआ , शशि चांदनी में सुधा भरा। चांदनी में जो अभिषेक किया ,सकल रूप शशि अमृत पिया। चारों तरफ़ आभा की लाली ,कृष्ण वस्तु पर लगे निराली। वह क्षणदा की दीप्ति साधनी ,बनी शशि की चांदनी। - जगदीश्वर कुशवाहा उत्कृष्ट भाषा शैली में "शशि- चांदनी" छायावाद की रचना की तरह with Ritisha Jain
HintsOfHeart.
"मधुर मधु-सौरभ जगत् को स्वप्न में बेसुध बनाता, वात विहगों के विपिन के गीत आता गुनगुनाता। मैं पथिक हूँ श्रांत, कोई पथ प्रदर्शक भी न मेरा, चाहता अब प्राण अलसित शून्य में लेना बसेरा।" ©HintsOfHeart. #महादेवी_वर्मा #जन्म_जयंती महादेवी वर्मा जी हिन्दी काव्य में छायावाद की एक प्रमुख स्तंभ थीं। जन्म: 26 मार्च 1907, फ़र्रुखाबाद, उत्तर प्रदे
ANMOL BHASKAR
Nishtha Rishi
तुम 'नीलकंठ' बन जाना मैं तुम्हारी 'राधा' बन जाउंगी अनंत प्रेम का प्रतीक बन इस जीवन के सफ़र को पूरा कर जाउंगी। #महादेवी_वर्मा #नीलकंठ #छायावाद #nishtharishi #lovequote ये नीलकंठ और राधा नाम महादेवी वर्मा के 'नीलकंठ' कहानी से ली गई है, इस कहानी में दो
i am Voiceofdehati
प्रसिद्ध छायावादी हिंदी कवि, कहानीकार ,लेखक व वर दे वीणा वादिनी वर दे प्रसिद्ध कविता के रचनाकार सूर्य कांत त्रिपाठी 'निराला' जी की जयंती पर उन्हें शत शत नमन् 🙏 प्रसिद्ध छायावादी हिंदी कवि, कहानीकार ,लेखक व वर दे वीणा वादिनी वर दे प्रसिद्ध कविता के रचनाकार सूर्य कांत त्रिपाठी 'निराला' जी की जयंती पर