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Shaarang Deepak
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल:- ज़िन्दगी की मुश्किलें वे ज़िन्दगी में रह गई । मौत आकर देख लो सबसे यही तो कह गई ।। प्रेम करना है अगर तो राम का बस नाम लो । इस जहाँ की प्रीति तो अब आसुओं में बह गई ।। कल तलक जो थी मदद अब तो वही व्यापार है । स्वार्थ के इस दौर में वो भी दीवारें ढह गई ।। देखता हूँ मैं यहाँ बूढ़े कभी माँ बाप जो । मान लेता देवियाँ औलाद का दुख सह गई ।। दिख रहे थे सब मुझे दुर्बल इसी संसार में । एक ये दुर्लभ प्रखर था देख लो वो पह गई ।। ३०/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल:- ज़िन्दगी की मुश्किलें वे ज़िन्दगी में रह गई । मौत आकर देख लो सबसे यही तो कह गई ।। प्रेम करना है अगर तो राम का बस नाम लो । इस जहाँ की प
राजकारण
शाळकरी मुलीस लग्नाचे आमिष दाखवून अश्लील वर्तन ©राजकारण सोलापूर : शाळकरी मुलीला वाटेत गाठून तिच्याशी लग्नाचे आमिष दाखवून लज्जास्पद वर्तन केले. ‘तु मला खूप आवडेस ’ म्हणून व्हिडिओ कॉल, चॅटिंगसाठी मो
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
कोलाहल :- गीत अंतर्मन के कोलाहल को , भाप न कोई पायेगा । घुट-घुट कर मर जायेगा तू, राह न जो अब पायेगा ।। अंतर्मन के कोलाहल को .... जीवन जीना सरल नहीं है , आती इसमें है बाधा । मूर्ख नही बन हे मानव तू , चला शरण जा अब राधा ।। जप कर उनकी माला तू भी , मुक्ति मार्ग को पायेगा । अंतर्मन के कोलाहल को.... तन मानव का जब भी लेकर , तू धरती पे आयेगा । फिर खुशियों की खातिर तू ही , अपने नियम बनायेगा ।। जिसकी माया में ही तू खुद , स्वयं उलझता जायेगा । अंतर्मन के कोलाहल को....... भाग-भाग कर सुख के साधन , दुख देकर जो लाता है ।। लेकिन पर भर सुख का अनुभव , कभी नहीं कर पाता है ।। अन्त समय में देख वही फिर , रह रह के पछतायेगा अन्तर्मन के कोलाहल को ..... रूप बदल कर मानव ही सुन , इस धरती पे आयेगा । लेकिन अपनी ही करनी को , ज्ञात न वह रख पायेगा ।। माया रूपी इस जीवन का , चाल नही रुक पायेगा । अन्तर्मन के कोलाहल को ... अंतर्मन के कोलाहल को , भाप न कोई पायेगा । घुट-घुट कर मर जायेगा तू, राह न जो अब पायेगा ।। ३०/०१/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कोलाहल :- गीत अंतर्मन के कोलाहल को , भाप न कोई पायेगा । घुट-घुट कर मर जायेगा तू, राह न जो अब पायेगा ।। अंतर्मन के कोलाहल को ....
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- हाल मेरा वो घर से पूछते हैं । पास बैठे पर सहर से पूछते हैं ।।१ छोड़कर क्यों चले गये हैं वो । आज उनकी गुज़र से पूछते हैं ।।२ और भी दर्द सह सकेगा तू आज अपने जिग़र से पूछते है ।।३ किस तरह दिन बिता दिया तूने । आज वो भी उधर से पूछते हैं ।।४ किसलिए नींद आज है खोई । क्यों न अपनी नज़र से पूछते हैं ।।५ चैन उनके बिना नहीं आता । हम लिपट के शज़र से पूछते हैं ।।६ जिस तरह ढ़ल गया प्रखर का दिन । अब ढले शब क़मर से पूछते है ।।७ ३०/०१/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- हाल मेरा वो घर से पूछते हैं । पास बैठे पर सहर से पूछते हैं ।।१
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
प्यार अपना वो अमर बताते हैं । साथ जो भी उम्र भर निभाते हैं ।। १ हो गया राम मय अवध अपना । सब यही अब खबर सुनाते हैं ।। २ जिनकी फितरत जुदा रही हमसे । देख लो वो नज़र मिलाते हैं ।। ३ राह जिनको नहीं पता अपनी । वो हमें अब डगर दिखाते हैं ।। ४ तुम हमारी वफ़ा नहीं भूलो । प्यार में जो फ़िकर जताते हैं ।। ५ जीत कर बाजी वो मुहब्बत की । प्यार का अब असर दिखाते हैं ।। ६ जो प्रखर का हुआ नहीं अब तक । सब उसे हमसफ़र बताते हैं ।। ७ ३०/०१/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR प्यार अपना वो अमर बताते हैं । साथ जो भी उम्र भर निभाते हैं ।। १ हो गया राम मय अवध अपना । सब यही अब खबर सुनाते हैं ।। २ जिनकी फितरत जुदा रह
Shaarang Deepak
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- बात दिल में हमारे दबी रह गई । प्यास होंठो पे आकर थमी रह गई ।।१ आँख में आँसुओं की नमी रह गई ।। ज़िन्दगी में उसी की कमी रह गई ।।२ देख शैतान फिर से हुआ है खफ़ा । बाग में क्यों कली अधखिली रह गई ।३ ले गया कौन फल तोड़ कर बाग के । डालियों में ये नाजुक फली रह गई ।।४ डोर को छोड़कर जो उड़ी थी पतंग । फिर ज़मीं पर कहीं वो पड़ी रह गई ।।५ आज बरबाद ऐसे हुए हम यहाँ । पूर्वजों की ज़मीं बेचनी रह गई ।।६ कौन करता खुशामद किसी की यहाँ । कोर सबकी यहाँ पर फँसी रह गई ।।७ सो न पाया यहाँ मैं कभी रात में । नींद आँखों में मेरी धरी रह गई ।।८ प्यार जबसे हुआ है सुनो तो प्रखर । दिल हमारे अजब रोशनी रह गई ।।९ ३०/१२/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- बात दिल में हमारे दबी रह गई । प्यास होंठो पे आकर थमी रह गई ।।१
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
सुना अयोध्या में बापू अब , राम-सिया जी आयेंगे । मैं भी दर्शन करना चाहू , आप मुझे ले जायेंगे ।। सुना अयोध्या में बापू अब..... गाँव-गाँव में होती चर्चा , सजी अयोध्या नगरी है । किसी हाथ में कन्नी बसुली , किसी शीश पर गगरी है ।। राम सिया मय हुई अयोध्या , हम भी देखन जायेंगे । मैं भी दर्शन करना चाहूँ ..... हस्त शिल्प के कारीगर ने , प्रभु राम छवि उकेरी है । उसे देखने में सब कहते , लेकिन थोडा देरी है ।। मंत्रो उच्चारण से उसमे , प्राण बिठाये जायेंगे । मैं भी दर्शन करना चाहूँ .... नल-नील सी लगी है सेना , राम लला के दरवाजे । भक्त भुला बैठे अपनो को , राम सिया शरण विराजे ।। राम काज सब ही अब करके , धन्य सभी हो जायेंगे । मैं भी दर्शन करना चाहूँ .... राम-नाम जो मिश्री चख ले , उसे भूख प्यास न लगती । कोई भी फिर नब्ज़ दबा लो , फिर पीर नहीं सुन उठती ।। पूछो उन भक्तों से कैसे , सोहर गाये जायेंगे ।। मैं भी दर्शन करना चाहूँ .... सुना अयोध्या में बापू अब , राम-सिया जी आयेंगे । मैं भी दर्शन करना चाहू , आप मुझे ले जायेंगे ।। ३०/१२/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR सुना अयोध्या में बापू अब , राम-सिया जी आयेंगे । मैं भी दर्शन करना चाहू , आप मुझे ले जायेंगे ।। सुना अयोध्या में बापू अब..... गाँव-गाँव म