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DANVEER SINGH DUNIYA
अरे मानवता मैंने सड़क पर चलती देखी है संभल कर चलना पीछे से कहती देखी है जरूरत बन कर भी दर्द से सहती देखी है वे कभी दाएं कभी बाएं से थमती देखी है कभी लाल कभी पीली बदलती देखी है इशारों से बातें कर के वो रूकती देखी है ©DANVEER SINGH DUNIYA मानवता को
Shravan Goud
धर्म वही जो हमने धारण कर रखा है। कर्म वही जो किसी का दिल न दुखाएं। शास्त्र वही जो शस्त्र को हरा दे। मनुष्य वही जो इंसानियत बरकरार रखे। मानवता को धारण करना चाहिए।
Sanu Chauhan Spn
गम को Delete करो खुशी को Save करो दोस्ती को Download करो प्यार को Incoming करो नफरत को OutGoing करो हंसी को Hold करो और अपनी मुस्कान को Send करो ❤️❤️ सानू सिंह चौहान❤️❤️ WhatsApp - 9454500732 गम को Delete करो खुशी को save करो दोस्ती को Download करो.......
Rohit Kahar
इस मोल भाव के जगत में मानवता कहा खो जाती हैं कैसे कोई अग्बा कर लेता है किसी की बेटी को सोचो कैसे खाते होंगे उसके घर वाले रोटी को वहीं बेटी अग्बा हुई जब हुई तार तार थी वहीं बेटी समाज की खातिर मानवता का अवतार थी अक्सर बो बेटियां ही अग्बा होती है जिन्हे समाज ने पहनाई बेड़ियां होती है क्यों न कुछ बेड़ियां समाज के लिए बना दे और बेटियों को उन बेड़ियों से आजाद कर दे। और बता दे समाज को (x2) वो कल भी लछंमी बाई थी और आज भी लछंमी बाई है ©Rohit Kahar मानवता और मानवता
Ajay Daanav
हृदय से उपजे विचार हो तुम शब्दों का मेरे श्रृंगार हो तुम करती हुई झंकृत मन-वीणा सातों सुरों की झनकार हो तुम हूं मैं कविता छंदों में गढ़ी कविता का मेरी सार हो तुम हृदय से उपजे विचार हो तुम प्यार को परिभाषित नहीं किया जा सकता।
Akash Chaudhary
प्रेम को परिभाषित नहीं करते पात गन्दी रेत से लथपथ वो पत्ते जो कभी वृक्ष के वक्ष से कलाएं करते थे, कितनी ही चिड़िया तुमको छूकर गुजरी, मैं तुम पर आज ढूंढने बैठ गया उनके पैरों के निशान, क्या मन नहीं है तुम्हारा तुम उनको परिभाषित करो, क्या नहीं बताना चाहते मुझे अपने प्रेम के विषय में, तुम्हारी व्यथा और प्रेम से परिचित हूं मैं समझ रहा हूं पात तुम्हे मैं, तुम्हे पुरानी चिड़िया की याद आयी होगी, चलो मैं अपने दरवाजे से इंतजार में हूं जब चाहना तब दास्तां सुनाना......, तुम्हारा मौन समझता हूं मैं, तुम बता रहे हो शायद मुझे प्रेम कभी शब्दों से नहीं किया जाता वो होता है बस ,बस होता है।। ©Akash Chaudhary प्रेम को परिभाषित नही किया जाता।।❤️
Meenakshi Sharma
बच्चों से मजदूरी कराते हो, फिर तुम खुद कैसे जुएं के अड्डे में आंनद पाते हों, शराब के नशें में धूत हो कर, तुम खुद अपनी बीबी से भीख मंगवातें हों। क्या मर गई है तुम्हारे अंदर की इन्सानियत, जो तुम मानवता का सिर झुकातें हो। Meenakshi Sharma मानवता को शर्म सार कर जातें हों