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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
कुण्डलिया छन्द :- चित्र-चिंतन विधिवत रोपण हो रहा , खुश है आज किसान । माप-माप कर धान के , पौधे लगा जवान ।। पौधे लगा जवान , यही उम्मीद हमारी । करे कृपा भगवान , कि अबकी भरे बखारी ।। शीश झुकाऊँ नाथ , आप हो जायें सहमत । पूर्ण सभी हो काज , देख लो फिर तो विधिवत ।। २३/०९/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया छन्द :- चित्र-चिंतन विधिवत रोपण हो रहा , खुश है आज किसान । माप-माप कर धान के , पौधे लगा जवान ।। पौधे लगा जवान , यही उम्मीद हम
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दिन खुशियों के आ गये , आया नूतन वर्ष । भरी बखारी देख अब , सबके मन में हर्ष ।। बीते दिन दुख के सभी , करो बंद उपवास । आज फसल को देखकर , इतना है उल्लास ।। तुम अब आठों याम में, जपो राम का नाम । होगें नूतन वर्ष में , पूर्ण सभी के काम ।। झूठा सच लिखकर यहाँ , होता नित व्यापार । सच्चाई दिखती नहीं , यही जगत का सार ।। नव दुर्गा के रूप में , आयी सिंह सवार । माँ महिसासुर मर्दनी , सुन लो करुण पुकार ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दिन खुशियों के आ गये , आया नूतन वर्ष । भरी बखारी देख अब , सबके मन में हर्ष ।। बीते दिन दुख के सभी , करो बंद उपवास । आज फसल को देखकर , इतना
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
सुनो अखाड़े में नहीं , कोई तुमसा बलवान । धर्म सनातन की तुम्हीं , आज बड़ी हो शान ।। १ लगा रहे अपने यहां , ही अपनो में सेंध । जाओ समझाओ उसे , ठीक नहीं हैं रेंध ।। २ चोर चोर चिल्ला रहे , कहो चोर है कौन । भरी बखारी देख लो , हो जाओगे मौन ।। ३ होता तुमसे कुछ नहीं , दिए वर्ष थे पाँच । अब आए हो बोलने , बात नहीं है साँच ।। ४ पाँच वर्ष के काज का , दे दो आज हिसाब । टोटी तो हम जानते , लुटिया कहाँ जनाब ।। ५ सेंध लगाए धर्म में , रहे हमेशा ताक । पिता श्री की चली नहीं , पूत दिखाए धाक ।। ६ बात नहीं झूँठी कहूँ ,बात यही है साँच । आँख मूँद बैठे रहे , वर्ष मिले जो पाँच ।। ८ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR सुनो अखाड़े में नहीं , कोई तुमसा बलवान । धर्म सनातन की तुम्हीं , आज बड़ी हो शान ।। १ लगा रहे अपने यहां , ही अपनो में सेंध । जाओ समझाओ उसे , ठ
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत अब एक शीश बहु रावण है , मैं तुमको यह बतलाता हूँ । हे राम तुम्हारे आवाहन , पर अपना शीश झुकाता हूँ ।। अब एक शीश बहु रावण है .... अब हर घर में रावण बैठा , जो खुद को राम बताता है । रावण की प्रतिमा आज जला , वह राम अंश कहलाता है ।। मन का उसके हम का दीपक , तम आज जगत फैलाता है । आकर तारो पुन्य धरा को , मैं तुमको पुनः बुलाता हूँ ।। अब एक शीश बहु रावण है ...... इक नारी के हरण मात्र से ,क्या राख हुई लंका सारी । इसमें भी तो भेद छुपा था , जान रही सीता महतारी ।। आज हरण तो गली-गली है , क्या अत्य की न भरी बखारी । पूछ रहा है भक्त तुम्हारा , अब सोंच-सोच पछताता हूँ ।। अब एक शीश बहु रावण है ..... यह विजय पर्व है खुशियों का , मैं कैसे आज मनाता हूँ । सहमा-सहमा डर-गर कर मैं, फिर घर अपने ही जाता हूँ ।। मानव ही मानव का दुश्मन , अब कैसा ये युग आया है । जीव-जन्तु आहार बने है , प्रकृति मौन है बतलाता हूँ ।। अब एक शीश बहु रावण है ..... नारी ही नारी को देखा , निर्वस्त्र आज कर देती है । अपने कुल का मान कहाँ अब , हर नारी देखो करती है ।। कैसा ज्ञान कोष है रघुवर , मैं सुनकर बिचलित रहता हूँ । आप कहो हो मेरे रघुवर , आवाज़ तुम्हें मैं देता हूँ ।। अब एक शीश बहु रावण है .. अब एक शीश बहु रावण है , मैं तुमको यह बतलाता हूँ । हे राम तुम्हारे आवाहन , पर अपना शीश झुकाता हूँ ।। २४/१०/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत अब एक शीश बहु रावण है , मैं तुमको यह बतलाता हूँ । हे राम तुम्हारे आवाहन , पर अपना शीश झुकाता हूँ ।। अब एक शीश बहु रावण है ....