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Amit Rawat

हुनर और हालात 

चीथड़ों में लिपटा सड़क किनारे बैठ वो जो गा रहा था ,
दर्द अपने दिल का सुरो में पिरो कर सुना रहा था ।

लेकिन ये हुनर न देखा किसी ने उसका "आवर्त",
चंद सिक्के गिरा गए लोग उसके हालात देख कर  #हालात #हुनर #आवर्त

Amit Rawat

दोस्तो का साथ कुछ इस कदर हो गया है "आवर्त",
जिस कदर आसमाँ में तारे दिखते तो है,पर मिलते नहीं। #दोस्त #याद #आवर्त #friendshipday

आलोक अग्रहरि

#आधुनिक होली भारत की #poem

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सोचता हूँ आज क्या लिखूं,
फागुन की फुहार लिखूं,
या फिर किसानों का दर्द लिखूं।
सोचता हूँ आज मैं क्या लिखूं।
रंगों का सतरंगी इंद्रधनुष लिखूं,
या सैनिकों का मौन दर्द लिखूं।
कोई तो बतलाये मैं क्या लिखूं।
रंगों से भीगे परिधान लिखूं।
या गुलाल से लिपटे कोमल गात लिखूं।
देश के गद्दारो का षडयंत्र लिखूं।
या आस्तीन के सांपों का जहर लिखूं।
मां की ममता,पिता का प्यार लिखूं।
बहन का प्यार,भाई की डांट लिखूं।
अबकी होली को मैं और क्या लिखूं।
शहीदों की विधवाओं का धैर्य लिखूं।
या भूखे तड़पते बच्चों की पुकार लिखूं।
सोचता हूँ होली को होली कैसे लिखू।

©आलोक अग्रहरि #आधुनिक होली भारत की

Deep Kushin

#आधुनिक पिता की सोच #कविता

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पिता(भाग-३)
लड़का हो या की लड़की 
प्रेम, लगाव समान है,
समलैंगिक बच्चों के संबंध में 
चाहत क्यों अमान्य है।
गलती बच्चे की नहीं
फिर स्वीकार हम क्यों नहीं करते हैं?
उसके भिन्न लैंगिक चाहत के कारण
क्यों उससे पक्षपात हम करते हैं!
है इंसान वो भी औरों कि तरह
फिर भी दुत्कारा जाता है,
अनूठा वरदान है ईश्वर का
फिर भी अंतर हीं पाता है।
क्यों नहीं समझते लोग इसे? 
क्यों इसकी जरूरतें महत्वहीन है?
प्रकृति ने ही बनाया इसे भी
फिर भी ये सौर्य विहीन है।
पहले हमें हीं इसे समझना होगा 
हम इसके जन्माधिकारी हैं,
ये बच्चा है मेरा और मैं पिता हूं इसका 
लोग,समाज और सोच हीं व्यभिचारी है।
भाग्यवान..ये कल को बड़ा होगा 
समाज ठोकरें मारेगी,
गलती नहीं की उसने कुछ भी
फिर भी सताई जाएगी।
क्या तनिक भी इंसानियत नहीं हममें!
हम इसके मां और बाप हैं,
क्या हम भी इसे छोड़ेंगे औरों कि तरह?
आखिर ऐसा भी क्या पाप है!
हां है मेरा बच्चा समलिंग चाहत का
इसमें इसका कोई अपराध नहीं,
स्वभाव ही दिया ईश्वर ने इसे ऐसा
इसे तजने को हम तैयार नहीं।
भाग्यवान..तुम अपनाओ इसे 
ये हमारा हीं वंश है,
अर्धनारीश्वर के रूप में
ये शिव-पार्वती का अंश है।
समाज को बोलने दो हमारे खिलाफ़
बातें हीं तो बनाएंगे,
बनाकर बातें वापस चले जाएंगे अपने घर
ये उनका बच्चा तो नहीं है,
जो वात्सल्यता को समझ पाएंगे।
करता हूं मैं स्वीकार इसे 
ये बच्चा अनोखा उपहार है,
भार्या,बलम और समलिंगी का
ये छोटा-सा परिवार है। #आधुनिक पिता की सोच

Parasram Arora

आधुनिक कविता की खुदकशी

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मेरी प्राचीन कविताओं का  काव्यसंग्रह .जंगलगी  संदूक  की छत तोड़  अपने  अस्तित्व की की सुरक्षा  हेतु  मुझसे  गुफ्तगू  करना चाहता है .....परन्तु मैं तो व्यस्त रहा  निरन्तर  नए संदर्भो  और छंदो की तलाश में .....नतीजतन  पुरानी  पड चुकी  कविताये  उपेक्षित. होकर चलन से  बाहर  हो गई .....अबजबकि  सब कुछ  बदल चूका आधुनिकता के परिवेश में ..और  नई  कविताये  गर्भ से  आनेके लिए  छटपटा  रही   है ...लेकिन  अमर्यादित  भाषा  की आवारगी .देख  खुदकशी  के लिए मन बना रही है ........वे नवजात   आधुनिक  कविताये ...... आधुनिक कविता  की खुदकशी

Vivek Kumar Mishra

आधुनिक युग की हैं ये लड़की #कविता

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ehsanphilosopher

आधुनिक

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आप को अवसाद है तो आप आधुनिक है।
 आधुनिक

Shahab

आधुनिक इश्क में 

मैं बस इतना पुराना हूं ,

जिस्मों वाली मोहब्बत के दौर में 

बिंदी , काजल और उसके पायल का दीवाना हूं...

©Shahab #आधुनिक

TpK

नई जमाने की आधुनिक दुनिया 🌏 #lost #thought

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Ek villain

# स्त्री शिक्षा की आधुनिक मंत्रा दृष्टि #HappyNewYear

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विश्व के हर समाज में चेतना और जड़ता का चक्र निरंतर चलता रहता है चेतना के उत्कर्ष के काल में सामाजिक प्रगति करती है लेकिन उनके कारणों से जब यह चेतना मंद पड़ने लगती है तब समाज में समग्रता और समर सप्ताह का भाव कमजोर पड़ता है परिणाम स्वरूप राष्ट्रीय एकता मक्का का भाव ही रेड होने लगता है दुर्भाग्य से हमारा समाज ऐसी अवस्था से गुजरता रहता है तभी भारत भूमि पर विदेशी हमले भी हुए हमारा पूरा सामाजिक और शैक्षिक तन बंद बिखर गया अंग्रेजों के शासन काल में स्त्रियों की शिक्षा दीक्षा का कर्म बाधित होने के कारण समाज में एक अभूतपूर्व असंतुलन देखने को मिलता रहता है अपना मार्ग गार्गी मित्र इन लीलावती जैसी ब्रह्मवादिनी यू और विदेशियों के देश में स्त्री संकट का आ चुका है लेकिन भारतीय आजीविका का चमत्कार यही है कि संकट स्थाई नहीं रहते हुए सामाजिक इच्छाशक्ति के समान देर सवेरे टूट ही जाते हैं बाबासाहेब डॉक्टर अंबेडकर ने कहा था कि भारतीय समाज के कलेवर और मानस में वह ललित लचीलापन है जिसके कारण अपने दोषों को दूर करने के लिए संशोधन का स्थान बनाया ही लेते हैं 19वीं सदी में देश में सावित्रीबाई फुले नाम की एक मिसाल चली जिसने अपने प्रकाश से अज्ञान के अंधेरे दौर को चुनौती देते हुए स्त्रियों की आधुनिक शिक्षा का एक विषय उदाहरण प्रस्तुत किया महाराष्ट्र के सतारा जिले के नए गांव कस्बे में 3 जनवरी 18 से 31 को जानवी सुमित्रा बाई का मात्र 9 वर्ष की आयु में विवाह कर दिया गया बाल विवाह का दुर्भाग्य तो उनके हिस्से आया लेकिन उनके पति ज्योतिबा बाई के स्पष्ट सुधारवादी समाज संघ सोच के प्रभाव के कारण सुमित्राबाई आगे चलकर और अनेक महिलाओं को बाल विवाह से बचाना और उनकी शिक्षा प्राप्त की भूख प्रदान करने का माध्यम अनिता एक प्रबल रोटी बड़ी थी महिलाओं की शिक्षित नहीं की जानी चाहिए और उनको जल्द से जल्द विवाह करना बोझ से मुक्त हो जाना चाहिए सावित्रीबाई इस रूढ़िवादी सोच के विरुद्ध आवाज उठाई और अपने द्वार खुल गई

©Ek villain # स्त्री शिक्षा की आधुनिक मंत्रा दृष्टि

#HappyNewYear
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