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Amit Rawat
हुनर और हालात चीथड़ों में लिपटा सड़क किनारे बैठ वो जो गा रहा था , दर्द अपने दिल का सुरो में पिरो कर सुना रहा था । लेकिन ये हुनर न देखा किसी ने उसका "आवर्त", चंद सिक्के गिरा गए लोग उसके हालात देख कर #हालात #हुनर #आवर्त
Amit Rawat
दोस्तो का साथ कुछ इस कदर हो गया है "आवर्त", जिस कदर आसमाँ में तारे दिखते तो है,पर मिलते नहीं। #दोस्त #याद #आवर्त #friendshipday
Parasram Arora
मेरी प्राचीन कविताओं का काव्यसंग्रह .जंगलगी संदूक की छत तोड़ अपने अस्तित्व की की सुरक्षा हेतु मुझसे गुफ्तगू करना चाहता है .....परन्तु मैं तो व्यस्त रहा निरन्तर नए संदर्भो और छंदो की तलाश में .....नतीजतन पुरानी पड चुकी कविताये उपेक्षित. होकर चलन से बाहर हो गई .....अबजबकि सब कुछ बदल चूका आधुनिकता के परिवेश में ..और नई कविताये गर्भ से आनेके लिए छटपटा रही है ...लेकिन अमर्यादित भाषा की आवारगी .देख खुदकशी के लिए मन बना रही है ........वे नवजात आधुनिक कविताये ...... आधुनिक कविता की खुदकशी
आलोक अग्रहरि
सोचता हूँ आज क्या लिखूं, फागुन की फुहार लिखूं, या फिर किसानों का दर्द लिखूं। सोचता हूँ आज मैं क्या लिखूं। रंगों का सतरंगी इंद्रधनुष लिखूं, या सैनिकों का मौन दर्द लिखूं। कोई तो बतलाये मैं क्या लिखूं। रंगों से भीगे परिधान लिखूं। या गुलाल से लिपटे कोमल गात लिखूं। देश के गद्दारो का षडयंत्र लिखूं। या आस्तीन के सांपों का जहर लिखूं। मां की ममता,पिता का प्यार लिखूं। बहन का प्यार,भाई की डांट लिखूं। अबकी होली को मैं और क्या लिखूं। शहीदों की विधवाओं का धैर्य लिखूं। या भूखे तड़पते बच्चों की पुकार लिखूं। सोचता हूँ होली को होली कैसे लिखू। ©आलोक अग्रहरि #आधुनिक होली भारत की
Deep Kushin
पिता(भाग-३) लड़का हो या की लड़की प्रेम, लगाव समान है, समलैंगिक बच्चों के संबंध में चाहत क्यों अमान्य है। गलती बच्चे की नहीं फिर स्वीकार हम क्यों नहीं करते हैं? उसके भिन्न लैंगिक चाहत के कारण क्यों उससे पक्षपात हम करते हैं! है इंसान वो भी औरों कि तरह फिर भी दुत्कारा जाता है, अनूठा वरदान है ईश्वर का फिर भी अंतर हीं पाता है। क्यों नहीं समझते लोग इसे? क्यों इसकी जरूरतें महत्वहीन है? प्रकृति ने ही बनाया इसे भी फिर भी ये सौर्य विहीन है। पहले हमें हीं इसे समझना होगा हम इसके जन्माधिकारी हैं, ये बच्चा है मेरा और मैं पिता हूं इसका लोग,समाज और सोच हीं व्यभिचारी है। भाग्यवान..ये कल को बड़ा होगा समाज ठोकरें मारेगी, गलती नहीं की उसने कुछ भी फिर भी सताई जाएगी। क्या तनिक भी इंसानियत नहीं हममें! हम इसके मां और बाप हैं, क्या हम भी इसे छोड़ेंगे औरों कि तरह? आखिर ऐसा भी क्या पाप है! हां है मेरा बच्चा समलिंग चाहत का इसमें इसका कोई अपराध नहीं, स्वभाव ही दिया ईश्वर ने इसे ऐसा इसे तजने को हम तैयार नहीं। भाग्यवान..तुम अपनाओ इसे ये हमारा हीं वंश है, अर्धनारीश्वर के रूप में ये शिव-पार्वती का अंश है। समाज को बोलने दो हमारे खिलाफ़ बातें हीं तो बनाएंगे, बनाकर बातें वापस चले जाएंगे अपने घर ये उनका बच्चा तो नहीं है, जो वात्सल्यता को समझ पाएंगे। करता हूं मैं स्वीकार इसे ये बच्चा अनोखा उपहार है, भार्या,बलम और समलिंगी का ये छोटा-सा परिवार है। #आधुनिक पिता की सोच
Shahab
आधुनिक इश्क में मैं बस इतना पुराना हूं , जिस्मों वाली मोहब्बत के दौर में बिंदी , काजल और उसके पायल का दीवाना हूं... ©Shahab #आधुनिक