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( prahlad Singh )( feeling writer)
सिर्फ ईटों के बने मकान को घर नहीं कहते, घर उसे कहते हैं जिसमें मातपिता समान घर की नींव हो, बड़े भाई समान घर की छत ,बहन समान घर की मजबूती और बच्चों समान घर की खुशियां और घर का वह हर सदस्य जो मकान को घर बनाता है #Sapne_ka_ghar घर का हर सदस्य
Babli BhatiBaisla
लंबे चौड़े खेतों में खलिहानों में शुद्ध हवा का राज खुली छोटी चारदीवारी में सांझे आंगन की बात और खुले आसमान तले बिछीं खाटों के ठाठ हमें याद आती है वो ही सारी बहुत भली सी बात बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla शुद्ध हवा का राज
Ek villain
शुक्रवार के संस्करण में प्रकाशित अजय खेमरिया लिखित आलेख मेडिकल शिक्षा का कमजोर ढांचा एक प्रकार से आंखें खोलने वाला है यह दिखाता है कि स्वतंत्र के इतने दशक बीत जाने के बावजूद भारत की किस प्रकार चला गया उसमें भी देश की एक बड़ी आबादी की सहमति करने वाले उत्तर भारत के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव या अन्याय हुआ आखिर क्या कारण है कि उत्तर प्रदेश बिहार हिमाचल हरियाणा और तमाम भारतीय राज्यों के छात्रों को सुदूर देशों में शिक्षण के लिए जाना पड़ा इससे कई तरह के नुकसान नहीं है इससे जहां में हमारी पूंजी का लाभ दूसरे देशों को मिलता है वही प्रतिभा पलायन के साथ मानव संसाधन की क्षमताओं से भी देश को हाथ धोना पड़ता है ऊपर से जिस प्रकार की परिस्थितियां इस समय यूक्रेन में निर्मित हुई है उसी उससे सरकार की उर्जा और संसाधनों को भी दूसरे देशों में मोड़ दिया है साथ ही घर वालों के लिए अलग से ही चेतना और चेतावनी का कारण बन गया जिस प्रकार देश के कॉमेडी के दौरान कई वस्तुओं के उत्पादन में आत्मनिर्भर की थी उसी प्रकार की आपदा को भी स्वास्थ्य शिक्षा के ढांचे में सुधार का अवसर बना लिया है ©Ek villain #शुद्ध स्वास्थ्य शिक्षा का ढांचा #MusicLove
अर्पिता
आज माँ का एक रुप देखा , दिनभर बच्चों के काम किये जा रही थीं, अपनी उलझने भुलाकर उन्हें सुलझाना सीखा रही थी, अपने खट्टे मीठे अनुभवों से उन्हें जीना सीखा रही थी, अपनी सहनशीलता का परिचय जता रही थी, नामचिन चाय की चुस्कियों के साथ दिन बनाये जा रही थी, उनके हर एक पल को तराशती जा रही थी, नाजुक सी कलियों को फूल बनना सीखा रही थी, अपनी सतयुग की कहानियां इस कलयुग में सुनाए जा रही थी, अपने भोलेपन से सभी के दिलों को जीतना सिखाए जा रही थी, सिर्फ वो ही ये सब करे जा रही थीं, अपने बच्चों को प्रत्यक्षता का ज्ञान कराए जा रही थी, अपनी ही ममता को लुटाये जा रही थी, बहुत प्यार दुलार से बात किये जा रही थी, और इन्ही बातो के जरिये सब कुछ सिखाये जा रही थी, ज़िन्दगी का मतलब बताये जा रही थी, इस संसार मे अपनी महत्वता को बनाये जा रही थी, थोड़ा ध्यान से देखा तो साक्षात देवी सी प्रतीत हो रही थी।। ©अर्पिता #माँ का रूप
Prashant Mishra
निश्छलता का प्रारूप है 'माँ' इस धरती पे स्नेह का सच्चा स्वरूप है 'माँ' इस धरती पे दुनिया में 'माँ' के जैसा नहीं कोई दूजा है भगवान का सच्चा रूप है 'माँ' इस धरती पे --प्रशान्त मिश्रा #"माँ" का रूप