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Sanjeev Jha
Love मुहब्बत है हमें, क्यों न परवाज भर आऊं तपस्या नहीं, जो कंदराओं में कैद हो जाऊं ©संजीव #मुहब्बत #परवाज #तपस्या #कंदराओं
Vinod Mishra
anonymous
Sunita D Prasad
#पर्वत.. वो.. जैसे ही कंदराओं से होकर, उसके.. हृदय तक पहुँची। वो जो एकांत में.. अभी तक.. कठोरता.. ओढ़े खड़ा था..। अनायास ही, भरभराकर.. उसकी गोद में ढह गया..। --सुनीता डी प्रसाद💐 #पर्वत.. वो जैसे ही कंदराओं से होकर, उसके हृदय तक पहुँची। वो जो एकांत में, अभी तक.. कठोरता ओढ़े
हेमाश्री प्रयाग
स्वयंबर आंकलन मन से मन का होनें लगे। कोई चंचल -हृदय स्वप्न बोनें लगे। कंदराओं में हो शाद जब प्रस्फुटित - फिर दो - नैंनों से बरखा होनें लगे
अशेष_शून्य
मैं स्वयं बनूंगी प्रेम और प्रेम में वो प्राणदाई हवा , वो प्रेम का बीज जो इस धरा पर प्रेम का सृजन कण कण में करेगा ...!! -Anjali Rai READ IN CAPTION ..... ❤️✍️ तुम कहते हो कि सहज है प्रेम जब तुम कहते हो तो मुझे भी यकीन है कि प्रेम करना सहज है परन्तु प्रेम को सहेजना उसी सहजता से
Akanksha Jain
"मैं नहीं हूँ स्वांग में" (read इन caption) ©Akanksha jain खोजते हो मिट्टी,हवा,जल,जीव और ब्रह्मांड में। हूँ बसी मैं तेरे घर की,देहरी में,आश में विश्वास में। खोजते हो पहाड़ों ,गिरी कंदराओं,पाताल में।
Sunita D Prasad
#अभिव्यक्ति एक कला.... भाषा के प्रारूप से पहले खोज लिए थे हमने साधन..अभिव्यक्ति के ! १) अभिव्यक्ति की श्रृंखला में.. रखना चाहूँगी सर्वप्रथम उन अनाम चित्रकारों को दिया था उकेर, जिन्होंने.. अनुभवों और संवेदनाओं को कंदराओं के निष्प्राण पाषाणों पर....। वे अभिव्यक्ता.. हैं उन भित्ति चित्रों में.. आज भी..! वे प्रस्तर.. हैं लेते निश्वास..आज भी..! २) फिर इस श्रृंखला में.... रखना चाहूँगी प्रेम में लिखे गए उन असंख्य प्रेम-पत्रों को जो हैं प्रमाण.. प्रेमियों की भावप्रवणता के..! और जिनको.. करते ही स्पर्श, हो उठती हैं स्पंदित मृत शिराएँ हृदय की.. आज भी..! ३) इसी श्रृंखला में.... रखना चाहूँगी प्रत्येक लेखक और कवि को जिसने.. असीम अभिव्यक्ति के लेशमात्र में ही.. रख लिया स्वयं को अस्तित्वमय..! और कर लिया अपनेआप को सदा के लिए स्थापित एक कलाकार के रूप में..।। वस्तुतः... अभिव्यक्ति एक कला जो ठहरी और अभिव्यक्ता एक कलाकार..!! --सुनीता डी प्रसाद💐💐 #अभिव्यक्ति एक कला.... भाषा के प्रारूप से पहले खोज लिए थे हमने साधन..अभिव्यक्ति के ! १) अभिव्यक्ति की श्रृंखला में..
Insprational Qoute
त्याग संसृति का मोह, रीत जग की भुलाई, घूँट विष का भी पी लिया कंदराओं में जा समाई, वो काल मीरा की भक्ति का था। सम्पूर्ण रचना अनुशीर्षक में पढ़े। 🙏🙏🙏 त्याग संसृति का मोह, रीत जग की भुलाई, घूँट विष का भी पी लिया कंदराओं में जा समाई, वो काल मीरा की भक्ति का था। बनी वो पतिव्रता नारी, बचा लिय
Sarita Shreyasi
मैं और तुम प्रकृति के दो आयाम, तुम ऊंचाई और मैं विस्तार। जब भी बात आई विकास और सृजन की, मैं और तुम साथ खड़े हो गए। तुम शीर्ष की ओर बढ़े और मैं मजबूती से आधार पकड़े जमी रही। तुम्हें चाह शीर्ष की और मुझे चाहिए विस्तार। जब तुम आसमान चूमने की चाहत में चढ़ते चले गए, लगे भूलने अस्तित्व साथ का, और साथ ही मुझे भी, तो मैं तुम्हें पाने की धुन में बौराई-सी बढ़ती चली गयी। वो ऊंचाइयाँ मेरे हक़ में नहीं थी, न मुझे कभी उनकी लालसा थी, ये तो तुम्हें पाने, तुम्हारे साथ होने की जिद थी जिसने ये चढ़ाई भी पूरी करवा दी। (Read the caption) मैं और तुम साथ चले, रहे ढूंढते अनवरत अंधेरों से उजाले तक, कभी छुप गए, विशाल वट के पीछे, कभी गुफाओं कंदराओं में, देखा निर्जन और घने जंगल, रह