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pramod malakar
मैं ज्योति का अधिकारी हूं , राष्ट्र विरोधियों पर भारी हूं , मैं भारतीय नारी हूं। अंधेरा मन में उजाला भर जाती हूं , सनातन संस्कृति का सच समझाती हूं गीत वतन का गाती हूं। घर - घर जाकर हिन्दुत्व का अलख जगाती हूं , कमल फूल है निसान हमारा , सबको बतलाती हूं। गौरवमय है भारत का इतिहास , सच कि विगुल बजाती हूं। मैं कर रही 2024 कि तैयारी हूं , मैं ज्योति अधिकारी हूं, राष्ट्र विरोधियों पर भारी हूं। (((((((((((((((((()))))))))))))))))) प्रमोद मालाकार की कलम से ©pramod malakar मैं ज्योति का अधिकारी हूं
pramod malakar
मैं ज्योति का अधिकारी हूं , राष्ट्र विरोधियों पर भारी हूं , मैं भारतीय नारी हूं। अंधेरा मन में उजाला भर जाती हूं , सनातन संस्कृति का सच समझाती हूं गीत वतन का गाती हूं। घर - घर जाकर हिन्दुत्व का, अलख जगाती हूं , कमल फूल है निसान हमारा , सबको बतलाती हूं। गौरवमय है भारत का इतिहास , सच कि विगुल बजाती हूं। मैं कर रही 2024 कि तैयारी हूं , मैं ज्योति अधिकारी हूं, राष्ट्र विरोधियों पर भारी हूं। (((((((((((((((((()))))))))))))))))) प्रमोद मालाकार की कलम से ©pramod malakar मैं ज्योति का अधिकारी हूं
Jyoti Agrahari
एक ज्योति पुंज सी बन जाऊँ ये नाम अमर अब मेरा हो , जग में आएँ तो कुछ करना है वो काम अमर अब मेरा हो। ज्योति
jyoti gurjar
हां हूं में, ज्योति सांवली-सांवली सी ,जरा बावली बावली सी , वो रंग पर बड़ा इतराती हैं, पर हमेशा अपनी मान मर्यादा को खोकर जाती हैं। समाज का नाम बढ़ाने की जगह, वो कुल को ही बदनाम कर जाती हैं। ©jyoti gurjar #ज्योति
Jyoti Azad Khatri
नित्यानंद गुप्ता
विषय और भोग को तुम विष्टा के समान समझों। - योग वशिष्ठ महारामायण ज्ञान ज्योति।
HP
💝अखंड ज्योति💝 वह मनुष्य निश्चय ही सौभाग्यवान है जिसने अपने अन्तःकरण को निर्मल बना लिया है और जिसका जीवन आध्यात्मिकता की ओर उन्मुख हो रहा है। अध्यात्म जीवन का वह तत्वज्ञान है, जिसके आधार पर मनुष्य विश्व ही नहीं अखण्ड ब्रह्माण्ड के सारे ऐश्वर्य को उपलब्ध कर सकता है। अध्यात्म ज्ञान के बिना सारा वैभव—सारा ऐश्वर्य और सारी उपलब्धियाँ व्यर्थ हैं। जो भाग्यवान अपने परिश्रम, पुरुषार्थ एवं परमार्थ से थोड़ा बहुत भी अध्यात्म लाभ कर लेता है वह एक शाश्वत सुख का अधिकारी बन जाता है। व्यवहार जगत में अनेक सीखने योग्य ज्ञानों की कमी नहीं है। लोग इन्हें सीखते हैं, उन्नति करते हैं, सुख−सुविधा के अनेक साधन जुटा लेते हैं। किन्तु इस पर भी जब तक वे अध्यात्म की ओर उन्मुख नहीं होते वास्तविक सुख-शाँति नहीं पा सकते। अखंड ज्योति
Parasram Arora
मेरी सारी साधुता एक ही धारणा पर टिकी हैँ कि शरीर के साथ सब समाप्त नहीं हो जाता और जीवन का अर्थ इसी बात पर निर्भर हैँ कि जब शरीर गिरता हैँ तो कुछ बिना गिरा भी शेष रह जाता हैँ शरीर जब मिटता हैँ मिटटी मे तो सभी कुछ नहीं गिरता मिटटी मे कुछ मेरे भीतर कोइ ज्योति किसी और यात्रा पर निकल जाती हैँ अर्थात मै बचता हूं किसी अन्य अर्थो मे शाश्वत ज्योति