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RAYEES RABBANI
बहुत नाज था तुम्हें ये सड़क अपने लंबाई से तुझे भी नाप दियें ये मजदुर चल कर पैदल अपने पैरों से #मजदूरों_की_भी_मजबूरिया_होती_हैं_साहब #मजदूरोकापलायन #मजदूरों_को_घर_लेके_आओ
Richa Mishra
जिम्मेदारी की चाह में उज्ज्वल भविष्य प्राप्त में प्रतिदिन करता हैं ; वह बेजोड़ मेहनत ! जिसके शुक्रगुजार यह मनुष्य जाति कभी नही कर सकती धन्यवाद क्योंकि मजदूर वह हैं जो रातों रात झोपड़ी को महल में तब्दील करता हैं ।। #मेहनतकीमिसाल #मजदूरों_की_भी_मजबूरिया_होती_हैं_साहब #मजदूरों_को_समर्पित #मजदूरीकासंघर्ष #मजदूरीकीदास्तां
Richa Mishra
जिम्मेदारी की चाह में उज्ज्वल भविष्य प्राप्त में प्रतिदिन करता हैं ; वह बेजोड़ मेहनत ! जिसके शुक्रगुजार यह मनुष्य जाति कभी नही कर सकती धन्यवाद क्योंकि मजदूर वह हैं जो रातों रात झोपड़ी को महल में तब्दील करता हैं ।। #मेहनतकीमिसाल #मजदूरों_की_भी_मजबूरिया_होती_हैं_साहब #मजदूरों_को_समर्पित #मजदूरीकासंघर्ष #मजदूरीकीदास्तां
RAYEES RABBANI
वो लाले पड़े थे खाना खाने को तरसते रहे पीने के पानी को। वो भटकते रहे राहों में घर जाने को चल चल के छाले पड़ा लिए अपने पैरों के।। फ़िरभी न रुके उनके कदम चलने की कितनी भी सताती रहे कड़कती गर्मी धूप की।।। #मजदूरों_की_मजबूरियां #मजदूर_की_आवाज़ #मजदूर_हूँ_मै
DR. LAVKESH GANDHI
देख कर प्रवासी मजदूरों की वेदना रूह सिहर उठती है भटकते मजदूरों की व्यग्रता देख कर दिल काँप उठता है भूखे-प्यासे मजदूरों को देख कर बेचैनी से मन व्यथित हो उठता है फिर मजदूरों की व्यथा देख कर सरकारें न जाने क्यों आँखें मूंद बैठी है #प्रवासी मजदूर # #मजदूरों_की_मजबूरियां # #yqmajbur #yqmajdur#
sujit kumar
तुम अगर दिए हो, तो हर दिन जलना, जब तक उजाला न हो जाए, आज के लोगो की तरह नहीं, एक दिन की ट्रेंडिंग,बस, बाकी आगे का पता नहीं, बाकी जीवन तो आप का ही है, तय करे, इंसान बने, न्याय तक पहुंचाए।। #skmskm #लव #जस्टिस #हथिनी_की_हत्या #मजदूरों_की_मजबूरियां #मौतकाइंतज़ार #trendingnow B's
Saurabh Dubey
पसीने से लथपथ, है वो अपने काम में रत, सर पर ईंटे वो जब ढोता है तब जाकर बनती है छत।। बड़ी बड़ी इमारतों का भार उठाता है मजदूर का कन्धा, उसकी लाचारी पर अब भी जग बन बैठा है क्यों अन्धा। सिसकी उसकी कौन सुने और घाव किसे वो दिखलाये, जो तपते भट्ठों में है बैठा अपने हाथों को जलाये।। उनके भावों और मेहनत को चंद नोटों से तोलो मत, सर पर ईंटे वो जब ढोता है तब जाकर बनती है छत।। हैं ये कलाशिल्पी और सभ्यताओं के उद्धारक, विद्रोह किया है जब भी तो बन जाते असमता के संहारक। खड़े किये जो हाथ इन्होंने तो हम रह न जायेंगे किसी लायक ये ही तो है जग में केवल सृजन के सच्चे युग नायक।। करता हूँ मैं सृजन के देवों को प्रणाम होकर दण्डवत, सर पर ईंटे वो जब ढोता है तब जाकर बनती है छत।। -सौरभ दुबे"संकल्प" ©Saurabh Dubey मजदूरों को समर्पित
Lakhan Singh Chouhan
#Labour_Day सर से उनके छत उठ गई रोजी छीन गई हाथों की, ना रहा खाने को दाना नींद उड़ गई रातों की। पुलिस ने उनको मारे डंडे और खदेड़ा सड़कों से, सरकारों को क्या करना है गांव के ऐसे कड़को से। उनकी गलती ,जो थे आए भरने पेट वो शहरों में, सिर पे ढोते बोझा देखो जेठ की भरी दोपहरों में। जूते चप्पल नहीं मिले तो बांध ली बोतल पाओं में, लक्ष्य एक है, कैसे भी वो पहुंचे अपने गाँवो में। तुमने भेजे उड़न खटोले उन्हें बुलाया देशों में, जो स्वार्थ के कारण भागे भारत छोड़ विदेशों में। मजदूरों का दर्द ना समझा जाने क्यों सरकारों ने, जमा रुपए भी लूट लिए बीच में कुछ गद्दारों ने। धन्य जिन्होंने पानी पूछा, और दी रोटी खाने को, पैदल ही थे निकल पड़े जो अपने घर जाने को। ठा. लाखन सिंह चौहान मजदूरों की व्यथा।