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कवि रोहित
जिस महफिल के लिए ये लिवाज पहना है जैसे वर्षों में किसी राजा ने ताज पहना है कुछ तो ख़ास बात होंगी वहाँ की महफिल में ऐसा कभी नहीं देखा जैसे आज पहना है ©कवि रोहित लिवाज
कवि रोहित
जिस महफिल के लिए ये लिवाज पहना है जैसे वर्षों में किसी राजा ने ताज पहना है कुछ तो ख़ास बात होंगी वहाँ की महफिल ऐसा कभी नहीं देखा जैसे आज पहना है ©कवि रोहित लिवाज
Manoj Jat
दर्द भी कुछ ऐसा है, जो👨🏻⚕️मरहम से परे हैं। याद आ गई वह मेरी👶🏻जिंदगानी, जिस में दर्द नाम का कोई शब्द नहीं था। यह प्यार है कि दर्द👔लिवाज है, उतारे नहीं उतरता।। ✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 ©Manoj Jat लिवाज है,�उतारे #Dark
Hari Mohan
یہاں لباس کی قیمت ہے آدمی کی نہیں यहां लिवाज की कीमत है आदमी की नहीं #yqbaba #yqdidi #urdu #urdushayari
Santosh Singh
मोहब्बत कितनी भी पाक हो बात कितनी भी साफ हो , बदल जाते हैं अक्सर वही लोग जिस पर हद से ज्यादा विश्वास हो। #झूठी मोहब्बत और सफेद लिवाज इंसान जिन्दगी में सिर्फ एक बार ही पहनता है
Mukesh Poonia
जो पानी से नाहता है वो सीरफ लिवाज बदलता है। जो पसीने से नाहता है वो इतिहास बदलता है। #NojotoQuote जो पानी से नाहता है वो सीरफ लिवाज बदलता है। जो पसीने से नाहता है वो इतिहास बदलता है। #nojoto #nojotohindi
JALAJ KUMAR RATHOUR
आज भी तेरे बदन की खुशबू आती है मेरे लिवाज़ो से कहीं इनका नाता तो नही हमारी ,उन सर्द रातों वाली मुलाकातों से........ #जलज_कुमार #बेदर्द_स्याही #सर्द_राते #NojotoQuote आज भी तेरे बदन की खुशबू आती है मेरे लिवाज़ो से कहीं इनका नाता तो नही हमारी ,उन सर्द रातों वाली मुलाकातों से........ #जलज_कुमार #बेदर्द_स्या
kavi amit kumar
मैं तुम्हारी नशीली आंखों की क्या तारीफ करूं । ये परेशान करती है ,छपक छपक के मुझे । जिस दिन से तुम्हें देखा परी के लिवाज में । ये दिल परेशान करता है ,धड़क-धड़क के मुझे ।। ।।............ अमित कुमार.".ढक्कन "....।। मैं तुम्हारी नशीली आंखों की क्या तारीफ करूं । ये परेशान करती है ,छपक छपक के मुझे । जिस दिन से तुम्हें देखा परी के लिवाज में । ये दिल परे
bhawna saini
.पिता का दर्द मौन रहा वो पिता बहुत सी बात पर ना कह कर कभी उसने मन की अपनी व्यथा बतलाई दो लिवाज में बीत गई तमाम उम्र उसकी चंद पैसे बचाने में जाने कैसे उसने अपनी ख्वाहिशें दबाई ज़ख्म को अपने छुपा लिया उसने सबसे खुशियों को अपनी अक्सर नज़र अंदाज़ करता रहा वो बड़े अदब से ना सुन पाया सिसकियां उसकी कोई भी, वो जीता रहा हर हाल में दिए में बाती की तरह स्वयं को जला कर उसने है दुनिया अपनों की जगमगाई कहां जाना किसी ने उस पिता के दर्द को जिसने खून पसीना बहा कर अपना मुश्किल से दाल रोटी जुटाई ©bhawna saini .पिता का दर्द मौन रहा वो पिता बहुत सी बात पर ना कह कर कभी उसने मन की अपनी व्यथा बतलाई दो लिवाज में बीत गई तमाम उम्र उसकी चंद पैसे बचाने