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Kailash Yede
चमकती हुई जिंदगी को एक धुंधली सी छाव दे दे.. नाप लूंगा सृष्टि को एक और पांव देवें... कवि कैलाश.. वामन अवतार
सागर पाल
KP EDUCATION HD
KP NEWS HD कंवरपाल प्रजापति समाज ओबीसी for the same ©KP EDUCATION HD इस सप्ताह गणेश विसर्जन के साथ 10 दिवसीय गणेश उत्सव का समापन होगा। सप्ताह के अंतिम दिनों में पूर्वजों को समर्पित एक पत्री पार्टी शुरू होगी। इ
Vikas Sharma Shivaaya'
एकादशी:- हिंदू पंचांग की ग्यारहवी तिथि को एकादशी कहते हैं। यह तिथि मास में दो बार आती है। पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद। पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहते हैं। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है इसलिए एकादशी को हरि वासर या हरि का दिन भी कहा जाता है। एक ही दशा में रहते हुए अपने आराध्य का अर्चन-वंदन करने की प्रेरणा देने वाला व्रत ही 'एकादशी व्रत' है। एकादशी का नाम मास पक्ष:- कामदा एकादशी- चैत्र शुक्ल वरूथिनी एकादशी- वैशाख कृष्ण मोहिनी एकादशी -वैशाख शुक्ल अपरा एकादशी -ज्येष्ठ कृष्ण निर्जला एकादशी- ज्येष्ठ शुक्ल योगिनी एकादशी- आषाढ़ कृष्ण देवशयनी एकादशी -आषाढ़ शुक्ल कामिका एकादशी- श्रावण कृष्ण पुत्रदा एकादशी- श्रावण शुक्ल अजा एकादशी- भाद्रपद कृष्ण परिवर्तिनी एकादशी- भाद्रपद शुक्ल इंदिरा एकादशी -आश्विन कृष्ण पापांकुशा एकादशी- आश्विन शुक्ल रमा एकादशी -कार्तिक कृष्ण देव प्रबोधिनी एकादशी -कार्तिक शुक्ल उत्पन्ना एकादशी- मार्गशीर्ष कृष्ण मोक्षदा एकादशी- मार्गशीर्ष शुक्ल सफला एकादशी- पौष कृष्ण पुत्रदा एकादशी- पौष शुक्ल षटतिला एकादशी -माघ कृष्ण जया एकादशी- माघ शुक् ल विजया एकादशी- फाल्गुन कृष्ण आमलकी एकादशी- फाल्गुन शुक्ल पापमोचिनी एकादशी- चैत्र कृष्ण पद्मिनी एकादशी- अधिक मास शुक्ल परमा एकादशी -अधिक मास कृष्ण पुत्रदा एकादशी:- पुत्रदा एकादशी को वैकुंठ एकादशी भी कहते हैं- पुत्रदा एकादशी के पुण्य फल से व्यक्ति को पुत्र की प्राप्ति होती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है. पंचांग के अनुसार, पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी या वैकुंठ एकादशी व्रत रखा जाता है. पुत्रदा एकादशी व्रत हर संतानहीन दंपत्ति को रखने के लिए कहा जाता है. विष्णु सहस्रनाम( एक हजार नाम) आज 312 से 322 नाम 312 नहुषः भूतों को माया से बाँधने वाले 313 वृषः कामनाओं की वर्षा करने वाले 314 क्रोधहा साधुओं का क्रोध नष्ट करने वाले 315 क्रोधकृत्कर्ता क्रोध करने वाले दैत्यादिकों के कर्तन करने वाले हैं 316 विश्वबाहुः जिनके बाहु सब और हैं 317 महीधरः महि (पृथ्वी) को धारण करते हैं 318 अच्युतः छः भावविकारों से रहित रहने वाले 319 प्रथितः जगत की उत्पत्ति आदि कर्मो से प्रसिद्ध 320 प्राणः हिरण्यगर्भ रूप से प्रजा को जीवन देने वाले 321 प्राणदः देवताओं और दैत्यों को प्राण देने या नष्ट करने वाले हैं 322 वासवानुजः वासव (इंद्र) के अनुज (वामन अवतार) 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 . ©Vikas Sharma Shivaaya' एकादशी:- हिंदू पंचांग की ग्यारहवी तिथि को एकादशी कहते हैं। यह तिथि मास में दो बार आती है। पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद। पूर्णिमा के बा
Vikas Sharma Shivaaya'
✒️📇जीवन की पाठशाला 🖋️ 🎉दीपावली के पावन पर्व पर सभी बुजुर्गगणों को सादर चरण स्पर्श ,सभी बराबर के साथियों को प्रेम भरा -निश्छल आलिंगन (गले मिलना )एवं समस्त छोटों को प्यार भरा आशीर्वाद …ईश्वर से एवं सतगुरु से अरदास है की संपूर्ण धरातल पर सुख -समृद्धि -ऐश्वर्या -वैभव एवं मंगल करें तथा सबके मन मस्तिष्क से नकारात्मकता को खत्म कर सकारात्मकता का प्रवेश करें जिससे अमन -भाईचारा -प्रेम -सद्व्यवहार -इंसानियत का प्रकाश चहुँ ओर फैले ,इन्हीं शुभकामनाओं के साथ🙏 जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की दीपावली हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है-साधारणत: हम लोग दीपावली मनाने का कारण श्री राम के 14 वर्ष का वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटने व समुद्र मंथन द्वारा लक्ष्मी के प्राकट्य को मानते हैं, लेकिन इनके अलावा शास्त्रों के अनुसार दीपावली का यह त्योहार युगों की अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं का भी साक्षी रहा है…, 1-जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की लक्ष्मी अवतरण – कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मां लक्ष्मी समुद्र मंथन द्वारा धरती पर प्रकट हुई थीं- दीपावली के त्योहार को मनाने का सबसे खास कारण यही है, इस पर्व को मां लक्ष्मी के स्वागत के रूप में मनाते हैं और हर घर को सजाया संवारा जाता है ताकि मां का आगमन हो…, 2-जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की भगवान विष्णु द्वारा लक्ष्मी जी को बचाना – इस घटना का उल्लेख हमारे शास्त्रों में मिलता है- कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से माता लक्ष्मी को मुक्त करवाया था…, 3-जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की भगवान राम की विजय – रामायण के अनुसार इस दिन जब भगवान राम, सीताजी और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष का वनवास पूर्ण कर अयोध्या वापिस लौटे थे,उनके स्वागत में पूरी अयोध्या को दीप जलाकर रौशन किया गया था…, 4-जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध कर 16000 स्त्रियों को इसी दिन मुक्त करवाया था-इसी खुशी में दीपावली का त्यौहार दो दिन तक मनाया गया और इसे विजय पर्व के नाम से जाना गया…, 5-जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की पांडवोंं की वापसी – महाभारत के अनुसार जब कौरव और पांडव के बीच होने वाले चौसर के खेल में पांडव हार गए, तो उन्हें 12 वर्ष का अज्ञात वास दिया गया था-पांचों पांडव अपना 12 साल का वनवास समाप्त कर इसी दिन वापस लौटे थे,उनके लौटने की खुशी में दीप जलाकर खुशी के साथ दीपावली मनाई गई थी…, 6-जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की विक्रमादित्य का राजतिलक – बताया जाता है कि राजा विक्रमादित्य का राजतिलक इस दिन किया गया था, जिससे दिवाली का महत्व और खुशियों दुगुनी हो गईं…, 7-जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की आर्य समाज – स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा आर्य समाज की स्थापना भी इसी दिन की गई थी, इस कारण भी दीपावली का त्योहार विशेष महत्व रखता है…, 8-जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की जैन धर्म – दीपावली का दिन जैन संप्रदाय के लोगों के लिए भी विशेष रूप से महत्वपूर्ण है,जैन धर्म इस पर्व को भगवान महावीर जी के मोक्ष दिवस के रूप में मनाता है-ऐसा माना जाता है कि कार्तिक मास की अमावस्या के दिन ही भगवान महावीर को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी…, 9-जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की सिख धर्म – सिख धर्म के लिए भी दीपावली बहुत महत्वपूर्ण पर्व है- इस दिन को सिख धर्म के तीसरे गुरु अमरदास जी ने लाल पत्र दिवस के रूप में मनाया था जिसमें सभी श्रद्धालु गुरु से आशीर्वाद लेने पहुंचे थे,इसके अलावा सन् 1577 में अमृतसर के हरिमंदिर साहिब का शिलान्यास भी दीपावली के दिन ही किया गया था…, 10-जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की सन् 1619 में सिक्ख गुरु हरगोबिन्द जी को ग्वालियर के किले में 52 राजाओं के साथ मुक्त किया जाना भी इस दिन की प्रमुख ऐतिहासिक घटना रही है -इसलिए इस पर्व को सिक्ख समाज बंदी छोड़ दिवस के रूप में भी मनाता हैं, इन राजाओं व हरगोबिंद सिंह जी को मुगल बादशाह जहांगीर ने नजरबंंद किया हुआ था…., आखिर में एक ही बात समझ आई की दिवाली पूजा मंत्र: मां लक्ष्मी मंत्र- ऊं श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद, ऊं श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥ सौभाग्य प्राप्ति मंत्र- ऊं श्रीं ल्कीं महालक्ष्मी महालक्ष्मी एह्येहि सर्व सौभाग्यं देहि मे स्वाहा।। कुबेर मंत्र-ऊं यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिं में देहि दापय। बाक़ी कल , अपनी दुआओं में याद रखियेगा 🙏सावधान रहिये-सुरक्षित रहिये ,अपना और अपनों का ध्यान रखिये ,संकट अभी टला नहीं है ,दो गज की दूरी और मास्क 😷 है जरुरी …! 🌹सुप्रभात🙏 स्वरचित एवं स्वमौलिक “🔱विकास शर्मा’शिवाया ‘”🔱 जयपुर-राजस्थान ©Vikas Sharma Shivaaya' ✒️📇जीवन की पाठशाला 🖋️ 🎉दीपावली के पावन पर्व पर सभी बुजुर्गगणों को सादर चरण स्पर्श ,सभी बराबर के साथियों को प्रेम भरा -निश्छल आलिंगन (गले मिल
PARBHASH KMUAR
जब देवताओं से युद्ध करते हुए असुरों को मृत व पराजित होना पड़ा, तब दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने अपनी शक्तियों से उन सभी को पुनः जीवित कर दिया था। मगर जीवित होने के पश्चात तो जैसे, असुरों के अत्याचार की सारी सीमाएं अतिक्रमित होने लगी। राजा बलि ने भी शुक्राचार्य की कृपा से अपना जीवन लाभ किया था, इसलिए वह भी उनकी सेवा में लग गए। इस दौरान, राजा बलि की सेवा से प्रसन्न होकर शुक्राचार्य ने एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया। इधर, पौराणिक मान्यता के अनुसार, असुरों के हर दूसरे दिन देवताओं पर किए गए अत्याचारों से माता अदिति अत्यंत दुखी हो गईं थीं। उन्होंने अपनी यह व्यथा अपने स्वामी कश्यप ऋषि को सुनाते हुए कहा, “हे स्वामी! मेरे तो सभी पुत्र मारे-मारे फिरते हैं और उन्हें इस अवस्था में देखकर, मेरा हृदय क्रंदन करने लगता है।” अपनी पत्नी की यह बात सुनकर, कश्यप ऋषि ने सोचा, इस व्यथा के समाधान के लिए तो अपना सर्वस्व प्रभु नारायण के चरणों में समर्पित कर, उनकी आराधना करना आवश्यक है। उन्होंने अदिति को भी ऐसा ही करने के लिए कहा। माता अदिति ने तब नारायण का कठोर तप किया और प्रभु भी माता के तप से प्रसन्न होकर उनके पुत्र के रूप में आविर्भूत हुए। अपने गर्भ से ऐसे चतुर्भुज प्रभु के अवतार से माता अदिति तो जैसे धन्य ही हो गईं। वहीं प्रभु ने अवतरित होते ही वामन अवतार धारण कर लिया था। इसके बाद, महर्षि कश्यप ने अन्य ऋषियों के साथ मिलकर उस वामन ब्रह्मचारी का उपनयन संस्कार सम्पन्न किया। इसके बाद, वामन ने अपने पिता से शुक्राचार्य द्वारा आयोजित राजा बलि के अश्वमेध यज्ञ में जाने की आज्ञा ली। यह राजा बलि का अंतिम अश्वमेध यज्ञ था। वामन जैसे ही उस यज्ञ में पहुंचे राजा बलि ने उन्हें देखते ही उनका आदर सत्कार किया और उनसे दान मांगने का आग्रह किया। इस पर वामन ने राजा बलि से कहा, “हे राजन! आपके कुल की शूरता व उदारता जगजाहिर है। मुझे तो बस अपने पदों के समान तीन पद जमीन चाहिए।” राजा बलि उन्हें यह दान देने ही वाले थे, तभी शुक्राचार्य ने उन्हें चेताया, “यह अवश्य ही विष्णु हैं। इनके छलावे में आ गए, तो तुम्हारा सर्वस्व चला जाएगा।” परंतु राजा बलि अपनी बात पर स्थिर रहे। उन्होंने वामन को तीन पद जमीन देने का निर्णय कर लिया। राजा बलि की यह बात सुनते ही वमानवतार श्री विष्णु ने अपना शरीर बड़ा कर लिया और प्रथम दो पदों में ही उन्होंने स्वर्गलोक और धरती को अपने नाम कर लिया। वामन के चरण पड़ने से ब्रह्मांड का आवरण थोड़ा उखर सा गया था एवं इसी स्थान से, ब्रह्मद्रव बह आया था जो बाद में जाकर मां गंगा बनीं। अब वामन ने बलि से पूछा, “राजन! तीसरा पद रखने का स्थान कहां है?” कोई दूसरा ©parbhashrajbcnegmailcomm जब देवताओं से युद्ध करते हुए असुरों को मृत व पराजित होना पड़ा, तब दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने अपनी शक्तियों से उन सभी को पुनः जीवित कर दिया था।
आयुष पंचोली
"दशावतार" जब जब धर्म की होंने लगती हैं हानि, धरती पर बढने लगते हैं, अधर्मी मनुष्य और अभिमानी । रोती हैं जब यह धरती माता खून के आँसू, गोओ का रूदन जब चि
Nk Nitesh
हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ©Nk Nitesh # वामन जयंती
Pawan
हर रोज़ वो अपनी एक दुनिया नापता है, वामन का अवतार है, नंगे पैर स्कूल जाता हैं | ~ पवन