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Saurabh Rana

प्रीत की डोर# कविवर सौरभ राणा

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साथ तुम्हारे प्रीत की, बँधी हमारी डोर।
पर तुम उल्ले छोर हो, अर हम पल्ले छोर।। प्रीत की डोर# कविवर सौरभ राणा

पंडित सरल शर्मा✍️✍️

दीप ऐसे बुझे फिर जले ही नही
                           ज़ख्म ऐसे मिले फिर सिले ही नही
                         व्यर्थ किस्मत पे रोने से क्या फायदा
                         सोच लेना कि हम तुम मिले ही नही
             
   
                                         @कुमार सर❤️🙏 #कुमारसर#कवि#कविवर

SAURABH RANA

कविवर सौरभ राणा #seaside

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मिला है इतना कुछ तुमसे, बड़ी सौगात क्या होगी?
जिताने को खड़े जब तुम, तो मेरी मात क्या होगी?
मेरा अस्तित्व मेरा कल तुम्हारे बल पे ज़िन्दा है,
रहोगे साथ में गर तुम , तो मेरी बात क्या होगी?? कविवर सौरभ राणा

#seaside

Pintoo Kumar

#hbdvirat #बिहारी की ताकत #विचार

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Insane ladkaa

बोलो बाँके बिहारी लाल की... #Thoughts

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knhaiyalal Sain

अटल बिहारी वाजपेई की कविता

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छोटे मन से कोई बङा नहीं हो ता टूटे मन से कोई खङा नहीं होता हार नहीं मानूँगा राहें नहीं ठानूगा काले के कपाल पर लिखता ही जाता हूँ  गिते नया गाता हूँ

©knhaiyalal Sain अटल बिहारी वाजपेई की कविता

manoj kumar jha"Manu"

जय रमण बिहारी जी की

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रमणरेती से निकल
तो आये हैं हम।

मगर "मनु" दिल
तो रमणरेती में ही है।। जय रमण बिहारी जी की

Mr Chandan Diwana

तामिलनाडु में बिहारी की hatya #न्यूज़

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Shantanu Tripathi

अटल बिहारी वाजपेई की कविता #letter

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आओ फिर से दिया जलाएं भरी दुपहरी में अंधियारा सूरज परछाई से हारा अंतरतम का नेह निचोड़े-बुझी हुई बाती सुलगाएं आओ फिर से दिया जलाएं।                                                         हम पड़ाव को समझे मंजिल लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल वर्तमान के मोंह जाल में आने वाला कल ना भुलाएं आओ फिर से दिया जलाएं।                   आहुति‌ बाकी यज्ञ अधूरा अपनों के विघ्नों ने घेरा अंतिम जय का वज्र बनाने नव दधीचि हड्डियां गलाएं आओ फिर से दिया जलाएं

©Shantanu Tripathi
  अटल बिहारी वाजपेई की कविता
#letter

Shantanu Tripathi

अटल बिहारी वाजपेई की कविता #letter

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आओ फिर से दिया जलाएं भरी दुपहरी में अंधियारा सूरज परछाई से हारा अंतरतम का नेह निचोड़े-बुझी हुई बाती सुलगाएं आओ फिर से दिया जलाएं।                                                         हम पड़ाव को समझे मंजिल लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल वर्तमान के मोंह जाल में आने वाला कल ना भुलाएं आओ फिर से दिया जलाएं।                   आहुति‌ बाकी यज्ञ अधूरा अपनों के विघ्नों ने घेरा अंतिम जय का वज्र बनाने नव दधीचि हड्डियां गलाएं आओ फिर से दिया जलाएं

©Shantanu Tripathi अटल बिहारी वाजपेई की कविता
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