Find the Latest Status about वसंत ऋतु कविता from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, वसंत ऋतु कविता.
Dr. Bhagwan Sahay Meena
White दहक रही है अग्नि, मरूधरा के आंचल में। लूं की लपटे सुलग रही, प्रभाकर के आंगन में। ©Dr. Bhagwan Sahay Meena #summer_vacation ग्रीष्म ऋतु
Gurudeen Verma
White शीर्षक- इस ठग को क्या नाम दे --------------------------------------------------------- बड़े नम्बरी होते हैं वो आदमी, जो करते हैं शोषण छोटे आदमी का, और छीन लेते हैं उधारी चुकाने के नाम पर, गरीब आदमी की जमीन और आजादी। लेते हैं काम छोटे आदमी को, कोल्हू के बैल की तरह दिनरात, एक वर्ष की मजदूरी बीस हजार देकर, जबकि होते हैं खर्च पाँच हजार एक माह में। लेता है ब्याज बहुत वो आदमी, छोटे आदमी को देकर उधार रुपये, बड़े ही ठाठ होते हैं इन आदमियों के, जिनके होते हैं मकां महलनुमा। होती है उनकी जिंदगी राजा सी, जिनके एक ही आदेश पर, हो जाते हैं सारे काम, और हाजिर नौकर चाकरी में। कमाता होगा इतने रुपये वह आदमी, मेहनत की कमाई से कभी भी नहीं, बनाता है वह अपनी इतनी सम्पत्ति, भ्रष्टाचार और दो नम्बर की कमाई से। लेकिन एक ऐसा आदमी भी है, जो लेता है बड़े आदमी से भी ज्यादा दाम, करता नहीं रहम वो अपने भाई पर भी, और कोसता है वह बड़े आदमी, इस ठग को क्या नाम दे।। शिक्षक एवं साहित्यकार गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान) ©Gurudeen Verma #कविता
r̴i̴t̴i̴k̴a̴ shukla
मुझे पता है रात का ढल जाना तय है। सुबह का आना तय है। उलझन, परेशानी, थोड़ी सी बेचैनी थोड़ी सी हैरानी, डर कुछ खोने का, शुन्य सी ये जो दशा है। बस कुछ पल का है, बस कुछ पल का है।। शून्य मे एक और एक मे अनेक शुन्य जुड़ जाना तय है। हवा अभी खुद के विरुद्ध है तो क्या एक दिन इसका सुर मे ताल मिलाना तय है।। इन चुनौतियों का हार जाना तय है। मुझे पता है, शायद आज नही, कल नही हो सकता है परसो भी नही,, लेकिन एक ना एक दिन मेरा जीत जाना तय है।। पतझड़ का जाना तय है। वसंत का आना तय है।। ©r̴i̴t̴i̴k̴a̴ shukla #ballet वसंत का आना तय है।
Shiv gopal awasthi
ऐसा पढ़ना भी क्या पढ़ना,मन की पुस्तक पढ़ न पाए, भले चढ़े हों रोज हिमालय,घर की सीढ़ी चढ़ न पाए। पता चला है बढ़े बहुत हैं,शोहरत भी है खूब कमाई, लेकिन दिशा गलत थी उनकी,सही दिशा में बढ़ न पाए। बाँट रहे थे मृदु मुस्कानें,मेरे हिस्से डाँट लिखी थी, सोच रहा था उनसे लड़ना ,प्रेम विवश हम लड़ न पाए। उनका ये सौभाग्य कहूँ या,अपना ही दुर्भाग्य कहूँ मैं, दोष सभी थे उनके लेकिन,उनके मत्थे मढ़ न पाए। थे शर्मीले हम स्वभाव से,प्रेम पत्र तक लिखे न हमने। चंद्र रश्मियाँ चुगीं हमेशा,सपनें भी हम गढ़ न पाए। कवि-शिव गोपाल अवस्थी ©Shiv gopal awasthi कविता
Shahid0007
Autumn गुलों के रास्ते में, कांटे तो आयेंगे ही, चुभेंगे पावों में,और दिल को दहलाएंगे भी, हो सकता है डर भी लगे,और मन कहे घर लौटने को मगर, ये कांटे ही गुलों तक पहुंचाएंगे भी 🙂 ©Shahid0007 #कविता