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Datta Dhondiram Daware
मनुवादी किडे अधिकच वळवळत आहे..! करु शकत नाही कुणी तुझी तुलना, जळत होते आणि जळत आहे..! ज्ञानाचा पसारा तुच मांडला, न्यायहक्कासाठी तुच भांडला! केली नेस्तनाबूत जूलूमशाही, ना थेंब कधी रक्ताचा सांडला! ऊध्वस्त करण्या तुझ अस्तित्व, मनुवादी पावल पुढ वळत आहे! खरच, बा भिमा करु शकत नाही कुणी तुझी तुलना जळत होते आणि जळत आहे! ह्यांच्या सडक्या मेंदूत जन्मते सडकी घृणा.. ना कोमल मन हृदयी कठोर पाषाणा.. कधी तुझी विटंबना कधी क्रूर जातीय हल्ला.. भडवे,दलाली,मुर्दाड, तुझ्या नावावर भरत आहे गल्ला.. गुलामी केली आजवर, आता मानसीक गुलामी छळत आहे.. खरच बा भिमा करु शकत नाही कुणी तुझी तुलना, जळत होते आणि जळत आहे.. सम्राट दत्ता डावरे ९७३००३७०५३ मनुवादी विचार
मनुवादी विचार #thought
read moreMihir Choudhary
तुमने तो हँस के पूछा था बोलो न कितना प्रेम है बोलो कैसे मैं बतलाता बोलो ना कैसे समझता जब अहसास समंदर होता है तो शब्द नही फिर मिलते हैं उन बेहिसाब से चाहत को कैसे कैसे मैं बतलाता बोलो न कैसे दिखलाता बोलो न कैसे समझता तब भी हिसाब का कच्चा था अब भी हिसाब का कच्चा हूँ जो था वो ना मेरे बस का था अब तो जो हालात हुए उनसे तो मैं अब बेबस हूं अब अंदर -अंदर सब जलता है लावा जैसा सा कुछ पलता है धीमे धीमे कुछ रिसता है कुछ टूट-टूट के पीसता है नस-नस मैं जैसे कुछ खौलता है धड़कन बिजली सा दौड़ता है अब बेहिसाब ये यादे है बस बेहिसाब ये चाहत है बोलो क्या वो प्रेम ही था बोलो न क्या ये प्रेम ही है मिहिर... बिरहा
बिरहा
read moreAnuj Ray
" बिरहा की रातें" न धुंआ न कहीं ,आग जला करती है, बिरहा की रातें यूं ही ,खामोश जला करती हैं जलता है बदन आग की लपटों में,दो बूंद की उम्मीद लिये, बेबसी हाथ मला करती है। फागुन का महीना हो, या घनी सावनी रातें, पिया मिलन की आस में, यूं ही ख़ला करती हैं। ©Anuj Ray #बिरहा की रातें
#बिरहा की रातें
read moreसतीश तिवारी 'सरस'
डॉ. प्रकाश जी डोंगरे की पंक्तियाँ जलती सड़कों पर जो एक अकेला आदमी गुलमोहर की तलाश में नंगे पाँव जा रहा है व्यवस्था का सूरज सबसे अधिक उससे ही घबरा रहा है। ''बूढ़ा पिता और आम का पेड़'' काव्य संग्रह से साभार ©सतीश तिवारी 'सरस' #व्यवस्था
Author Harsh Ranjan
दुनिया के कानूनों ने मुझे ये सिखाया है कि घोड़ा और गधा एक है, व्यवस्था की नजर में! या कहें कि घोड़ापन अथवा है। दुनिया का गधों के लिए यही जज्बा है। सर्वत्र संसार में अकाल व्याप्त है! भूख और भूख का डर जल और वायु से भी पर्याप्त है। कमाने वालों को कम खाने के गुण बताए जा रहे हैं और लोग उनकी रसोई के आटे-दाल से भंडारे करवाये जा रहे हैं। किसी ने मेरे कानों में धीमे से कहा है, एक किसान दो फसल काटकर भी आयु में उतना कमाता है कि उसके तीन पुश्त एक भी रात भूखे न गुजारें! पर ये गांव वालों को कैसे समझाएं कि बेरोजगारी के दिन-रात बिस्तर पर न गुजारें! अगर धरती पर पड़ा होना ही अस्तित्व है तो ये व्यवस्था मानव से ज्यादा मवेशियों के निमित्त है। व्यवस्था
व्यवस्था
read moreAuthor Harsh Ranjan
दुनिया के कानूनों ने मुझे ये सिखाया है कि घोड़ा और गधा एक है, व्यवस्था की नजर में! या कहें कि घोड़ापन अथवा है। दुनिया का गधों के लिए यही जज्बा है। सर्वत्र संसार में अकाल व्याप्त है! भूख और भूख का डर जल और वायु से भी पर्याप्त है। कमाने वालों को कम खाने के गुण बताए जा रहे हैं और लोग उनकी रसोई के आटे-दाल से भंडारे करवाये जा रहे हैं। किसी ने मेरे कानों में धीमे से कहा है, एक किसान दो फसल काटकर भी आयु में उतना कमाता है कि उसके तीन पुश्त एक भी रात भूखे न गुजारें! पर ये गांव वालों को कैसे समझाएं कि बेरोजगारी के दिन-रात बिस्तर पर न गुजारें! अगर धरती पर पड़ा होना ही अस्तित्व है तो ये व्यवस्था मानव से ज्यादा मवेशियों के निमित्त है। व्यवस्था
व्यवस्था
read moresomnath gawade
प्रचलित व्यवस्थेविषयी 'व्यवस्थित' बोलले नाहीतर 'व्यवस्था' आपल्याला व्यवस्थित जागी पोहचविते. 🤣😂 #व्यवस्था
Mahesh Kumar
जब तक देश के गद्दारों को कानून का डर नहीं होगा । तब तक देश की समस्याओं का कोई भी हल नहीं होगा । कानून व्यवस्था
कानून व्यवस्था #विचार
read moreDeepa Didi Prajapati
🙏 विचार क्रांति 🙏 देश में किसी भी सरकार द्वारा कोई कार्य आवश्यक रूप से किया जाना है तो वह है, कानून व्यवस्था जिसका फायदा नेतागण, उनसे जुड़े लोग, प्रशासन गुंडे आदि भ्रष्ट लोग उठा रहे हैं। कार्य कठिन है किन्तु नामुमकिन नहीं योजनाएं बहुत हो सकती है। ©Deepa Didi Prajapati #कानून_ व्यवस्था