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Parasram Arora
सुदूर घाटी मे एक वृक्ष का एक पत्ता भी हिलता हैँ तो चाँद तारे भी हिलते हैँ एक नन्ही सी घास की पती भी सूरज की किरणों से जुडी हैँ एक कोमल सी कली भी जब लहर का स्पर्श पाती हैँ अनंत दूरी पर आकाश मे खडे तारे भी प्रसन्नता से खिल जाते हैँ सब कुछ सयुंक्त हैँ और इस संयुक्तता का नाम परमात्मा हैँ संयुक्तता.... अर्थात परमात्मा
कवी दिपक सोनवणे
मार्ग जर निराळा निवडला असेल तर विचार सुद्धा निराळेच असतात कुठे फसतात तर कुठे जोमाने उभे राहतात नवीन अर्थात मी
Pushpvritiya
उन आंखों ने मानो "नियति" देखी थी......" ठहराव" ही श्रेयस्कर मान बैठीं थीं...... @पुष्पवृतियां . . ©Pushpvritiya श्रेयस्कर अर्थात मंगलकारी
Pushpvritiya
कभी कभी कल्पनाओं के ढेऊ संग हो आती हूं दूर तक......... बहुत दूर तक........ जहां ढह जाते हैं कई यथार्थ.... झांकती है रिक्तता निर्माणों से....... एक शून्य विचरता होता है गढ़न के कई विकल्प लिए............ चुन लेती हूं कुछ निष्कर्ष और उनकी संभावनाएं....... लौटती हूं उसी यथार्थ पर पुन: एक नूतन यथार्थ धारण किए................. @पुष्पवृतियां ©Pushpvritiya ढेऊ..अर्थात.. लहरें #SunSet
Pushpvritiya
मैं कभी पथविहीन नहीं होती हां....भावविहीन अवश्य हो जाती हूं.... यात्रा....... केवल गमन से गंतव्य तक भाव रहित विधेय मनन से मंतव्य तक... कहते हैं..... भाव विहीन कर्म निष्फल जाते हैं आश्चर्य..... कर्म में फल की अपेक्षा का योग भी पाते हैं..... मेरे अनुसार तो नहीं...... खैर.... यूं रिक्त हो विधेय दिशानिर्देश अवश्य दे पाऊंगी..... हां... अंत परिणत शिला हो जाऊंगी.... संतापित मन भुरभुरा रह जाएगा स्पर्श मात्र जो ढह जाएगा..... कहेगा.... एक और कर्म रिक्त हो एक और बार कर। स्वकर्म यज्ञ पूर्णाहुति में मेरा अंतिम संस्कार कर......... @पुष्पवृतियां ©Pushpvritiya विधेय अर्थात कर्तव्य #Searching
Pushpvritiya
निरखत छवि रजनीभर पिया, "हिय" लागी....नयन रतजगा आई रे........... नेह मौली लिए इक तेरे नाम की, "वटबियाही" के तन पर लगा आई रे......... @पुष्पवृतियां ©Pushpvritiya कुछ यूं ही सा.... हिय...अर्थात हृदय मौली अर्थात विशेष प्रकार का धागा वटबियाही अर्थात बरगद का विवाहित पेड़
Adarsh Sahare
किसी कहा "अपने मनोवृत्ति, व्यवहार, प्रकृति, आचरन को एक वाक्य में बताओ " मैंने भी पूर्ण शक्ति में कहा "मेरे सामने का शख्स जैसा मैं वैसा " ☺️☺️ अर्थात जो बोओगे वहीं पाओगे
Pushpvritiya
हर रुप पाया तुममें,पिता पति पुत्र सखा भ्रात तात...तुम, और जिस शुन्य में मैं तुममें एकाकार होती हूं, वह निर्वात तुम, कि मेरे लिए प्रेम अर्थात तुम......... केवल तुम............ @पुष्पवृतियां . . . ©Pushpvritiya प्रेम अर्थात तुम केवल तुम
अशेष_शून्य
पेंसिल से पेन तक का सफ़र सीखता है कि उम्र की हर कक्षा में गलतियां मिटाने का अवसर हर बार नहीं मिलता । बार बार मिटाकर लिखने से पन्ने सिकुड़ जाते हैं और सिकुड़ी हुई रेखाओं में लिखा हुआ सही शब्द भी धुंधला जाता है । इसलिए समय रहते हमें पेन, पैर, जुबान और दिमाग सही दिशा और दशा में पूरी मजबूती से रखना सीखना होता है ।। ताकि हमारा चरित्र कभी लड़खड़ाए न और ना कभी हमारा अस्तित्व धुंधलाए । क्यूंकि ये दो ऐसे सच हैं जिन्हें मिटाकर फिर से कभी नहीं लिखा जा सकता। ~© अंजली राय पोस्ट - अल्पकालिक अर्थात टेंपररी 🤐