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Usha Yadav
नाचता यह मन मेरा हो के अब विभोर देखता ना ठावँ है इस ओर है उस ठौर उद्वेलित से यह भाव मेरे है सोचते सब ओर मिलन की चाह में तेरे इस और है उस और अहम का नाश कर तू भी तिमिर निशा का रूप धर! ना हताश ! हो तू भी ओर ना ही निराश बन क्योंकि! आज भी हैं तुम्हारा कल को भी तू अपना कर नाचता यह मन मेरा हो के अब विभोर! उषा यादव ©Usha Yadav मन विभोर
Dr ABHIMANYU PARASHAR
मैं हूँ शिक्षा की नगरी, जो रहती हूं हमेशा साफ-सुथरी, यह कैसा दिन है आया, हाय किसकी नजर लगी बुरी, करो ना है भाई परीक्षा की घड़ी, मेरा दिल घबराता, कब खत्म होगी ये घड़ी, घर बंदी से जी घबराया, ये कैसा दिन है आया, कोरोना है महामारी, ये छूत की बीमारी, ऐसे में घर से निकलना, पड़ जाएगा भारी, साबुन से हाथ धोना हैं जरूरी, आपस मे बना के रखो थोड़ी दूरी, पर मन की मन से मत रखना "पाराशर" कभी भी तुम दूरी। ज्योतिषाचार्य पं. अभिमन्यू पाराशर, जलाराम बापा ज्योतिष संस्थान शिमला (झुंझुनूं) 9413723865 पाराशर:--कविता
राधे किशोरी पाराशर
जय श्री राम ©राधे किशोरी पाराशर राधे किशोरी पाराशर
R K Mishra " सूर्य "
मैं कितना आत्म विभोर था ना कहीं भी कोई शोर था जो घर में जाकर बैठ गया कितना ये शातिर चोर था मैं कितना...... चिंतित बस इस बात से हूं अपनो के मीठे घात से हूं चूक हुई अपनों से थी जबकी चारो ओर अजोर था मैं कितना...... वो आज भी मेरे अपने हैं दिखलाते मीठे सपने है ना कहते कभी भूल कर भी अधियारा मन में घनघोर था मैं कितना....... जीवन बीच अधर में है कोई दिखता नहीं सफ़र में है ऐ"सूर्य" उजाला कब होगा कुछ गीला नयन का कोर था मैं कितना....... ©R K Mishra " सूर्य " #आत्म विभोर
Arora PR
दुख के सागर से परे एक टापू मुझे और भी दिख जाता हैँ ज़ब मै किसी मासूम सी किलकारी को सुन कर आत्म विभोर हो जाता हू ©Arora PR आत्म विभोर