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Vishw Shanti Sanatan Seva Trust
सफला एकादशी पर आज अवश्य पढ़ें यह कथा, वरना निष्फल हो सकता है व्रत पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत हजारों वर्ष तक तपस्या करने से मिलने वाले पुण्य को देने वाली है, जिसे सफला एकादशी कहते हैं. सफला एकादशी का व्रत आज 30 दिसंबर दिन गुरुवार को है. आज सफला एकादशी के दिन व्रत रखते हुए भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. इस बार सफला एकादशी गुरुवार के ही दिन है, तो इसका महत्व विशेष है. गुरुवार को भगवान विष्णु की पूजा होती है. इस बार सफला एकादशी का व्रत करने गुरुवार व्रत का भी लाभ प्राप्त होगा. सफला एकादशी के दिन जो लोग व्रत रखते हैं, उनको पूजा के समय सफला एकादशी व्रत कथा का श्रवण जरूर करना चाहिए. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हम जो भी व्रत रखते हैं, उस व्रत कथा का श्रवण करना व्रत को पूर्ण करने वाला होता है. उससे पुण्य प्राप्त होता है. आइए जानते हैं सफला एकादशी व्रत कथा के बारे में. सफला एकादशी व्रत कथा एक बार भगवान श्रीकृष्ण से युधिष्ठिर ने सफला एकादशी के व्रत की महिमा और महत्व के बारे में जानना चाहा. तब भगवान श्रीकृष्ण ने सफला एकादशी व्रत की कथा सुनाई, जो इस प्रकार से है. पुद्मपुराण के अनुसार, चंपावती नगरी के राजा महिष्मान थे. उनके पांच पुत्र थे, जिनमें उनका बड़ा पुत्र अधर्मी एवं चरित्रहीन था. वह हमेशा ही देवी देवताओं का अपमान एवं निंदा करता रहता था. मांस भक्षण एवं मदिरा पान करना उसकी आदत थी. उससे दुखी होकर राजा महिष्मान ने उसका नाम लुंभक रख दिया और उसे अपने राज्य से बाहर कर दिया. पिता के इस व्यवहार से लुंभक जंगल में जाकर रहने लगा. कुछ समय व्यतीत होने के बाद पौष माह के कृष्ण पक्ष की दशमी की रात आई. उस दिन काफी ठंड थी, जिससे परेशान होकर लंभक सो नहीं पाया. सर्दी के मारे उसकी हालत खराब थी. अगली सुबह एकादशी के दिन वह मृतप्राय हो गया था. दोपहर के समय सूरज की किरणें उस पर पडीं, तो उसे होश आई. पानी पीने के बाद उसके शरीर में कुछ शक्ति आई, तो वह फल तोड़ने निकल पड़ा. शाम को फल लेकर आया और उसे एक पीपल के पेड़ की जड़ के पास रख दिया. वहां बैठकर वह स्वयं की किस्मत को कोसने लगे. बाद में उसने उन फलों को भगवान विष्णु को समर्पित करते हुए कहा कि हे लक्ष्मीपति भगवान श्रीहरि विष्णु! आप प्रसन्न हों. उस दिन सफला एकादशी थी. लुंभक ने जैसे तैसे पूरा दिन व्यतीत किया और रात में सर्दी के कारण सो नहीं पाया. पूरी रात्रि जागरण करते हुए ही व्यतीत हुई. अनजाने में ही उसने सफला एकादशी का व्रत कर लिया. सफला एकादशी व्रत के प्रभाव से वह धर्म के मार्ग पर चलने लगा, उसमें सत्कर्म वाली प्रवृत्ति आ गई. कुछ समय बाद जब इसकी जानकारी राजा महिष्मान को हुई, तो उन्होंने लुंभक को राज्य में वापस लाए. राजा महिष्मान ने पुत्र लुंभक को चंपावती नगरी का राजा बना दिया और राजकाज सौंप दिया. राजा महिष्मान स्वयं तप करने जंगल में चले गए. कुछ समय बाद लुंभक को एक पुत्र हुआ, जिसका नाम मनोज्ञ रखा गया. जब वह बड़ा हुआ तो कुंभक ने अपने पुत्र को सत्ता सौंप दी और स्वयं भगवान विष्णु की भक्ति में लीन होकर मोक्ष प्राप्त किया. इस प्रकार से सफला एकादशी व्यक्ति के कार्य सफल करती है और मोक्ष देती है ©Vishw Shanti Sanatan Seva Trust सफला एकादशी पर आज अवश्य पढ़ें यह कथा, वरना निष्फल हो सकता है व्रत पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत हजारों वर्ष तक तपस्या करने से मिलन
Vikas Sharma Shivaaya'
एकादशी:- हिंदू पंचांग की ग्यारहवी तिथि को एकादशी कहते हैं। यह तिथि मास में दो बार आती है। पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद। पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहते हैं। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है इसलिए एकादशी को हरि वासर या हरि का दिन भी कहा जाता है। एक ही दशा में रहते हुए अपने आराध्य का अर्चन-वंदन करने की प्रेरणा देने वाला व्रत ही 'एकादशी व्रत' है। एकादशी का नाम मास पक्ष:- कामदा एकादशी- चैत्र शुक्ल वरूथिनी एकादशी- वैशाख कृष्ण मोहिनी एकादशी -वैशाख शुक्ल अपरा एकादशी -ज्येष्ठ कृष्ण निर्जला एकादशी- ज्येष्ठ शुक्ल योगिनी एकादशी- आषाढ़ कृष्ण देवशयनी एकादशी -आषाढ़ शुक्ल कामिका एकादशी- श्रावण कृष्ण पुत्रदा एकादशी- श्रावण शुक्ल अजा एकादशी- भाद्रपद कृष्ण परिवर्तिनी एकादशी- भाद्रपद शुक्ल इंदिरा एकादशी -आश्विन कृष्ण पापांकुशा एकादशी- आश्विन शुक्ल रमा एकादशी -कार्तिक कृष्ण देव प्रबोधिनी एकादशी -कार्तिक शुक्ल उत्पन्ना एकादशी- मार्गशीर्ष कृष्ण मोक्षदा एकादशी- मार्गशीर्ष शुक्ल सफला एकादशी- पौष कृष्ण पुत्रदा एकादशी- पौष शुक्ल षटतिला एकादशी -माघ कृष्ण जया एकादशी- माघ शुक् ल विजया एकादशी- फाल्गुन कृष्ण आमलकी एकादशी- फाल्गुन शुक्ल पापमोचिनी एकादशी- चैत्र कृष्ण पद्मिनी एकादशी- अधिक मास शुक्ल परमा एकादशी -अधिक मास कृष्ण पुत्रदा एकादशी:- पुत्रदा एकादशी को वैकुंठ एकादशी भी कहते हैं- पुत्रदा एकादशी के पुण्य फल से व्यक्ति को पुत्र की प्राप्ति होती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है. पंचांग के अनुसार, पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी या वैकुंठ एकादशी व्रत रखा जाता है. पुत्रदा एकादशी व्रत हर संतानहीन दंपत्ति को रखने के लिए कहा जाता है. विष्णु सहस्रनाम( एक हजार नाम) आज 312 से 322 नाम 312 नहुषः भूतों को माया से बाँधने वाले 313 वृषः कामनाओं की वर्षा करने वाले 314 क्रोधहा साधुओं का क्रोध नष्ट करने वाले 315 क्रोधकृत्कर्ता क्रोध करने वाले दैत्यादिकों के कर्तन करने वाले हैं 316 विश्वबाहुः जिनके बाहु सब और हैं 317 महीधरः महि (पृथ्वी) को धारण करते हैं 318 अच्युतः छः भावविकारों से रहित रहने वाले 319 प्रथितः जगत की उत्पत्ति आदि कर्मो से प्रसिद्ध 320 प्राणः हिरण्यगर्भ रूप से प्रजा को जीवन देने वाले 321 प्राणदः देवताओं और दैत्यों को प्राण देने या नष्ट करने वाले हैं 322 वासवानुजः वासव (इंद्र) के अनुज (वामन अवतार) 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 . ©Vikas Sharma Shivaaya' एकादशी:- हिंदू पंचांग की ग्यारहवी तिथि को एकादशी कहते हैं। यह तिथि मास में दो बार आती है। पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद। पूर्णिमा के बा
Author Munesh sharma 'Nirjhara'
निर्जला एकादशी की अनंत शुभकामनाएं भगवान विष्णु इस चराचर जगत पर अपनी कृपा बनाये रखें ©Neha M sharma 'Nirjhara' #एकादशी
M R Mehata(रानिसीगं )
जय माता दी एकादशी महाव्रत ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय ©M R Mehata एकादशी
Jitendra Kumar
एकादशी एक महत्त्वपूर्ण तिथि है, जिसका हिन्दू धर्म में बड़ा ही धार्मिक महत्त्व है। प्रत्येक मास में दो 'एकादशी' होती हैं। 'अमावस्या' और 'पूर्णिमा' के दस दिन बाद ग्यारहवीं तिथि 'एकादशी' कहलाती है। एकादशी का व्रत पुण्य संचय करने में सहायक होता है। प्रत्येक पक्ष की एकादशी का अपना महत्त्व है। एकादशी व्रत का अर्थ विस्तार यह भी कहा जाता है कि "एक ही दशा में रहते हुए अपने आराध्य का अर्चन-वंदन करने की प्रेरणा देने वाला व्रत ही एकादशी है।" इस व्रत में स्वाध्याय की सहज वृत्ति अपनाकर ईश आराधना में लगना और दिन-रात केवल ईश चितंन की स्थिति में रहने का यत्न एकादशी का व्रत करना माना जाता है। स्वर्ण दान, भूमि दान, अन्नदान, गौ दान, कन्यादान आदि करने से जो पुण्य प्राप्त होता है एवं ग्रहण के समय स्नान-दान करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, कठिन तपस्या, तीर्थयात्रा एवं अश्वमेध आदि यज्ञ करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, इन सबसे अधिक पुण्य एकादशी व्रत रखने से प्राप्त होता है। ©Jitendra Kumar एकादशी
Bhairav
🚩ॐ विष्णवे नमः🚩 shraddhaabhaktee90@gmail.com सभी भक्त आज के दिन भोजन में चावल ग्रहण न करे 18-04-2020 ॐ नमः भगवते वासुदेवाय नमः 📿 मंत्र का 11 बार कम से कम जप करे... shraddhaabhaktee 90@gmail.com 💐🤝🏻💐 राधे-राधे #एकादशी
The rash
दूसरा मौका सब को मिलता है गालिब.... पहली बाज़ी सब ने हारी हुई होती है.... ©Reshu #दूसरा_मौका✌ #सफला #प्रयास #सफर_ए_ज़िन्दगी #यूपीएससी #letscrackupsc