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Sarita Shreyasi
रेशमी डोरियों में बँध के, व्यस्त घड़ियाँ भी थम गयीं, माँ के लोरियों की थाप में, सूखी संवेदना भी नम गयीं। रेशमी डोरियों में बँध के, व्यस्त घड़ियाँ भी थम गयीं, माँ के लोरियों की थाप में, सूखी संवेदना भी नम गयीं।
सुसि ग़ाफ़िल
जैसे हवा में उड़ा दिया हो कोई पुष्प एक ही झटके से बिखर कर आ रहा है वह आसमान से पृथ्वी की तरफ उसकी पत्तियों में छेद कर दिए हवाओं ने पुंकेसर औ
BlAcK CiGaReTtE
#DearZindagi NAZM~"पहले" ........................... पहले तुम्हारी ज़ुल्फों से जब हवा उलझते हुये सरसब्ज़ होती थी तो कितनी लरजती थीं तुम्हारी ज़ुल्फें, पहले जब हवा तुम्हारी कानों की बालियों पे अपने हाथों की दो उँगलियों से ठक करके गुज़रती थी तो एक झनक उठती थी तुम्हारे काँधे से टकराकर, तुम्हारे बिन्दिए के इर्द गिर्द घुमती हुयी हवा एक भँवर भी तो बनाती थी पहले, रेत पर पानी की तरह एक हया जब फैलती थी तुम्हारे चेहरे पर तो ये नरगिसी आँखे तुम्हारी नीमबाज़ हो जाती थीं, जब तुम्हारे लबों से निकलते थे लफ़्ज़ों के तिनके तो कितने सारे परिंदे उड़ते हुये आते थे और हवा में ही हवाओं से झपट लेते थे वो सब तिनके, एक मुस्कान जो तुम्हारे होठों की डोरियों को रह रह कर खींचती छोड़ती रहती थी क्या आज भी वो ऐसा करती है? क्या आज भी वो सब होता है जो पहले हुआ करता था Written by-"NISHANT" #nojotomusic #nojotostories #nojotoshayari #nojotopoetry #nojotoquotes #ghazal #nazm NAZM~"पहले" ........................... पहले तुम्हारी ज
Sarita Shreyasi
छोटी थी,तो दादी की भूमिका,मैं ठीक समझ नहीं पाती थी, यदि अच्छी थी तो,गुस्सा क्यूँ दिखाती थी, सच्ची थी तो,कुछ बातें क्यूँ छिपाती थी? गलती पापा की हो तो दादा से डाँट खाती, जब दादा सही नहीं होते तो पापा की सुनती, खारी,भींगी मुस्कान में,दोनों की बात गुमा देती। चौखट और चौबारे पर बैठी स्त्री को, समय के साथ, समझने की जिद में मैंने उधेड़ दिया पूरी तरह,माँ के किरदार को, मर्यादा के महीन आवरण में बुने कर्तव्यों, और सौंधी चाशनी में चिपके अधिकार को। आज उसी उघड़े धागे से,खुद को बुनती जाती हूँ, पुराने अनुभवों और नये विचारों के बुने कपड़े से, रोज बेटी के सच और सोच सिलती हूँ, सपनों को एक नया जामा पहनाती हूँ, पुरातन लिबास छोड़,नित नुतन अपनाती हूँ। सदियों से हर स्त्री, एक ही कतली से ये सूत निकालती है,माँ से सीखती है, अतीत उधेड़ती है,आज को बुनती है, कल की कोख में कल्पना रंग डालती है, रेशमी डोरियों से बुनी चादर में,बेटी के लिए सितारे टाँकती है। छोटी थी,तो दादी की भूमिका, मैं ठीक समझ नहीं पाती थी, यदि अच्छी थी तो,गुस्सा क्यूँ दिखाती थी, सच्ची थी तो,कुछ बातें क्यूँ छिपाती थी? गलती पाप
Azad
कुछ बातें, वो अधूरी मुलाकाते ( जाने से पहले आँखो को पढ़ जाते ) अनुशीर्षक् पढ़े... सुनो, शहर मे भीड़ बढ़ गयी मैं तेरे गाँव आया हँ! बहुत हो गयी बरिशे मैं थोड़ी छाँव लाया हूँ!! 😉
Rachna Mishra
इस शहर से निकला ये लिफाफा, उस शहर तक पहुंचते पहुंचते, जाने किस मालगाड़ी के अंधेरे घुटन भरे कोने से होकर, किस डाकिये के बेपरवाह हाथों से गुज़रते हुए, अपनी अहमियत खोता जाता है, मैं आज तक जान नहीं पाई। (read full artical in caption) #रिश्तों_में_बदलाव बदलता वक़्त ...बदलते रिश्ते... और बदलते हम .... इन सबके बीच अगर कुछ नहीं बदला.... तो वो हैं दिल के किसी कोने में छुपे कु