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Vikash Bakshi
आसमान के तख्त पर, एक गुमनाम सा शहर पला है, काली सी है फर्श उसकी, जैसे गहरी आग में जला है, उठ रहा है धुआं सा शहर से, जैसे धुआं भी सतह पर चला है, ना जाने कैसा मौसम है वहां का जो आकाश वहां घनघोर नीला है।। बादलों के ऊपर जो जहान है वो अदभुत , आनंदमई, अविश्वसनीय, सुकुंदायक तो है मगर धरती पर पर्यावरण के साथ किए हमारे दुरेवहवार का आइना है। जिस प्रक
Pen of a Soul
आसमान के तख्त पर, एक गुमनाम सा शहर पला है, काली सी है फर्श उसकी, जैसे गहरी आग में जला है, उठ रहा है धुआं सा शहर से, जैसे धुआं भी सतह पर चला है, ना जाने कैसा मौसम है वहां का जो आकाश वहां घनघोर नीला है।। बादलों के ऊपर जो जहान है वो अदभुत , आनंदमई, अविश्वसनीय, सुकुंदायक तो है मगर धरती पर पर्यावरण के साथ किए हमारे दुरेवहवार का आइना है। जिस प्रक
TabishAhmad 'تابش '
हमर की दोख? घूम-घूम बेच लौं सब्जी और फर, अनका दिन में नै बुझायल हम छि कौन? ई कॅरोना में हम भ गेलौं जनमानस के दुश्मन, सब गोटे देलक हमरे ई महामारी के दोख! मुंह में यै पान पहनने छि लुंगी, मुदा हम छि मैथिल मुस्लिम! संसारक दृष्टि में नै छै किछु कॅरोना के धर्म, फिर किया भ रहल यै मन में ककरो शंका? हमर की दोख? जेकरा संग बैसलौं खूब कर लौं हाहा ठि-ठि, आय ओ क रहल हमरा संग भेदभाव! कक्का काकी कहत मन नै थाके छेला, आय दुरे देख हमरा से मुंह फेरला, मन क रहल यै कचोट, हमर की दोख? खोलै छि आय जब अपन व्हाट्सएप, ऐब रहल यै हमरा मित्रक संदेश, रौ ताबिशवा तोहर जाति धर्म फैला रहल हौ कॅरोना, आय ओकर संदेश देख हमर मन भ रहल विचलित, ओकर ज्ञान पर हमरा आबै यै हंसी, आशा यै ईश्वर से खुलतै एक दिना ओकरो ज्ञानक पट! हमर की दोख? हमर की दोख? घूम-घूम बेच लौं सब्जी और फर, अनका दिन में नै बुझायल हम छि कौन? ई कॅरोना में हम भ गेलौं जनमानस के दुश्मन, सब गोटे देलक हमरे ई मह
Raveena
एक कहानी.. योगावासिष्टम की कर्कटी उपोख्यानाम से.... " ॐ ह्रिम ह्राम रीम राम विष्णु सक्तये नमः ॐ नमो भगवती विष्णुसक्तीमेनाम ॐ हर हर नय नय पच पच मध मध उत्सादया दुरे कुरु स्वाहा हिमवंतम गच्छा जीव सः सः सः चन्द्र मण्डल गतोसी स्वा ः" # कर्कटी नाम की एक महा राक्षसी थी। बहुत सारे जानवर, हज़ारों लोगों को पापड़ की तरह खाने के बाद भी उसका भूख नहीं मिटता था, जितना भी खाए उसकी प
Sagar vm Jangid
अगर मैं रावण होता तो जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् #dashhara #ravan जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकार चण्डताण