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Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी ऊँची उड़ानों के लिए सांसो को गिरवी रखते रहे वतन की बेहतरी के वास्ते सरकारे बदलते रहे बदलाव की उम्मीद में हम सब खुद ही मिटते रहे अरमानो के सरे आम गले घुटते रहे बरवादी की रस्म अदायगी है सरकारी सब नीतियां खोखली है चैन जिंदगी का छिन सा गया है घरो में कैद कर मुँह बंद कर दिया गया है महँगाई सुरसा और जुर्माने है आवाम को कत्ल करने के उन पर सारे बहाने है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" महगाई सुरसा और जुर्माने है
Sarika Joshi Nautiyal
Vikas Sharma Shivaaya'
शनि गायत्री मंत्र: .-ॐ भग भवाय विद्महे मृत्यु-रूपाय धीमहि तन्नो शौरीहि प्रचोदयात् || -ॐ शनैश्चराय विद्महे छायापुत्राय धीमहि तन्नो मंद: प्रचोदयात || -ॐ काकध्वजाय विद्महे खड्गहस्ताय धीमहि तन्नो मन्दः प्रचोदयात || सुंदरकांड: दोहा – 1 प्रभु राम का कार्य पूरा किये बिना विश्राम नही हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम। राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ॥1॥ हनुमानजी ने उसको अपने हाथसे छुआ, फिर उसको प्रणाम किया, और कहा की – रामचन्द्रजीका का कार्य किये बिना मुझको विश्राम कहाँ? ॥1॥ श्री राम का कार्य जब तक पूरा न कर लूँ, तब तक मुझे आराम कहाँ? श्री राम, जय राम, जय जय राम सुरसा का प्रसंग देवताओं ने नागमाता सुरसा को भेजा जात पवनसुत देवन्ह देखा। जानैं कहुँ बल बुद्धि बिसेषा॥ सुरसा नाम अहिन्ह कै माता। पठइन्हि आइ कही तेहिं बाता॥1॥ देवताओ ने पवनपुत्र हनुमान् जी को जाते हुए देखा और उनके बल और बुद्धि के वैभव को जानने के लिए॥ देवताओं ने नाग माता सुरसा को भेजा। उस नागमाताने आकर हनुमानजी से यह बात कही॥ सुरसा ने हनुमानजी का रास्ता रोका आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा। सुनत बचन कह पवनकुमारा॥ राम काजु करि फिरि मैं आवौं। सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं॥2॥ आज तो मुझको देवताओं ने यह अच्छा आहार दिया। यह बात सुन, हँस कर हनुमानजी बोले॥ मैं रामचन्द्रजी का काम करके लौट आऊँ और सीताजी की खबर रामचन्द्रजी को सुना दूं॥ हनुमानजी ने सुरसा को समझाया कि वह उनको नहीं खा सकती तब तव बदन पैठिहउँ आई। सत्य कहउँ मोहि जान दे माई॥ कवनेहुँ जतन देइ नहिं जाना। ग्रससि न मोहि कहेउ हनुमाना॥3॥ फिर हे माता! मै आकर आपके मुँह में प्रवेश करूंगा। अभी तू मुझे जाने दे। इसमें कुछ भी फर्क नहीं पड़ेगा। मै तुझे सत्य कहता हूँ॥ जब सुरसा ने किसी उपायसे उनको जाने नहीं दिया, तब हनुमानजी ने कहा कि, तू क्यों देरी करती है? तू मुझको नही खा सकती॥ सुरसा ने कई योजन मुंह फैलाया, तो हनुमानजी ने भी शरीर फैलाया जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा। कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा॥ सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ। तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ॥4॥ सुरसाने अपना मुंह, एक योजनभरमें (चार कोस मे) फैलाया। हनुमानजी ने अपना शरीर, उससे दूना यानी दो योजन विस्तारवाला किया॥ सुरसा ने अपना मुँह सोलह (16) योजनमें फैलाया। हनुमानजीने अपना शरीर तुरंत बत्तीस (32) योजन बड़ा किया॥ सुरसा ने मुंह सौ योजन फैलाया, तो हनुमानजी ने छोटा सा रूप धारण किया जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा। तासु दून कपि रूप देखावा॥ सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा। अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा॥5॥ सुरसा ने जैसे-जैसे मुख का विस्तार बढ़ाया, जैसा जैसा मुंह फैलाया, हनुमानजी ने वैसे ही अपना स्वरुप उससे दुगना दिखाया॥ जब सुरसा ने अपना मुंह सौ योजन (चार सौ कोस का) में फैलाया, तब हनुमानजी तुरंत बहुत छोटा स्वरुप धारण कर लिया॥ सुरसा को हनुमानजी की शक्ति का पता चला बदन पइठि पुनि बाहेर आवा। मागा बिदा ताहि सिरु नावा॥ मोहि सुरन्ह जेहि लागि पठावा। बुधि बल मरमु तोर मैं पावा॥6॥ छोटा स्वरुप धारण कर हनुमानजी, सुरसाके मुंहमें घुसकर तुरन्त बाहर निकल आए। फिर सुरसा से विदा मांग कर हनुमानजी ने प्रणाम किया॥ उस वक़्त सुरसा ने हनुमानजी से कहा की – हे हनुमान! देवताओंने मुझको जिसके लिए भेजा था, वह तुम्हारे बल और बुद्धि का भेद, मैंने अच्छी तरह पा लिया है॥ 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' शनि गायत्री मंत्र: .-ॐ भग भवाय विद्महे मृत्यु-रूपाय धीमहि तन्नो शौरीहि प्रचोदयात् || -ॐ शनैश्चराय विद्महे छायापुत्राय धीमहि तन्नो मंद: प्रच
Pramod Kumar
Alok Vishwakarma "आर्ष"
दिव्यकृति हो सुंदरता की, तुम अभिवादन हो वसुधा हो । सुधास्मृति हो विरहघटा की, तुम सुरसाधन हो समिधा हो ।। रूपमती हो लवकविता की, तुम मनभावन मधुछन्दा हो । परमगति हो नितसरिता की, तुम उन्नयन आर्ष वृन्दा हो ।। #alokstates #vrindasays #endlesslove #radhakrishna #missingyou #yqdidi #yqbaba #lovepoetry Much Love.. 💝💝💝
Dushyant Barnwal
जब याद तेरी आखिर-ऐ-शब आई दीदा-ऐ-नमनाक में उफान आई दिल-ऐ-मुज्जतर को भी ना शकेबाई मेरे गमखाने में मसरुद ना मरगूब आई सुब्द-दम को सुरसार सबा ये पैगाम लाई तेरे हिस्से में मता-ऐ-गम आई याद-ए-रफ़्तगा बन शब-ए-खाब आई दिल के दहलीज पे जैसे दीवारे-ए-गम आई ©Dushyant Barnwal आखिर-ऐ-शब =रात का अंतिम प्रहर दीदा-ऐ-नमनाक - अश्रुपूर्ण नैन दिल-ऐ-मुज्जतर =चिंतित मन शकेबाई=धैर्य गमखाने = गम का घर मसरुद =आनंदित मरगूब=सुख
Ravikant Raut
प्रतिकार (The Revenge) प्रकृति का जिस तरह हम विनाश कर रहे हैं , हम भूल जाते हैं एक दिन वही विनाश की सुरसा बन कर हमें निगल जायेगी. यह फो
Satya Prakash Upadhyay
#Worldsmileday मुस्कान करता प्रतिबिंबित मन को ,करता संदेशवाहक का काम। कभी मन्द मुस्कान चवनिया,भीतर की खुशी छुपाने का नाम। और जब अठनिया मुस्की छाए तब दाँतो की पंक्ति दिखती तमाम। रुपैया मुस्की के कहने हीं क्या जब खुशियों का घर आ जाये धाम। कभी कुटिलता दिखलाती है और देती हैं झांसे के बाण और कभी बढ़ सुरसा सा वो बन जाती अट्टहास के प्रमाण एक मुस्कान के आगे भूल जाते सारे इतिहास विज्ञान देख के मुस्की खो जाते प्रेमी हो जाते सब से अनजान मुस्कान करता प्रतिबिंबित मन को ,करता संदेशवाहक का काम। कभी मन्द मुस्कान चवनिया,भीतर की खुशी छुपाने का नाम। और जब अठनिया मुस्की छाए तब दाँतो
AK__Alfaaz..
मिलना था इक क्षण को, दूर क्षितिज आँसुओं के टीले पर, बैठी एकांत में मौन ज़िन्दगी से, जो हाथों मे लिए श्वाँस का दीपक, राह तक रही थी, अपने प्रियवर मृत्यु के आने की आस मे, उसे घर की राह दिखाने को, समय रूपी माँ पूरब की गोद से निकलकर, विश्वास के सूरज की उम्र ढ़लने को थी, बाबू जी पश्चिम उसे गले लगाने को, रात्रि की बाँहें फैलाये खड़े थें, लेकिन.... कुछ ही पल में, वियोग की काली अमावस, जीवन के संग विश्वास को भी, निगलने के लिए, सुरसा सा विशाल मुँह लिए, प्रेम के अंबर मे अट्टहास कर रही थी, और ज़िन्दगी नैनों से बहते आस के मोती, चुन चुन कर प्रीत की माला मे पिरो रही थी, कि..... गिरवी रख कर ऊपरवाले बनिये की दुकान में, एक पल उधार ले सके, मृत्यु के लिए खर्च करने को..।। कभी कभी ज़िन्दगी भी एक पल उधार लेना चाहती है और जीने को... रचना अनुशीर्षक मे भी है... #उधार.. मिलना था इक क्षण को, दूर क्षितिज आँसुओं के ट