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प्रियजीत प्रताप
तिल तिल मरते उन्मादों में, कभी भीड़ कभी वीरानों में, हाथ धरे,पग समेट लिए हों, पर्वत,वन या सुनसानों में, गिरता रक्त अलाप रहा है, छूटता प्राण प्रलाप रहा है, शिथिल पड़े शरीर के ऊपर, उड़ता गिद्ध ठठकार करे, नोचें,खाएं अपने ही मद में, कौन उनका संहार करे? कब जागे वो आग हृदय में, कौन रोके यह रक्तप्रवाह, कौन बताए इस समर शेष में, कहाँ रावण है,राम कहाँ? -प्रियजीत✍️ कहाँ रावण है,राम कहाँ...
Santosh Kumar
🚩 सिन्धु घाटी की लिपि : क्यों अंग्रेज़ और कम्युनिस्ट इतिहासकार नहीं चाहते थे कि इसे पढ़ाया जाए! 🔰 ▪️इतिहासकार अर्नाल्ड जे टायनबी ने कहा था - विश्व के इतिहास में अगर किसी देश के इतिहास के साथ सर्वाधिक छेड़ छाड़ की गयी है, तो वह भारत का इतिहास ही है। भारतीय इतिहास का प्रारम्भ सिन्धु घाटी की सभ्यता से होता है, इसे हड़प्पा कालीन सभ्यता या सारस्वत सभ्यता भी कहा जाता है। बताया जाता है, कि वर्तमान सिन्धु नदी के तटों पर 3500 BC (ईसा पूर्व) में एक विशाल नगरीय सभ्यता विद्यमान थी। मोहनजोदारो, हड़प्पा, कालीबंगा, लोथल आदि इस सभ्यता के नगर थे। पहले इस सभ्यता का विस्तार सिंध, पंजाब, राजस्थान और गुजरात आदि बताया जाता था, किन्तु अब इसका विस्तार समूचा भारत, तमिलनाडु से वैशाली बिहार तक, आज का पूरा पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान तथा (पारस) ईरान का हिस्सा तक पाया जाता है। अब इसका समय 7000 BC से भी प्राचीन पाया गया है। इस प्राचीन सभ्यता की सीलों, टेबलेट्स और बर्तनों पर जो लिखावट पाई जाती है उसे सिन्धु घाटी की लिपि कहा जाता है। इतिहासकारों का दावा है, कि यह लिपि अभी तक अज्ञात है, और पढ़ी नहीं जा सकी। जबकि सिन्धु घाटी की लिपि से समकक्ष और तथाकथित प्राचीन सभी लिपियां जैसे इजिप्ट, चीनी, फोनेशियाई, आर्मेनिक, सुमेरियाई, मेसोपोटामियाई आदि सब पढ़ ली गयी हैं। आजकल कम्प्यूटरों की सहायता से अक्षरों की आवृत्ति का विश्लेषण कर मार्कोव विधि से प्राचीन भाषा को पढना सरल हो गया है। सिन्धु घाटी की लिपि को जानबूझ कर नहीं पढ़ा गया और न ही इसको पढने के सार्थक प्रयास किये गए। भारतीय इतिहास अनुसन्धान परिषद (Indian Council of Historical Research) जिस पर पहले अंग्रेजो और फिर कम्युनिस्टों का कब्ज़ा रहा, ने सिन्धु घाटी की लिपि को पढने की कोई भी विशेष योजना नहीं चलायी। आखिर ऐसा क्या था सिन्धु घाटी की लिपि में? अंग्रेज और कम्युनिस्ट इतिहासकार क्यों नहीं चाहते थे, कि सिन्धु घाटी की लिपि को पढ़ा जाए? अंग्रेज और कम्युनिस्ट इतिहासकारों की नज़रों में सिन्धु घाटी की लिपि को पढने में निम्नलिखित खतरे थे - 1. सिन्धु घाटी की लिपि को पढने के बाद उसकी प्राचीनता और अधिक पुरानी सिद्ध हो जायेगी। इजिप्ट, चीनी, रोमन, ग्रीक, आर्मेनिक, सुमेरियाई, मेसोपोटामियाई से भी पुरानी. जिससे पता चलेगा, कि यह विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता है। भारत का महत्व बढेगा जो अंग्रेज और कम्युनिस्ट इतिहासकारों को बर्दाश्त नहीं होगा। 2. सिन्धु घाटी की लिपि को पढने से अगर वह वैदिक सभ्यता साबित हो गयी तो अंग्रेजो और कम्युनिस्टों द्वारा फैलाये गए आर्य- द्रविड़ युद्ध वाले प्रोपगंडा के ध्वस्त हो जाने का डर है। 3. अंग्रेज और कम्युनिस्ट इतिहासकारों द्वारा दुष्प्रचारित ‘आर्य बाहर से आई हुई आक्रमणकारी जाति है और इसने यहाँ के मूल निवासियों अर्थात सिन्धु घाटी के लोगों को मार डाला व भगा दिया और उनकी महान सभ्यता नष्ट कर दी। वे लोग ही जंगलों में छुप गए, दक्षिण भारतीय (द्रविड़) बन गए, शूद्र व आदिवासी बन गए’, आदि आदि गलत साबित हो जायेगा। कुछ फर्जी इतिहासकार सिन्धु घाटी की लिपि को सुमेरियन भाषा से जोड़ कर पढने का प्रयास करते रहे तो कुछ इजिप्शियन भाषा से, कुछ चीनी भाषा से, कुछ इनको मुंडा आदिवासियों की भाषा, और तो और, कुछ इनको ईस्टर द्वीप के आदिवासियों की भाषा से जोड़ कर पढने का प्रयास करते रहे। ये सारे प्रयास असफल साबित हुए। सिन्धु घाटी की लिपि को पढने में निम्लिखित समस्याए बताई जाती है - सभी लिपियों में अक्षर कम होते है, जैसे अंग्रेजी में 26, देवनागरी में 52 आदि, मगर सिन्धु घाटी की लिपि में लगभग 400 अक्षर चिन्ह हैं। सिन्धु घाटी की लिपि को पढने में यह कठिनाई आती है, कि इसका काल 7000 BC से 1500 BC तक का है, जिसमे लिपि में अनेक परिवर्तन हुए साथ ही लिपि में स्टाइलिश वेरिएशन बहुत पाया जाता है। लेखक ने लोथल और कालीबंगा में सिन्धु घाटी व हड़प्पा कालीन अनेक पुरातात्विक साक्षों का अवलोकन किया। भारत की प्राचीनतम लिपियों में से एक लिपि है जिसे ब्राह्मी लिपि कहा जाता है। इस लिपि से ही भारत की अन्य भाषाओँ की लिपियां बनी। यह लिपि वैदिक काल से गुप्त काल तक उत्तर पश्चिमी भारत में उपयोग की जाती थी। संस्कृत, पाली, प्राकृत के अनेक ग्रन्थ ब्राह्मी लिपि में प्राप्त होते है। सम्राट अशोक ने अपने धम्म का प्रचार प्रसार करने के लिए ब्राह्मी लिपि को अपनाया। सम्राट अशोक के स्तम्भ और शिलालेख ब्राह्मी लिपि में लिखे गए और सम्पूर्ण भारत में लगाये गए। सिन्धु घाटी की लिपि और ब्राह्मी लिपि में अनेक आश्चर्यजनक समानताएं है। साथ ही ब्राह्मी और तमिल लिपि का भी पारस्परिक सम्बन्ध है। इस आधार पर सिन्धु घाटी की लिपि को पढने का सार्थक प्रयास सुभाष काक और इरावाथम महादेवन ने किया। सिन्धु घाटी की लिपि के लगभग 400 अक्षर के बारे में यह माना जाता है, कि इनमे कुछ वर्णमाला (स्वर व्यंजन मात्रा संख्या), कुछ यौगिक अक्षर और शेष चित्रलिपि हैं। अर्थात यह भाषा अक्षर और चित्रलिपि का संकलन समूह है। विश्व में कोई भी भाषा इतनी सशक्त और समृद्ध नहीं जितनी सिन्धु घाटी की भाषा। बाएं लिखी जाती है, उसी प्रकार ब्राह्मी लिपि भी दाएं से बाएं लिखी जाती है। सिन्धु घाटी की लिपि के लगभग 3000 टेक्स्ट प्राप्त हैं। इनमे वैसे तो 400 अक्षर चिन्ह हैं, लेकिन 39 अक्षरों का प्रयोग 80 प्रतिशत बार हुआ है। और ब्राह्मी लिपि में 45 अक्षर है। अब हम इन 39 अक्षरों को ब्राह्मी लिपि के 45 अक्षरों के साथ समानता के आधार पर मैपिंग कर सकते हैं और उनकी ध्वनि पता लगा सकते हैं। ब्राह्मी लिपि के आधार पर सिन्धु घाटी की लिपि पढने पर सभी संस्कृत के शब्द आते है जैसे - श्री, अगस्त्य, मृग, हस्ती, वरुण, क्षमा, कामदेव, महादेव, कामधेनु, मूषिका, पग, पंच मशक, पितृ, अग्नि, सिन्धु, पुरम, गृह, यज्ञ, इंद्र, मित्र आदि। निष्कर्ष यह है कि - 1. सिन्धु घाटी की लिपि ब्राह्मी लिपि की पूर्वज लिपि है। 2. सिन्धु घाटी की लिपि को ब्राह्मी के आधार पर पढ़ा जा सकता है। 3. उस काल में संस्कृत भाषा थी जिसे सिन्धु घाटी की लिपि में लिखा गया था। 4. सिन्धु घाटी के लोग वैदिक धर्म और संस्कृति मानते थे। 5. वैदिक धर्म अत्यंत प्राचीन है। हिन्दू सभ्यता विश्व की सबसे प्राचीन व मूल सभ्यता है, हिन्दुओं का मूल निवास सप्त सैन्धव प्रदेश (सिन्धु सरस्वती क्षेत्र) था जिसका विस्तार ईरान से सम्पूर्ण भारत देश था।वैदिक धर्म को मानने वाले कहीं बाहर से नहीं आये थे और न ही वे आक्रमणकारी थे। आर्य - द्रविड़ जैसी कोई भी दो पृथक जातियाँ नहीं थीं जिनमे परस्पर युद्ध हुआ हो। जय श्रीराम 🚩 जय हिंदुराष्ट्र भारत।। ©Santosh Kumar #सिन्धु घाटी सभ्यता
Parasram Arora
ये प्रेम नही कह पायेगा अपनी कहानी कभी. सीने में दर्द है.. पर मुँह में अलफ़ाज़ कहाँ है? सीन में दिल है और धड़कन भी है. पर जीनाचाहता हूं जिसे वो जिंदगी कहाँ है? जिम्मेदारियों के बोझ ने मुझे बूढ़ा कर दीया जल्द इस दरमियान आई थी जवानी पर वो टिकी कहा? मौत का पैगाम तो आ चुका नज़दीक पर न जाने मरने वाला किरदार कहा है? आहों की आवाज़ भी धीमी हुई है रफ्ता रफ्ता और आंसुओं में भी अब वो रवानी कहा है? ©Parasram Arora कहाँ है?
कवि विनय आनंद
याद हैं हमको वो दिन भी मेरा इंतजार रहता था, कभी तुम कुछ न खाती थीं हमारे कुछ भी खाने तक। कहाँ वादे , कहाँ कसमें, कहाँ है वो वफादारी- तुम्हें तो साथ रहना था हमारी जान जाने तक। ©कवि विनय आनंद कहाँ वादे , कहाँ कसमें, कहाँ है वो वफादारी।
anshika Anshh
#तू कहाँ है??? तू कौन है, तू है क्या चीज़. सवाल मेरे बोहोत हैं तुझसे मुझे तू इतना तो बता?? जवाब देने मुझको आ खुदा मेरे तू देख तो मुझको मंदिर में है?? मस्जिद मे है? निगाह तेरी मुझपे भी टिका गुरूद्वारे या गिरजे मे है?? कहाँ तुझे ढूंढू मै बता??? देखा न कुछ मैंने फिर भी. कोई मुझसे कह रहा क्या है तू?? कोई इंसां है क्या? बाहर नहीं हूं मैं कही भी शक्ति बोहोत बड़ी है ना? अपने अंदर झाँक ज़रा मैं तुझको ढूंढू, तू कहाँ है?? मुझको कहाँ मिलेगा बता?? अंदर अपने झाँक के देखा तुझको मैंने पा लिया लोग बताते तुझको पत्थर. इंसां की फितरत बदलेगी के अंदर मौजूद है तू. जब उसको ये चले पता!!! जो इक पत्थर में समाये इतनी सी हस्ती है क्या??? देश ये मेरा , देश ये तेरा, देश ये उसका, कहने वाले हिन्दू कहते मंदिर में है. ज़मीं बाद में बाट भी लेना मुस्लिम मस्जिद में बताता इंसां तो बन जाओ पहले गुरूद्वारे में बैठा है क्या? या गिरजा घर में है बता?? कह रहा हूं दुनिया से मैं छोड़ दे सब और आ यहाँ तू सच पूछो तो तू नहीं है. तुझसे बातें करता है वो दुनिया में बाकि रहा. कानो से तो हाथ हटा??? इंसां की कीमत रही न. कीमत किसी जीव की क्या?? इमारतों में ढूंढ न उसको सुन मेरी तू ऐ इंसां शायद तू भी रो रहा है ढूंढता क्यों उसको बाहर इंसां की जुर्रत है क्या?? वो तेरे अंदर बसा!!! कैसा बना के भेजा था और देखो कैसा हो गया? -Anshh तू कहाँ है??