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shashank jha
दो झुमके कुछ पायल और तेरी याद बस इतनी मेरी अमानत है दुःख है तेरा खत पकड़ा गया "शशांक" पर तेरा दिया गुलाब सही सलामत है ये आशिकी तुझसे शुरू तुझपे खत्म.... #love #writer #hindi #yqdidi #friendship #ishq #yqdidi #bihari
Virender Rawat
Satish Chandra
समझ कर एक दरिया उसकी आँखों में मैं कूद गया, तैरना तो आता था पर कमबख़्त आशिकी में डूब गया। ये आशिकी भी बा-कमाल चीज़ है, पहले गोते लगवाती है फिर सीधे डूबाती है। #आँखें #YQdidi
Pushpendra Pankaj
चेहरा पढ़कर नहीं जान सकते, चेहरा गुणों का दर्पण नहीं है । मैं भी तुम्हारे गुणों को पढूंगी , मिलना ये मेरा समर्पण नहीं है । आशिकी की अंधी हवा मे ना बहना, इसमे सच्चाई का घर्षण नहीं है । सच के धरातल पर हम तुम चलेगे, दिखावे मे कोई आकर्षण नहीं है। पुष्पेन्द्र "पंकज " , ©Pushpendra Pankaj उफ ये आशिकी
Asif B. Pathan
बड़ी "बेरहम" होती है ये .."आशिकी"... कमबख्त "उम्र" का "लिहाज"..भी नहीं करती.. बड़ी "बेरहम" होती है ये .."आशिकी"..
ज्योति ਠਾਕੁਰ
मुहब्बत नाम है जुड़ने का, ❤️🙂 जो तोड़ दे 💔💔इसमें वो मुहब्बत नही,,,, #uff ये आशिकी #yqbaba_yqdidi #yqdidi #yqtales #yqquotes
शिवानन्द
दिल के बैचेनीयों की उल्फत हजार थी। आंखें झुकी मगर पूछती हजारों सवाल थी। चंद मुलाक़ातों के मायनों के न जाने कितने हिसाब थी। इतनी सहज नहीं है ये आशिकी 👉उलझनों की जमात थी।💚 ~~शिवानन्द #दिल के बैचेनीयों की उल्फत हजार थी। #आंखें झुकी मगर पूछती हजारों सवाल थी। चंद मुलाक़ातों के मायनों के न जाने कितने हिसाब थी। इतनी सहज नहीं
Swapnil
तुम्हारे संग मिट जाने की मेरी चाह तुम्हारे संग मिट जाने की मेरी चाह न जाने क्यू अब खामोश दिखाई देती हैं जूस्तजू जो रहती थी दिल मे न जाने क्यू अब वो छुपी रहती हैं मैं तो आशिक था जन्मो से तुम्हारा पर अब क्यू ये आशिकी बेरूख़ी सी लगती हैं शायद मैं खुद को ही ढ़ूनता था तुममे पर खुद को पाने की कोशिश मुझे अब फ़िजूल लगती है तुम्हारे संग मिट जाने की मेरी चाह तुम्हारे संग मिट जाने की मेरी चाह न जाने क्यू अब खामोश दिखाई देती हैं जूस्तजू जो रहती थी दिल मे न जाने
Technocrat Sanam
मोती किनारे पर नहीं मिला करते साहब गहराई तक जाना होता है ख़ज़ाने के लिए छेद बाँसुरी में सात कर लो या सात हजार फूँक तो मारनी ही पड़ेगी बजाने के लिए जब जी चाहता है भीग लेते हैं हम आँसुओं से अर्से से पानी हाथ लगाया नहीं नहाने के लिए ये आशिकी हम जैसे सयानों के बस की नहीं बहुत तुतलाना पड़ता है यार मनाने के लिए जानते हैं मर्ज़ और बढ़ेगा हाथ लगाने से मगर उँगलियाँ आप ही उठ जाती हैं खुजाने के लिए वो इस क़दर अकेले नाज़नीं है सारे महकमें में खुशामद खोर तैयार रहते हैं पलकें उठाने के लिए ना तो मौसम सर्द है, ना ही कोई और मर्ज़ है 'सनम' यूँ धूप में बैठा है ज़ख्म सुखाने के लिए ©technocrat_sanam ये आशिकी अपने बस की बात नहीं बहुत तुतलाना पड़ता है यार मनाने के लिए 😅🤗😉😂 For your ease of eyes 👀 👇 खुशामद खोर.. मोती किनारे पर नहीं मिला