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"Vibharshi" Ranjesh Singh
महादानी कर्ण की धरती से आया हूं पर्स मेरी मोटी भले ना हो, दिल बड़ा मैं पाया हूं नर नारी जीव जन्तु सब विशेष सब समान प्रेम पाते हैं, है कोई ना शेष मेरी लम्बाई से मत आंक मुझे मेरी क्षमताओं से तु नाप मुझे मत देख क्या है मेरे तन पर देख क्या तनिक भी धुल जमीं है मेरे मनपर ? देखना है तो तु हृदय मेरा विशाल देख इस महादेव शिष्य और श्रीकन्हैया लाल देख देखना चाहता है तो लोगों के अनर्गल प्रलाप देख कुंठित और कुपित मन से मुझे दिये अभिशाप देख देख जरा फ़िर भी मैंने कब अपनी मर्यादा खोइ कितनों के अहित के लिए षड़यंत्रों के बीजें बोइ कितनी दफा ना जाने विपदा आई पर कभी ना घबराया हूं महादानी कर्ण की धरती से आया हूं सीख माता पिता गांठ बांध लाया हूं महादानी कर्ण की धरती से आया हूँ #Ranjesh #Poetry #frustration
SK NIGAM
हम बिहार हैं ©SK NIGAM #बिहार *हम बिहार हैं* भक्त प्रहलाद की जन्म भूमि हम महादानी कर्ण की कर्म भूमि हम, हम वो भूमि हैं जहां सूर्य ने स्वयं पधारे
Anand Mishra
जब निश्चित हो निज हार प्रबल, और मन कुंठित सा तकता हो, लर्जिश हो तन और साँसों में, और डग-मग भय सब सुनता हो, खलिश मची हो अंतर्मन, जीत खड़ी ,फुफकारे फन, आंख झुकीं,मन शायी हो, हर-पल थमते भाई हों, उठो वीर! तब सांस भरो, अब साथी मन का आएगा, सभी पुकारेंगे वीर उसे भी, पर वो कर्ण कहलायेगा । ©Anand Mishra कर्ण #कर्ण
Vivek Singh rajawat
"कर्ण" कर्ण तुम कैसे वीदीर्ण हो गए पथ भ्रष्ट नही तुम संगत भ्रष्ट हो गए, न्याय से तोड़ नाता अन्याय के स्व हो गए कर्ण तुम कैसे वीदीर्ण हो गए, कृष्ण ने भी माना तुमको तुम्हारे कौशल को जाना तुमको एक बार अकेले युद्ध विराम शक्ति जाना, परशुराम की शिक्षा को तुम भूल गए अनिष्ट को अपना स्वयं के अस्तित्व को भूल गए, कर्ण तुम कैसे वीदीर्ण हो गए। तुम सा दानी न हुआ कोई उस द्वापर काल में तुम फँस गए मैत्री और छल प्रपंच के मायाजाल में, अंगदेश को वरदान मिला जो तुम अंगराज हो गए देवी कुन्ती को वरदान मिला तुम सूर्यपुत्र हो गए, कर्ण तुम कैसे वीदीर्ण हो गए। तुमने क्षत्रिय हो कर भी शुद्र के जीवन जी लिया लघु जाति की वेदना तृष्णा को भी सह लिया, यू तो पांडव पाँच थे प्रथम छटे तुम हो गए विधि के खेल में तुम ममत्व से अछूते रह गए, कर्ण तुम कैसे वीदीर्ण हो गए। ये काल ने कुछ ऐसी गति हैं बनाई अनीति देखो आज नीति पर हावी हो आई, कुरु सभा में द्रौपदी का चिर हरण किया जाए हे दानी तुम मौन क्यों ये रहस्य न समझ आए, कर्ण तुम कैसे वीदीर्ण हो गए। तुम दानी,वीर शास्त्रों से शस्त्र तक तुममे समाए फिर क्यों तुम अनीति के साथ हो आए, कर्ण तुम कैसे वीदीर्ण हो गए। विवेक सिंह राजावत कर्ण।
Prashant
कर्ण पांडवों में था नहीं वो कौरवों की ढाल था शूर वीर था बड़ा वो सबसे बेमिसाल था आंधियों से लड़ पड़े उसमें बल कमाल था पर उसे कोई समझ न पाया क्यूं सदैव अछूत कहलाया ऐसी है कर्ण की गाथा वचन जो दे तो उसे निभाता योद्धा था वो बड़ा महान् इंद्र भी मांगे जिससे दान ©Prashant #कर्ण
#अनूप अंबर
कवच और कुंडल पास में मेरे वो भी मैंने दान किए, पांच अमोघ बाण भी कुंती मां को दान किए,, कैसे कर्ज चुकता मैं दुर्योधन के अहसानों का सारा जग को जवाब एक था जाति गोत्र के तानों का अर्जुन के पास में थे केशव मैं मित्रता के साथ खड़ा था वो अर्जुन कर्ण युद्ध नही था कर्ण तो स्वमं कर्ण के साथ लड़ा था धर्मराज को दिया जीवन भीम का मान घटाया था नकुल सहदेव को इसलिए छोड़ा मेरा वचन सामने आया था, मैं वचन श्राप से बंधा हुआ था रथ का पहिया धसा हुआ था अर्जुन को मैं मरता कैसे कान्हा का चक्र रोक रहा था लेकिन मेरे बाणों के प्रसंशा में मुझे अर्जुन से श्रेष्ठ बोल रहा था मेरे युद्ध कला कौशल से कुरुक्षेत्र समूचा डोल रहा था,, ©##अनूप अंबर #कर्ण