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Usha bhadula
बाल गीत बच्चा हूँ पर सच्चा हूँ अक्ल का थोड़ा कच्चा हूँ नजर सब पर रखता हूँ बातें जब मैं बडो़ की सुनता हूँ हैरत में मैं आ जाता हूँ। बापू माँ से कहते जेब अभी खाली है लेकिन लिए हाथ में उनके एक बोतल मुझको दिख जाती है माँ अपना सा मुंह लिए रह जाती है फीस नहीं देने को फिर ये बोतल कहाँ से आती है? बात यह मुझे बहुत सताती है बच्चा हूँ पर सब समझता हूँ। बाबू रोज डांट लगाते हैं पर बापू उल्टा उन्हें आंख दिखाते हैं कहते" ज्यादा बोले तो आश्रम छोड़ आयेगें" बाबू आंसू पी रह जाते हैं बच्चा हूँ पर बडो़ की बात समझता हूँ। मैं भी बड़ा हो जाऊँ जल्दी तो बापू को भी आंख दिखाऊंगा उनको उनकी करनी याद दिलाऊँगा बच्चा हूँ पर सच्ची बात बतलाता हूँ। ऊषा भदूला🙏 ©Usha bhadula #Children'sDay बाल गीत
Usha bhadula
बाल गीत बच्चा हूँ पर सच्चा हूँ अक्ल का थोड़ा कच्चा हूँ नजर सब पर रखता हूँ बातें जब मैं बडो़ की सुनता हूँ हैरत में मैं आ जाता हूँ। बापू माँ से कहते जेब अभी खाली है लेकिन लिए हाथ में उनके एक बोतल मुझको दिख जाती है माँ अपना सा मुंह लिए रह जाती है फीस नहीं देने को फिर ये बोतल कहाँ से आती है? बात यह मुझे बहुत सताती है बच्चा हूँ पर सब समझता हूँ। बाबू रोज डांट लगाते हैं पर बापू उल्टा उन्हें आंख दिखाते हैं कहते" ज्यादा बोले तो आश्रम छोड़ आयेगें" बाबू आंसू पी रह जाते हैं बच्चा हूँ पर बडो़ की बात समझता हूँ। मैं भी बड़ा हो जाऊँ जल्दी तो बापू को भी आंख दिखाऊंगा उनको उनकी करनी याद दिलाऊँगा बच्चा हूँ पर सच्ची बात बतलाता हूँ। ऊषा भदूला🙏 ©Usha bhadula #Connections बाल गीत
Pushpendra Pankaj
बाल गीत ------------ नन्हे-नन्हे पंख मेरे हैं, धीरे-धीरे उगने दे! छोटे-छोटे कदम बढाकर, फुदक-फुदक कर चलने दे! कुछ मुझको दे दाना-दुनका, कट-कट टुक-टुक चुगने दे ! फिर बोलूंगा साहस करके - सुन माँ मैं अब हुआ सयाना, हवा को पंखों मे भरने दे ! फुर्र से फर-फर उङने दे ।। पुष्पेन्द्र "पंकज " ©Pushpendra Pankaj #bekhudi बाल-गीत
डॉ. शिवानी सिंह मुस्कान
बादल की लेकर पिचकारी दौड़ पड़ी है बरखा रानी। धरती के ऊपर फिर बरसा जैसे रिमझिम रिमझिम धानी।। काँप उठी फिर धरती थरथर, लगी ठंड तो बोली हस कर, बहुत हो गया खेल सखी अब डाल न मुझपर ठंडा पानी। धरती के ऊपर फिर बरसा जैसे रिमझिम रिमझिम धानी।। सखी बचाओ कह वो भागी, सुनकर धूप नींद से जागी, क्यों री बरखा बार बार तू करती है अपनी मनमानी। धरती के ऊपर फिर बरसा जैसे रिमझिम रिमझिम धानी।। बरखा बोली -लो जाती हूँ, तुम दोनों को कब भाती हूँ, सुन धरती ने गले लगाया बोली सखी ना कर नादानी। धरती के ऊपर फिर बरसा जैसे रिमझिम रिमझिम धानी।। सब सखियों मे प्यार बहुत है, सुन्दर ये संसार बहुत है, देख प्रकृति की हसी- ठिठोली ये कविता लिख रही शिवानी। धरती के ऊपर फिर बरसा जैसे रिमझिम रिमझिम धानी।। ©डॉ.शिवानी सिंह सुप्रभात एक बाल गीत सादर समर्पित 🙏
कवि अजय जयहरि कीर्तिप्रद
बाल बाल ले आज डूबती कश्ती को दरीया से निकाल आया तूफाँ ; देखों बनके महाकाल चल चाल की दुश्मन हो जाये पस्त तभी बचेगें हम सब आज बाल बाल कवि अजय जयहरि कीर्तिप्रद बाल बाल.....कीर्तिप्रद
Kaushal Kumar
असली - नकली का भेद प्रिये, अब मुझसे ना होने वाला। बोलो क्यों केश करूँ काला।। असली में अब मैं तरुण नही, और न तुम ही अब तरुणी हो। फिर क्यों मिथ्या दिखलाने की, कोशिश में मुझ पर बिगड़ी हो। पैंतिस से पंद्रह दिखने का, श्रम मुझसे ना होने वाला। बोलो क्यों केश करूँ काला।। कोई कह दे मैं वृद्ध हुआ, तो कहने से कुछ फर्क नही। जो यही देखते फिरते हैं, उनसे मैं करता तर्क नही। सौंदर्यबोध कर वृत्तिनाश, अब मुझसे ना होने वाला। बोलो क्यों केश करूँ काला।। हाँ बात तुम्हारी दीगर है, सब तुमको क्रोध दिलाते हैं। तुमको कह वृद्धे की गृहणी, वृद्धा का बोध कराते हैं। पर फिर भी ऐसी बातों से, सच झूठ नही होने वाला। बोलो क्यों केश करूँ काला।। जो धवल रंग से नही मिले, यदि वह काले से मिल जाए। ऐसा क्षणभंगुर क्या पाना, जो चंद दिवस में हिल जाए। अंदर - बाहर से अलग - अलग, देखो मैं ना दिखने वाला। बोलो क्यों केश करूँ काला।। ©Kaushal Kumar #सफेद बाल-काले बाल