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Rajesh Raana
हम भी कभी बच्चें थे , थोड़े कच्चे कच्चे थे , देख खिलौना रोती आँखें , आँसू सच्चे सच्चे थे , हम भी कभी बच्चे थे । दिनभर घुमाघामी करते , बाग से तितली रोज पकड़ते , 10 पैसे दो , नाक रगड़ते , दिन वो कितने अच्छे थे , हम भी कभी बच्चे थे । दिनभर खाते खूब अघाते मां को हम कितना भाते , बस्ता टांगे स्कूल जाते , मास्टर जी से मार खाते , गोटियों के गच्चे थे , हम भी कभी बच्चे थे । मां के हाथ स्वेटर बुनते , दादी से कहानी सुनते , बागों से हम फुल चुनते , मार खाकर भी हंसते थे , हम भी कभी बच्चे थे । दिनभर धींगामस्ती थी , कागज़ की एक कस्ती थी , खुशियां कितनी सस्ती थी , अपनी छोटी सी हस्ती थी , संग दोस्त , लट्टू और कंचे थे , हम भी कभी बच्चे थे , कितने सच्चे सच्चे थे । - राजेश राणा ©Rajesh Raana हम भी कभी बच्चे थे.... #poem #कविता
Sangeeta Gupta
भरोसा तो एक ऐसी चीज है जिसके टूटने पर कोई आवाज नहीं होती मगर उसके गूंज जीवन भर सुनाई देती है ©Sangeeta Gupta #कविता भरोसे पर