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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

कभी गुलजार थी गलियां , हमारा बागबाँ है यह । कहीं चम्पा कहीं गेंदा , मगर सब बेजुबां है यह । समझ कर खेल जाते हैं ,खिलौना दिल सम #कविता #DilKiAwaaz

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कभी  गुलजार  थी  गलियां , हमारा  बागबाँ  है  यह ।
कहीं  चम्पा  कहीं  गेंदा , मगर  सब  बेजुबां  है  यह ।
समझ कर  खेल  जाते हैं ,खिलौना दिल समझते जो_
नहीं  एहसास  होता  हैं , अभी  नाँदां  सभी  है  यह ।।  

                    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कभी  गुलजार  थी  गलियां , हमारा  बागबाँ  है  यह ।
कहीं  चम्पा  कहीं  गेंदा , मगर  सब  बेजुबां  है  यह ।
समझ कर  खेल  जाते हैं ,खिलौना दिल सम

Abhimanyu Dwivedi

**ब्रह्माण्ड** 🌱🌱 ब्रम्ह का आयाम 🌱🌱 🌱ॐ🌱 **शून्य से महाशून्य की ओर** 🌱ॐ🌱 ब = बोधिसत्व , बोधि से संबोधि , विद(ज्ञान) से वेद #विचार

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**ब्रह्माण्ड**

       🌱🌱 ब्रम्ह का आयाम 🌱🌱

🌱ॐ🌱 **शून्य  से महाशून्य की ओर**  🌱ॐ🌱

ब = बोधिसत्व , बोधि से संबोधि , विद(ज्ञान) से वेद 

र = रहस्य , रास , रमण 

अ = आदि , अंत , से  पार अनंतव्योम  

म = मर्म    ( मैं से मैं तक का पथ ) 

ह = है से हो में जाते हुए, हूँ हो जाना 

आ =आरम्भ का प्रारम्भ ( आयाम ) 

ँ = ाण्ड पूर्ण ॐकार नाँद रहस्य धारक 

ड = ड (न) परम निराधार शून्य 


**अर्थात परमबोधि मे प्रवेश पाकर पूर्ण ब्रम्ह के आयाम में स्वयं को अवस्थित कर लेना , तथापि परम रहस्य के मर्मज्ञ हो शून्य में तिरोहित हो परम शून्य हो जाना**


🌱🙏🌱अभिमन्यु ( मोक्षारिहन्त )🌱🙏🌱

©Abhimanyu Dwivedi **ब्रह्माण्ड**

       🌱🌱 ब्रम्ह का आयाम 🌱🌱

🌱ॐ🌱 **शून्य  से महाशून्य की ओर**  🌱ॐ🌱

ब = बोधिसत्व , बोधि से संबोधि , विद(ज्ञान) से वेद

Abhimanyu Dwivedi

**ब्रह्माण्ड** 🌱🌱 ब्रम्ह का आयाम 🌱🌱 🌱ॐ🌱 **शून्य से महाशून्य की ओर** 🌱ॐ🌱 ब = बोधिसत्व , बोधि से संबोधि , विद(ज्ञान) से वेद #विचार

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**ब्रह्माण्ड**

       🌱🌱 ब्रम्ह का आयाम 🌱🌱

🌱ॐ🌱 **शून्य  से महाशून्य की ओर**  🌱ॐ🌱

ब = बोधिसत्व , बोधि से संबोधि , विद(ज्ञान) से वेद 

र = रहस्य , रास , रमण 

अ = आदि , अंत , से  पार अनंतव्योम  

म = मर्म    ( मैं से मैं तक का पथ ) 

ह = है से हो में जाते हुए, हूँ हो जाना 

आ =आरम्भ का प्रारम्भ ( आयाम ) 

ँ = ाण्ड पूर्ण ॐकार नाँद रहस्य धारक 

ड = ड (न) परम निराधार शून्य 


**अर्थात परमबोधि मे प्रवेश पाकर पूर्ण ब्रम्ह के आयाम में स्वयं को अवस्थित कर लेना , तथापि परम रहस्य के मर्मज्ञ हो शून्य में तिरोहित हो परम शून्य हो जाना**


🌱🙏🌱अभिमन्यु ( मोक्षारिहन्त )🌱🙏🌱

©Abhimanyu Dwivedi **ब्रह्माण्ड**

       🌱🌱 ब्रम्ह का आयाम 🌱🌱

🌱ॐ🌱 **शून्य  से महाशून्य की ओर**  🌱ॐ🌱

ब = बोधिसत्व , बोधि से संबोधि , विद(ज्ञान) से वेद

Ravindra Singh

#Colors होली आ गयी’ होली आ गयी सारे मोहल्ले में मेरे ख़ुशी है छा गयी। पर मेरा दिल अभी भी उदास है, इस पावन पर्व पर तू क्यूँ ना मेरे पास है। #Poetry

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'होली आ गयी’

होली आ गयी
सारे मोहल्ले में मेरे ख़ुशी है छा गयी।

पर मेरा दिल अभी भी उदास है,
इस पावन पर्व पर तू क्यूँ ना मेरे पास है।

मेरा भी जी करता है तुझे गुलाल लगाऊँ,
तू रोके बहुत फिर भी लगा रंग तुझे सताऊँ।

तू दुबकती फिरे पूरे घर में बचने मुझसे ,
ढूँढ तुझे, भाँति-भाँति रंगों से तुझे भिगाऊँ।

जब बैठ जाए थक हार कर तू,
उठा गोद में तुझे भरे रंगों की नाँद में तुझे गिराऊँ।

सुबह से लेकर शाम तक करूँ परेशान तुझे,
रात में उतारने थकावट तेरी,तेरे पैर दबाऊँ।

तू नहीं पास, तेरी कल्पना ही सही,
तेरी हर अदा मुझे कल्पना में भी भा गई।

होली आ गयी,
सारे मोहल्ले में मेरे ख़ुशी है छा गयी।

पर मेरा दिल अभी भी उदास है,
इस पावन पर्व पर तू क्यूँ ना मेरे पास है।

©Ravindra Singh #Colors होली आ गयी’

होली आ गयी
सारे मोहल्ले में मेरे ख़ुशी है छा गयी।

पर मेरा दिल अभी भी उदास है,
इस पावन पर्व पर तू क्यूँ ना मेरे पास है।

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहे :- युगल प्रेमियों के लिए , अच्छी होती ठण्ड़ । बच्चों बूढ़ों को सदा , देती रहती दण्ड़ ।।१ ऊनी कपड़ो के सभी , दूर करो अब गंध । शीत-लहर चलने #कविता

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आओ खेलें हम यहाँ , लुका छुपी का खेल ।
मन्नू की तो आ रही , देखो छुक-छुक रेल ।।११

बापू आज पतंग मैं , दूँगा सबकी काट ।
बहुत लगे हैं बोलने , यह अच्छी है डाट ।।१२

बापू तेरा हाथ मैं , चलूँ पकड़कर संग ।
तू ही आगे भागता , दुनिया है बेरंग ।।१३

गैरो की आने लगे , जब अपनों को याद ।
ऐसा ही होगा सदा , जब ऐसी औलाद ।।१४

मातु-पिता को गैर जब , मान रही औलाद ।
फिर तो पश्चाताप का ,  चखना ही है स्वाद ।।१५

कुछ भी कह लो बात तुम , बच्चे दें ना ध्यान ।
मातु-पिता के अंत में , बस रह जाते प्रान ।।१६

चका-चौंध में हो गये , टुकड़े अब पैंतीस ।
मातु-पिता की मानती , निकली होती खीस ।।१७

चाँद हुआ है मध्य में , देख रहा है चकोर ।
पल-पल आहें भर रहा , देख उसी की ओर ।।१८

१६/११/२०२२    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहे :-

युगल प्रेमियों के लिए , अच्छी होती ठण्ड़ ।
बच्चों बूढ़ों को सदा , देती रहती दण्ड़ ।।१

ऊनी कपड़ो के सभी , दूर करो अब गंध ।
शीत-लहर चलने

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

युगल प्रेमियों के लिए , अच्छी होती ठण्ड़ । बच्चों बूढ़ों को सदा , देती रहती दण्ड़ ।।१ ऊनी कपड़ो के सभी , दूर करो अब गंध । शीत-लहर चलने लगी , कर #कविता

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युगल प्रेमियों के लिए , अच्छी होती ठण्ड़ ।
बच्चों बूढ़ों को सदा , देती रहती दण्ड़ ।।१

ऊनी कपड़ो के सभी , दूर करो अब गंध ।
शीत-लहर चलने लगी , कर लो सभी प्रबंध ।।२

सुबह-शाम की धूप का , ले लो सब आनंद ।
पूस-माघ की ठण्ड है , कर लो खिड़की बंद ।।३

करता विनय किसान है , खूब पड़े अब ठण्ड़ ।
देखो गर्मी की फसल , दे जाती है दण्ड़ ।।४

सर्दी आयी झूम के , लियो रजाई तान ।
अन्दर-अन्दर आप भी , करिये प्रभु का ध्यान ।।५

ठण्ड़ी के दिन में यहाँ , बनते लोग महान ।
हफ्ता भी जाए चला , करें नहीं स्नान ।।६

कहते मन की बात को , प्रखर हृदय को थाम ।
आज सजन के नाम से , बीती ठण्ड़ी शाम ।।७

अम्मा-अम्मा बोलता , बालक वह नादान ।
अम्मा बातों में लगी , दिए नहीं अब ध्यान ।।८

अम्मा मुझको चाहिए , ऊपर वाला चाँद ।
बेटा पहले भर यहाँ , तू अपना यह नाँद ।।९

मुझको जाना ही नही , अम्मा से अब दूर ।
क्या करना पढ़कर यहाँ , मैं अच्छा लंगूर ।।१०

आओ खेलें हम यहाँ , लुका छुपी का खेल ।
मन्नू की तो आ रही , देखो छुक-छुक रेल ।।११

बापू आज पतंग मैं , दूँगा सबकी काट ।
बहुत लगे हैं बोलने , यह अच्छी है डाट ।।१२

बापू तेरा हाथ मैं , चलूँ पकड़कर संग ।
तू ही आगे भागता , दुनिया है बेरंग ।।१३

गैरो की आने लगे , जब अपनों को याद ।
ऐसा ही होगा सदा , जब ऐसी औलाद ।।१४

मातु-पिता को गैर जब , मान रही औलाद ।
फिर तो पश्चाताप का ,  चखना ही है स्वाद ।।१५

कुछ भी कह लो बात तुम , बच्चे दें ना ध्यान ।
मातु-पिता के अंत में , बस रह जाते प्रान ।।१६

चका-चौंध में हो गये , टुकड़े अब पैंतीस ।
मातु-पिता की मानती , निकली होती खीस ।।१७

चाँद हुआ है मध्य में , देख रहा है चकोर ।
पल-पल आहें भर रहा , देख उसी की ओर ।।१८

१६/११/२०२२    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR युगल प्रेमियों के लिए , अच्छी होती ठण्ड़ ।
बच्चों बूढ़ों को सदा , देती रहती दण्ड़ ।।१

ऊनी कपड़ो के सभी , दूर करो अब गंध ।
शीत-लहर चलने लगी , कर
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