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ASIF ANWAR
कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़-दार में बहादुर शाह ज़फ़र ©ASIF ANWAR कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़-दार में
Dipak Kumar
जो पूरी कायनात लिए फिरते हो निगाहों में, तुम्हे क्या पता आसमां क्या है जमीं क्या है। जो यूँ बातें धीमे से करके , बदल देते हो मौसमो को, तुम्हे क्या पता सुश्क क्या है नमी क्या है। यूँ नज़रे उठा कर गिराया न करो हमनशी, के तुम्हे आशिकों की कमी क्या है। फिर क्यूँ बार बार चले आते हो लौट के तुम यूँ, के इश्क़ में बर्बाद होने को बचे सिर्फ हमीं क्या है। सुश्क= सूखा #हमनशी
शान-ए-शब
गर जो "तुम्हे" इतनी देर लगेगी आते आते, ऐसा ना हो, कि हम "कहीं और दिल" लगा बैठे ।। कहीं और
Renu Kumari
पापा कहां पकड़ कर चलो कहीं जाकर रुक जाओ पापा कैसे होती है हम पापा को रोक सकते थे मैं बोल रहा था पापा को ©MD IMRAN AlAM #Fathe#BORsDay @हाथलो कहीं जाकर भूल जाऊं चलती
Narendra Kumar
मुझे जिससे अक्सर मिलना था, अब उनसे मुलाकात नहीं होती.... मुलाकात छोड़िए,अब तो उनसे हमारी बात तक नहीं होती... जो कहा करते थे हर वक्त साथ निभाएंगे तुम्हारा... मैं बहुत समय से ढूंढ रहा,अब यादों के अलावा उनसे कहीं और बात नहीं होती!! ©Narendra Kumar कहीं और #achievement
संकल्प साग़र
संविधान के नाम पर थोड़ा मजा लेते है चलो चलकर दो चार बसें जला लेते है ! वो हमें देश से बाहर निकालना चाहते है चलो हाथों में पत्थर उठा लेते है ! वो हमसे सबूत मांगेंगे हमारे सही होने का भीड़ बनकर ख़ून की नदियाँ बहा लेते है ! मशवरा यही है की ना तुम जाओगे ना हम निकलेंगे एक एक कदम आहिस्ता आहिस्ता बढ़ा लेते है ! सियासत नहीं चाहती की हम कभी एक हो वो बहुत खुश है इन्हे लड़ा लेते है ! वो हमें लड़ने के लिए हमें ज़रूर उकसाएँगे चलो एक दूसरे को देने के लिए फ़ूल उठा लेते है ! मज़बूत दरख़्त खड़े रहते है आँधियों में भी तनकर छोटे पेड़ों को तो बच्चें भी हिला लेते है ! संकल्प साग़र ग़ौर देश को मज़बूत बनाने पर ध्यान दे सरकारी संपत्ति पर हमारा बराबर अधिकार है! पुलिस पर पत्थर ना फेंके उन्हें भी दर्द होता है! मेरे भाइयों वो भी अपनी माँ के बच्चे है! संकल्प साग़र ग़ौर # दो चार बसें जला लेते है !
आकाश भिलावली वाला
मेरी मंजिल कहीं और मैं कही और जा रहा हूँ मिलेगी एक दिन वो मुझे इसी आश जियें जा रहा हूँ ©आकाश भिलावली वाला मेरी मंजिल कहीं और
Mohan Sardarshahari
काम भी अजीब है मूल कहीं और है लगाम कहीं और है फल पर ना जोर है।। ©Mohan Sardarshahari लगाम कहीं और है
Author Harsh Ranjan
हवा में तैरते सत्य को मैंने पन्ने पर रख दिया, पन्ना आदतवश हर सड़क, गली, नुक्कड़ उसे पेश कर आया। लोगों को लगता है कि एक तमंचा लेकर घर से निकला आज़ाद पागल था, एक बम फेंककर फांसी चढ़ते युवा सनकी थे, डेढ़ किलो के दिमाग में किताबें भरकर पीढ़ी दर पीढ़ी चलते आते लोग व्यसनी थे। अनपढ़ देश मे कागज़-कलम दयनीय हैं खासकर कि तब जब देश में दर्जन भर लिपियाँ हो! कुछ लोग आज भी मानते हैं कि कागज़ और आवाजें बहुत कुछ कर सकती हैं। जिन्हें कुछ की काबिलियत नहीं वो सरकारी कर्मचारी बन गए। जो कुछ कर नहीं सकते वो प्रशासनिक अधिकारी बन गए, जिन्हें बाधाएं डालने की आदत है वो सतर्कता में चले गए, और हर मुँहचोर, सवालों से कई लेवेल ऊपर जाने के लिए नेता या मनोरंजन खोर बन गए। देश चुनौती के चु से परेशान नहीं है यहाँ दुख कुछ और है! ये जो मुंह अंधेरे हाथ में टोर्च लिए मुर्गे की आवाज में बांग देते हो, हमें पता है सवेरा और सूर्य कहीं और है। सवेरा कहीं और है