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Parasram Arora

आभासी ... यथार्थ

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कोणार्क  के सूर्य   मंदिर मे  
अंधेरों  का  बसेरा  हैँ   
पुरी के  जगदीशजी  अपने ही  मंदिर से 
नदारद हैँ 
क्न्या  कुमारी  के  देश  मे 
अबलाओ का समूह  सिसक  रहा हैँ 
यहां सबकुछ   आभासी  हैँ औऱ यथार्थ  से  सचाई  का 
दूर  दूर तक  कही  वास्ता  नहीं  हैँ आभासी ... यथार्थ

Arora PR

आभासी जीवन #कविता

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Arora PR

आभासी जीवन #कविता

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Parasram Arora

आभासी स्वर्ग

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संज्ञा  औऱ  सर्वनाम  तो  पहले से ही 
मौजूद  थे 
पर  विशेषणों ने   आकर  जी धमाल  की हैँ 
उसीसे  रक्तरंजित  हुईं हैँ  ये  धरती 
निलंबित  हुईं हैँ  मानवीय  योजनाए 
औऱ नर्क  के  द्वार  पर   स्वर्ग की  तख्ती   लगा कर 
 भृमित  किया जा  रहा  हैँ   मानव को 
इसीलिए  वो इस     आभासी  स्वर्ग की  तीर्थयात्रा पर   जाये  बिना   
रुकता  नहीं हैँ आभासी  स्वर्ग

Arora PR

आभासी जीवन #कविता

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Aurangzeb Khan

#सर्वोच्च न्यायालय #Society

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k.k mehra

आभासी खुशियां । #LostInNature

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संबल अक्ल नकल घन घोर तन मन धन सब मेल 
सब रंग केद 
सब उड़ाए फेक के रंग   ।
फिर भी दुनिया बेरंग

©k.k mehra आभासी खुशियां ।

#LostInNature

somnath gawade

#आभासी खिडकीतून डोकावताना.....

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आभासी खिडकीतून डोकावताना..
आभासी खिडकीतून डोकावताना
डोळे हरखून जातात तिसरे जग पाहताना
मग आपण हळूहळू गुंतत जातो;
त्यातले खरे-खोटे समजून घेताना.

दुसऱ्यांच्या चांगल्या-वाईटाच्या शोधात
आपण स्वतः मात्र हरवत जातो.
आभासी जगातल्यांचे अंधानुकरण करताना
आपण आपले वेगळेपण विसरत असतो.

आभासी लोक चांगुलपणाचा 
फसवा वैश्विक बाजार मांडतात.
साधी भोळी लोकं त्यांची गिऱ्हाईकं होऊन
उगाच त्यांचा उदोउदो करत सुटतात.

भुरळ घालणारे अनेक धूर्त मुखवटे
तुम्हाला येथे भेटतील.
नकळत कार्यभाग साधला की,
तुम्हाला खिडकीत ताटकळत ठेऊन जातील.

वेळ कसा निघून जातो हे कळत नाही;
खिडकीततुन अनेक वाटा धुंडाळताना.
वास्तव काही हाती लागत नाही;
आभासी जग सैरभैर हिंडताना.

आभासी खिडकीतून डोकावण्याआधी
स्वतःच्या अंतरंगात डोकावलं पाहिजे.
जवळच्या माणसांचं मोल जाणून
खिडकीपासून शक्य जितकं दूर राहील पाहिजे.
 #आभासी खिडकीतून डोकावताना.....

Nidhi Pant

दरमियां कोई दीवार नहीं  पारदर्शी सा रिश्ता । फिर भी पूछते हो क्या चाहते हो? लगता है  आभासी था सब कुछ। #आभासी #नकली_दुनिया #दिखावे_की_बातें

Kavita jayesh Panot

न्याय की कतार 

अन्यायों की बस्तियों में,
देखो न्याय के लिए कतार लगी है।
छोटी नही है कोई आवाजे ,
दिल की गहराइयों से गुहार लगी है।
सुनने वाला जैसे बेहरा हो,
आँखों से दृष्ट राज ।
राज सभा में द्रोपतियो की भीड़ लगी है।
सरेआम छल ली जाती है ,
इज्जत बाजारों में किसी बेकसूर की।
जैसे किसी हैवान की वासना मुख में सजी हो।
किसी के घर पकवानों की थालियां सजती है,
तो कोई भूख से तड़प कर मौत की नींद सो जाता है।
कोर्ट कचहरी के चक्कर लगा,
कोई लुटा देता है अपनी बुढ़ापे की जमा पूँजी भी,
एक न्याय की आस में।
फिर भी वर्षो से कागजातों में बंद उम्मीदे पड़ी है।
कोई अपने हक की कमाई के लिए ,
गिड़गिड़ाता है,
लाठी के सहारे भी पेंशन आफिस के चक्कर लगाता है।
न जाने ये न्याय का कैसा रास्ता है?
अधिकारों और न्याय की सुनवाई तो,
मन्दिरों के द्वार पर भी धागों में बंधी है।
अन्याय की इस बस्ती में ,
न्याय की कतारें लगी है।
न्याय की गद्दी पर बैठा अंधा है,
अन्यायों की महफ़िल हर जगह जमी है।
कोई मखमली लिबाज पहनें तो,
किसी को कफ़न भी न नसीब है।
ईश्वर ने बनाया इंसान ,
ये इतनी सारी अलग -अलग पहचान कैसे ,क्यों बनी है?
चलो अब इंसानियत को अपना मूल धर्म बना,
भेदों को  जहाँ से मिटा दे।
हर इंन्सा को उसके मूलभूत अधिकार दिला,
ख़ुशनुमा औरो के जीवन भी बना दे।
चलो आज समाज को सामाजिक न्याय और,
कर्तव्यों के सही मायने सीखा ,
अन्याय की बस्ती में आग लगा दे।।
कविता जयेश पनोत

©Kavita jayesh Panot #न्यायालय #न्याय#इंसानियत
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