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Stories related to फहराएंगे गरम जलेबी खाएंगे

Jeetal Shah

#poem दिसंबर की सर्दियों का जादू दिसंबर की सर्दियों का जादू, चिलचिलाती ठंड, और हरियाली का नजारा।

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White दिसंबर की सर्दियों का जादू

दिसंबर की सर्दियों का जादू,
चिलचिलाती ठंड, और हरियाली का नजारा।

साग-सब्जियों की बहार, और गरमा-गरम सूप का आनंद,
सर्दियों की रातों में भी, दिल को गरम रखने का मौसम।

क्रिसमस की धूम, और सांता क्लॉज़ की कहानी,
एक्समास ट्री की सजावट, और चर्च में प्रार्थना की धुन।

साल के अंत में, नए साल का स्वागत,
365 नए दिन, नए विचार, नए लक्ष्य, और नए सपने।

भूल जाने को पुराने दिन, और नए साल की शुरुआत,
नए संकल्पों के साथ, और नए जोश के साथ।

दिसंबर की सर्दियों का जादू,
हमें नए साल की ओर ले जाने का एक मौसम।

©Jeetal Shah #poem 
दिसंबर की सर्दियों का जादू


दिसंबर की सर्दियों का जादू,

चिलचिलाती ठंड, और हरियाली का नजारा।

neelu

#sad_quotes #आजकल के लोगों के अलग फरमाइशों को देखो तो उनको जलेबी खानी है पर वह भी सीधी अब इसमें लोगों की #गलती है या जलेबी की

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White आजकल के लोगों के अलग फरमाइशों
को देखो तो
  उनको जलेबी खानी है पर वह भी सीधी

अब इसमें लोगों की गलती है 
या जलेबी की

©neelu #sad_quotes #आजकल के लोगों के अलग फरमाइशों
को देखो तो
  उनको जलेबी खानी है पर वह भी सीधी

अब इसमें लोगों की #गलती है 
या जलेबी की

gudiya

#NatureQuotes #मातृभूमि #nojotohindi nojotophoto #nojoyopoetry आज इस्लाम जब मैं भेजता खड़ा हूं आसमान और धरती के बीच

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Nature Quotes आज इस्लाम जब मैं भेजता खड़ा हूं आसमान और धरती के बीच 
तब तब अचानक मुझे लगता है यही तो तुम हो मेरी मां मेरी मातृभूमि 

धान के पौधों ने तुम्हें इतना ढक दिया है कि मुझे रास्ता तक नहीं सुझता 
और मैं मेले में कोई बच्चे सा दौड़ता हूं तुम्हारी ओर 
जैसे वह समुद्र जो दौड़ता आ रहा है छाती के सारे बटन खोले हाहाता 


और उठती हैं शंख ध्वनि कंधराओं के अंधकार को हिलोडती 
यह बकरियां जो पहली बूंद गिरते ही भाग और छप गई पेड़ की ओट में 

सिंधु घाटी का वह सेंड चौड़े पत्ते वाला जो भीगा जा रहा है पूरी सड़क छेके 
वे मजदूर जो सुख रहे हैं बारिश मिट्टी के ढीले की तरह

 घर के आंगन में वह  नवोढ़ा भीगती नाचती और 
काले पंखों के नीचे कौवों के सफेद रोए तक भीगते 
और इलायची के छोटे-छोटे दाने इतने प्यार से गुथंम गुत्था यह सब तुम ही तो हो 

कई दिनों से भूखा प्यासा तुम्हें ही तो ढूंढ रहा था चारों तरफ
 आज जब भी की मुट्ठी भर आज अनाज भी भी दुर्लभहै 
तब चारों तरफ क्यों इतनी बाप फैल रही है गरम रोटी की 
लगता है मेरी मां आ रही है नकाशी दार रुमाल से ढकी तश्तरी में 

खुबानीनिया अखरोट मखाने और काजू भरे
 लगता है मेरी मां आ रही है हाथ में गर्म दूध का गिलास लिए 
यह सारे बच्चे तुम्हारी रसोई की चौखट पर कब से खड़े हैंमां 
धरती का रंग हरा होता है फिर सुनहला फिर धूसर 
छप्परों से इतना धुआं उठता है और गिर जाता है 
पर वहीं के वहीं हैं घर से निकले यह बच्चेतुम्हारी देहरी पर 
सर टेक सो रहे हैं मां यह बच्चे कालाहांडी के 
यह आंध्र के किसानों के बच्चे यह पलामू के पटन नरोदा पटिया के 

यह यदि यह यतीमअनाथ यह बंदहुआ 
उनके माथे पर हाथ फेर दो मां 
इनके भीगी के सवार दो अपने श्यामलहाथों से 
तुम कितनी तुम किसकी मन हो मेरी मातृभूमि 
मेरे थके माथे पर हाथ फेरती तुम ही तो हो मुझे प्यार से तख्ती और मैं भेज रहा हूं 
नाच रही धरती नाच आसमान मेरी कल पर नाच नाच मैं खड़ा रहा भेजता बीचो-बीच।
-अरुण कमल

©gudiya #NatureQuotes 
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आज इस्लाम जब मैं भेजता खड़ा हूं आसमान और धरती के बीच
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