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शीर्षक - एक शिक्षित नारी। ( विधवा )।। कहानी।। एक गांव में मध्यम वर्गीय परिवार रहता था। उसमें कुल पांच सदस्य थे। माता पिता ओर तीन बच्चे थे। जिनमें दो लडकियां ओर एक लड़का था। लड़का MBA कर रहा था। और लडकिया भी ग्रेजुएट कि हुई थी। बच्चे जवान हो गये थे। बड़ी लडकी के लिए रिश्ते आने चालु हो गये थे। कुछ रिश्तो को टालने के बाद लड़की को एक लड़का पसंद आया। लड़के का परिवार भी मध्यम वर्गी ही था। ज्यादा धन दौलत कि लालच न थी इसलिए दहेज की भी मांग न थी। लडकी का ससुर समाज का मुखिया था। उन्हे बस अपने घर के लिए एक बहु चाहिए थी। सबको यह रिश्ता बहुत पसंद आया। कुछ दिनों बाद लड़की कि शादी हो गई। लड़का लडकी दोनों अपनी शादीशुदा जिन्दगी से बहुत खुश थे। लडके के पिता का समाज मे मान सम्मान था। गाँव के हर फेसले में सही-गलत का सुझाव वही देते थे। साथ ही अनुभवी भी थे। परन्तु एक और वह कुप प्रथाओ के रक्षक भी थे। उनका मानना था, कि विद्यवा होना एक श्राप है। और विद्यवा औरत को घर की चार दिवारी में बंद ही रहना चाहिए। पराये मर्द के सामने देखना भी गलत है। वे नारी जात को बच्चे पैदा करने कि मशिन समझते थे। समाज में हर बार पुरूषो को ही प्रोत्साहीत क रते रहते थे। औरतो को सिर्फ घर के काम काज करना ही उचित समझते थे। कुछ सालों बाद मुखिया के बेटे कि कार एक्सिड़ेन्ट में मौत हो गई। उसकी बहु कम उम्र में ही विद्यवा हो गई थी। उसकी कोई संतान नही थी। वह पढ़ी लिखी होने के कारण अपने पति के काम काज को धिरे धिरे करने लगी थी। वह श्वेत वस्त्रो में भी शहर आना जाना करती रहती थी। कुछ दिनों बाद समाज में यह मुद्दा उठा कि मुखिया जी के घर की बहु विद्यवा होते हुए भी बाहर घूमती है। उसमें संस्कार नाम कि चिज नही है । मुखिया जी ने अपनी बहु को गाँव के रिती रिवाजों के साथ चलने को पाबन्द करते रहे। परन्तु बहु शिक्षित युवा थी। वह अपने पति के काम को खुद चलाती रही। उसने समाज के आडम्बर धारी समस्त लोगों को यह संदेश दिया कि विद्यवा होना कोई श्राप नही अपितु यह तो नारी का दुसरा स्वरूप है। आप जिस स्त्री को चार दिवारी मे कैद करना चाहते हो। वह समाज का गौरव है, और जो समाज नारी को विद्यवा कहकर तिरस्कृत करता है। उसका कभी उत्थान हो ही नहीं सकता। विद्यवा बहु कि इस सोच ने समाज की ओर भी विघवा औरतो का हौसला बढ़ाया। वह सब ने मिलकर समाज कि कु-प्रथाओं को बन्द करने का बेडा उठाया ओर संगठीत नारी, सशक्त नारी का पैगाम दिया। विशेष- औरतो को अपने हक खातिर समाज मे आवाज उठानी चाहिए। नाम- नटवर चरपोटा। जिला - बॉसवाड़ा । राज़ ।। ©Navin विधवा पुनर्विवाह पर एक कहानी। #freebird
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विधवा पुनर्विवाह पर आधारित।। कविता।। शीर्षक - मुझे भी जीना है। क्यों झेलू मै तुच्छ सामाजिक आडंबर। मुझे इस सामाजिक बंधन में नहीं रहना है। मुझे भी जीना है। क्यों विधवा कहकर मुझे तिरस्कृत किया जाता है। मै तो सशक्त नारी हूं क्यों बोझ समझलिया जाता है।। मुझे भी जीना है। नहीं थी कोई गलती मेरी, वैवाहिक बंधन में। क्यों छोड़ा साथ पिया ने, रख सामाजिक दलदल में।। मुझे भी जीना है। क्यू घूरती रहती है कुछ हैवानी अखियां। क्यों घर छिपी रहूं मैं, मुझे इस अंधकार में नहीं रहना।। मुझे भी जीना है। कोन है रक्षक? कितनो के उपकार मानू मै। कोन है भला बुरा किन-किन को पहचानूं मै।। मुझे भी जीना है। पिता ने दी विदाई, पति ने अपनाया था। पीहर था जान से प्यारा, ये ससुराल पराया था।। मुझे भी जीना है। कुछ धुंधले सपनों कि सांसे, पति संग श्मशान चली। श्वेत वस्त्र ही धारण किए, क्यों विधवा बोले गली-गली।। मुझे भी जीना है। अपने कुछ अधूरे सपनों को, मुझे भी पूरा करना है। "मुझे भी जीना है" "मुझे भी जीना है।" "मुझे भी जीना है।।" नाम - नटवर चरपोटा। जिला - बांसवाड़ा। राज़।। ©Navin विधवा पुनर्विवाह एक श्राप.. #feather