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Suman vishwakarma
*बिहारी जी की कृपा* *एक भक्त था जिसका नाम था गोवर्धन। गोवर्धन एक ग्वाला था। बचपन से दूसरों पे आश्रित क्योंकि उसका कोई नहीं था और जिस गाँव में रहता, वहाँ की लोगो की गायें आदि चरा कर जो मिलता, उसी से अपना जीवन चलाता, पर गाँव के सभी लोग उस से बहुत प्यार करते थे* *एक दिन गाँव की एक महिला, जिसे वह काकी कहता था, के साथ उसे वृन्दावन जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उसने वृन्दावन के ठाकुर श्री बाँकेबिहारी जी के बारे बहुत कुछ सुना था, सो दर्शन की इच्छा तो मन में पहले से थी।* *वृन्दावन पहुँच कर जब उसने बिहारी जी के दर्शन किये, तो वो उन्हे देखता ही रह गया और उनकी छवि में खो गया। एकाएक उसे लगा के जैसे ठाकुर जी उसको कह रहे हैं, आ गए मेरे गोवर्धन! मैं कब से प्रतीक्षा कर रहा था, मैं गायें चराते थक गया हूँ, अब तू ही मेरी गायें चराने जाया कर। गोवर्धन ने मन ही मन "हाँ" कही। इतनी में गोस्वामी जी ने पर्दा डाल दिया, तो गोवर्धन का ध्यान टूटा।* *जब मन्दिर बन्द होने लगा, तो एक सफाई कर्मचारी ने उसे बाहर जाने को कहा।गोवर्धन ने सोचा, ठीक ही तो कह रहे है, सारा दिन गायें चराते हुए ठाकुर जी थक जाते होंगे, सो अब आराम करेंगे, तो उसने सेवक से कहा , ठीक है, पर तुम बिहारी जी से कहना कि कल से उनकी गायें चराने मैं ले जाऊँगा। इतना कह वो चल दिया। सेवक ने उसकी भोली सी बात गोस्वामी जी को बताई। गोस्वामी जी ने सोचा, कोई बिहारी जी के लिए अनन्य भक्ति ले कर आया है, चलो यहाँ रह कर गायें भी चरा लेगा और उसके खाने पीने, रहने का इंतजाम मैं कर दूँगा।* *गोवर्धन गोस्वामी जी के मार्ग दर्शन में गायें चराने लगा। सारा सामान और दोपहर का भोजन इत्यादि उसे वही भेज दिया जाता* *एक दिन मन्दिर में भव्य उत्सव था। गोस्वामी जी व्यस्त होने के कारण गोवर्धन को भोजन भेजना भूल गए। पर भगवान् को तो अपने भक्त का ध्यान नहीं भूलता। उन्होने अपने एक वस्त्र में कुछ मिष्ठान इत्यादि बाँधे और पहुँच गए यमुना पर गोवर्धन के पास। गोवर्धन ने कहा, आज बड़ी देर कर दी, बहुत भूख लगी है।गोवर्धन ने जल्दी से सेवक के हाथ से पोटली ले कर भर पेट भोजन पाया। इतने में सेवक जाने कहाँ चला गया, अपना वस्त्र वहीँ छोड़ कर।* *शाम को जब गोस्वामी जी को भूल का एहसास हुआ तो उन्होने गोवर्धन से क्षमा मांगी। तो गोवर्धन ने कहा "अरे आप क्या कह रहे है, आपने ही तो आज नए सेवक को भेजा था प्रसाद देकर ये देखो वस्त्र, जो वो जल्दी में मेरे पास छोड़ गया।* *गोस्वामी जी ने वस्त्र देखा तो आश्चर्यचकित हो गए और गोवर्धन पर बिहारी जी की कृपा देख आनंदित हो उठे। ये वस्त्र स्वयं बिहारी जी का पटका (गले में पहनने वाला वस्त्र) था, जो उन्होने खुद सुबह बिहारी जी को पहनाया था।* *ऐसे है हमारे बिहारी जी जो भक्तों के लिए पल में दौड़े आते हैं।* ©Suman vishwakarma kanha ji ki kahani #baisakhi
Shubham Yadav
#OpenPoetry duriya shabd bahut hi difficult word h ise samajhna har kisi ke liye aashan nhi h but agr ise kisi ne samajh liya to samjho wo jindgi ke sare dukho ka rasta khoj liya duriya ko to ham badnam karke rakhr h but asal jindgi me hame duriya se koi nukshan nhi h duriya bahut hi jaruri h hamare life me kyoki duriya hi h jisse hamee kisi ke kho jane ka ahsas hota h agr duriya na ho to hame kisi ka apne hone na hone ka ahsas hi nhi hoga jis prakar kisi vraksh se koi fruit (fal) tut kar dur hota h to asal me to vo dur hota hi nhi h agarr vo fal dur nhi hoga to dusra vraksh kaha se utpann hoga jab fal kisi vriksh se alag hota h to vo apni naii janm jati kp uttpann karta h usi prakar ham logo ke bich agr duriya aati h to vo hame us shkash ki jarurto ka ahsas dilati h yadav ji ki kahani dil ki jubani
yadav ji ki kahani dil ki jubani #OpenPoetry
read moreUsharajesh Sahu
बचपन और दादा जी garmi ka mousam tha bachpan ke din angan me hoti thi charpai or aasman ke niche hote the hum kitne acche the na vo din n koi tension rhta tha n koi problem bus dada ji ki ek kahani se hume aa jati thi mithi mithi nind. aaj bhi yad aate hai vo din ab sochti hu kaha kho gye vo din garmi ka mousam tha vo bachpan ke din.... dada ji ki kahani or mithi mithi nind
dada ji ki kahani or mithi mithi nind
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