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Nova Changmai
एक आदमी रास्ते पर भिक्षा मांग रहा था, तब अचानक रास्ते से दो आदमी चल के आ रहा था। एक अमीर और एक गरीब पहले भिक्षा मांगते हुए आदमी ने अमीर आदमी से खाने के लिए कुछ देने के लिए बोला लेकिन अमीर आदमी ने भिक्षा मांगते हुए आदमी को बोला तुम दिन में ₹500 कमा लेती हो, और महीने में 15 16 हजार कमा के मेरे से पैसा मांग रहे हो? तुमको शर्म आना चाहिए था, मेरे से ज्यादा तुम कमाते हो मेरा रास्ते से हट जा। "तब आदमी ने बोला" मेरा पास हाथ, पैर सलामत रहता था तो, आपसे पैसा नहीं मांगता ? तब अचानक गरीब आदमी सुनकर उनका पास आ जाता है। और बोलता है "इनको पैसे से प्यार है आप इनको पैसा मत मांगो, जो आदमी पैसा से प्यार है वह आदमी का दर्द और दिल को नहीं समझ पाता है! अपना काम कहते रहिए आपको सही रास्ता दिखाने वाला भगवान है।" ©Nova Changmai #कहानी #शायरी #कविता #समास #फिल्म #भावुक कहानी #जिंदगी
PRATIK BHALA (pratik writes)
Sonam Pandey
JitendraChaturvadi
Yashpal singh gusain badal'
रिश्ते ठंडे हो गए हैं रिश्ते, अपनत्व की उष्णता के बिना, लाभ-हानि को नापते हुए, खो चुके हैं अपनी गरिमा, हो गए हैं सब प्रथक और विभक्त , कुछ दाएं,कुछ बाएं, कुछ ऊपर उठ गए, कुछ नीचे छूट गए, कुछ बहुत ठंडे हो गए ऊंचाई पाकर, हिमाच्छादित चोटियों के तुल्य, जम चुकी है अभिमान की बर्फ उन पर , कुछ कुंठाग्रस्त होकर हो गए एकांकी, कुछ बैठे हैं स्थिल भावविहीन , निराश, आशा विहीन,अवसादग्रस्त, कुछ उद्विग्न, कुछ शंशय युक्त, कुछ ऊर्जावान भी हैं,प्रबुद्ध चेतना के साथ, जीवन को रसयुक्त बनाये हुए, मगर इन रिश्तों में एक रिक्तता है, जैसे एक तालविहीन गीत , लेकिन कौन प्राणमयी बनाये इन संबंधों को ! कौन मधुर सुर दे इन रिश्तों को ! कौन करे ऊर्जा संचरण ! कौन निराशा तोड़े ! कौन विश्वास जगाए ! कौन भगीरथ बन कर तप करे, शिव सा प्रेम जगाए ! कौन मंदरांचल बन मथनी बने ! जो निष्प्रह बीतराग गाये। कोई तो बहे प्राणरस बन , प्रेम का संचार करे ! भावविहीन संबंध नष्ट हो जाएंगे, प्रेम और उष्णता के बिना, कोई तो कृष्ण बने, मार्ग दिखाए, कोई तो नीलकंठ बन, समस्थ गरल पी जाए, कोई तो राम बने, जो विश्वास का प्रतिमान बन जाये, बने मरुत सुत सा सहचर , संकट हर जो हर कष्ट मिटाये । रचना-यशपाल सिंह बादल ©Yashpal singh gusain badal' ठंडे हो गए हैं रिश्ते, अपनत्व की उष्णता के बिना, लाभ-हानि को नापते हुए, खो चुके हैं अपनी गरिमा, हो गए हैं सब प्रथक और विभक्त , कुछ दाएं,कुछ