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Sarita Shreyasi
छोटी थी,तो दादी की भूमिका,मैं ठीक समझ नहीं पाती थी, यदि अच्छी थी तो,गुस्सा क्यूँ दिखाती थी, सच्ची थी तो,कुछ बातें क्यूँ छिपाती थी? गलती पापा की हो तो दादा से डाँट खाती, जब दादा सही नहीं होते तो पापा की सुनती, खारी,भींगी मुस्कान में,दोनों की बात गुमा देती। चौखट और चौबारे पर बैठी स्त्री को, समय के साथ, समझने की जिद में मैंने उधेड़ दिया पूरी तरह,माँ के किरदार को, मर्यादा के महीन आवरण में बुने कर्तव्यों, और सौंधी चाशनी में चिपके अधिकार को। आज उसी उघड़े धागे से,खुद को बुनती जाती हूँ, पुराने अनुभवों और नये विचारों के बुने कपड़े से, रोज बेटी के सच और सोच सिलती हूँ, सपनों को एक नया जामा पहनाती हूँ, पुरातन लिबास छोड़,नित नुतन अपनाती हूँ। सदियों से हर स्त्री, एक ही कतली से ये सूत निकालती है,माँ से सीखती है, अतीत उधेड़ती है,आज को बुनती है, कल की कोख में कल्पना रंग डालती है, रेशमी डोरियों से बुनी चादर में,बेटी के लिए सितारे टाँकती है। छोटी थी,तो दादी की भूमिका, मैं ठीक समझ नहीं पाती थी, यदि अच्छी थी तो,गुस्सा क्यूँ दिखाती थी, सच्ची थी तो,कुछ बातें क्यूँ छिपाती थी? गलती पाप
Sarita Shreyasi
रेशमी डोरियों में बँध के, व्यस्त घड़ियाँ भी थम गयीं, माँ के लोरियों की थाप में, सूखी संवेदना भी नम गयीं। रेशमी डोरियों में बँध के, व्यस्त घड़ियाँ भी थम गयीं, माँ के लोरियों की थाप में, सूखी संवेदना भी नम गयीं।
Kunal chouhan
न दिल से न दिमाग से हैप्पी दिवाली तन से मन से और धन से
Shubham Dwivedi
मिलेंगे कभी तो खूब रुलायेंगे उसे.. 💕 सुना है…रोते हुये..लिपट जाने की आदत है उसकी.. #NojotoQuote दिल से दिल से
Mamta choudhary
सब जानते हैं हाथों से लिखा जाता फिर भी पता नहीं दिल से लिखो दिल से लिखो दिल से लिखो क्यों बोलते रहते हैं ©mamta choudhary दिल से नहीं हाथों से लिखो हाथों से