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Rupam Jha
अपनो नै जं कखनो अप्पन रहतइ। त कहु आश कि लोक दोसर सँ करतई। जं अप्पन समांग हरदम खिशियैते रहतइ। त कहू आन कखनो मोजरो करतइ? ओना त दोसर सं बेसी उम्मीद नहिये करी... तयो जं एक मनुख दोसर क मदद नै करतइ। त कहू जे फेर इ जग कोना कय रहतइ? आत्मनिर्भरता बड निक गप होयत छैक, लेकिन ओकरा सदिखन रट लगेनियाहर; एक बेर समाजो क गौर सं देखू,... जतऽ परस्पर मेल- मिलान सँ सब काज सम्पन्न होएत
खामोशी और दस्तक
पुरुष की आकाँक्षा काम की है । सुन्दर स्त्री की आकाँक्षा बड़े गहरे में अर्थ की है धन—पद की जरूरत है भोगने के लिए । बिना धन के भोगेंगे कैसे ? बिना धन के अच्छी स्त्री भी न पा सकेंगे । बिलकुल निर्धन हुए तो स्त्री भी न पा सकेंगे । स्त्रियाँ आमतौर से धन में उत्सुक होती हैं । यह हमने खयाल किया । धनी को सुन्दरतम स्त्री मिल जाती है । चाहे धनी सुन्दर न हो । ना भी हो धनी, तो भी युवा स्त्री मिल जाती है । ओनासिस को जैकी मिल जाती है । धन हो ! तो थोड़ा सोचने जैसा है कि स्त्री को धन में इतनी उत्सुकता क्या है ? स्त्री काम है । धन के बिना काम के खिलने की सुविधा नहीं । धन तो ऐसे ही है जैसे पौधे में पड़ी खाद है । बिना खाद के फूल न खिल सकेगा । इसलिए स्त्री की सहज आकाँक्षा धन की है । वह बलशाली आदमी को खोजती है । महत्वाकाँक्षी को खोजती है । धनी को खोजती है । पद वाले को खोजती है । स्त्री सीधे—सीधे चेहरे पर नहीं जाती । चेहरे—मोहरे से स्त्री बहुत हिसाब नहीं रखती । इसलिए कभी—कभी आश्चर्य होता है, सुन्दरतम स्त्री कुरूप आदमी को खोज लेती है । मगर उसकी जेबें भरी होंगी । वह बड़े पद पर होगा । राष्ट्रपति होगा । प्रधान मन्त्री होगा । सुन्दर स्त्री की आकाँक्षा बड़े गहरे में अर्थ की है । क्योंकि वह जानती है अगर अर्थ होगा, तो ही वह खिल पायेगी, तो ही उसका सौन्दर्य निखर पायेगा । धन सुविधा है । पुरुष की आकाँक्षा काम की है । पुरुष अर्थ है । इसे हम समझें । पुरुष महत्वाकाँक्षा है, वह अर्थ है । वह धन तो कमा सकता है । धन तो उसकी मुट्ठी की बात है । हाथ का मैल है । लेकिन सुन्दर स्त्री को कैसे कमायेगा ? सुन्दर स्त्री तो हो तो हो, न हो तो सौन्दर्य को पुरुष पैदा नहीं कर सकता । इसलिए उसकी नजर सौन्दर्य पर है । सुन्दर स्त्री हो, तो वह और तेजी से दौड़ कर कमायेगा । आचार्य रजनीश एस धम्मो सनन्तनो–भाग–6 फोटो ओल्ड वुमन ब्यूटीफुल से ली गई है ©खामोशी और दस्तक #Likho पुरुष की आकाँक्षा काम की है । सुन्दर स्त्री की आकाँक्षा बड़े गहरे में अर्थ की है धन—पद की जरूरत है भोगने के लिए । बिना धन के भोगेंगे
Rupam Jha
कतय हेरायल ढेंगा-पानी आ कतय चोरा-नुकी क खेल, कतय गेल ओ धप्पा-धुप्पी आ कतय हेरायल पोसम्पा क रेल, कबड्डीयो नै खेलै आब बच्चा,इ कोन कलजुग भेल, फोने म खेल ताकी लेलक ,छूटल नेना-भुटका क सँझुका मेल, कतय चली गेल माटिक चूल्हा परहक भोजन-भात, ओय भोज्य क वर्णन की करब,अहा!गजबे होय छल स्वाद, चिनबारक चूल्हा-चेकी बिला गेल,भेल गैस-सिलिंडरक साथ, विलुप्त भ गेल सबटा संस्कृति,उफ! कतेक नमहर छैक आधुनिकताक हाथ, डहि गेल सबटा खर क घर,बदैल गेल देहातक हालात, बड़का-बड़का इमारत बनि गेल,बढ़ि गेल सबहक आब बिसात, नै जैत अइछ आब कियो कलम-गाछी,नै रहल ओ पहुलका बात, बूढ़-पुराण सँ लय बच्चा-बुदरुक सब अपने मँ मग्न रहै छैथ,केने रहै छैथ सब क कात, कोनाक नेनाक हड्डी मजगूत हेतै,जँ नै वो अपन मैट पर लोड़ीयैत, नून-रोटी क जगह पिज़्ज़ा-बर्गर ल लेलकै,स्वास्थ्य पर होयत अछि वज्रनिपात, कंसारक चूड़ा-मुरही निपत्ता भेल,फास्ट-फूड लगौने अछि सब पर घात, खेती-पातीं चौपट भ गेल,बदैल गेल सबटा हालात, शहर बनेता गांव क सब मिल,नै जानी की छैन ग्रामीणक जज्बात, शहर बनबैक सपना त नहिये पुरतैन,धोता गाम सँ सेहो हाथ!! गामक वर्णन की करब गाम त होइते अछि अमूल्य(ओना प्रयास केने छी अयि स पहुलका पोस्ट म गांव क वर्णित करै क)मुदा आब बहुत तेजी सँ बहुत किछु बदैल रहल