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Dosti Ibaadat E Khuda
है दुआओं से ... आबाद जिसके, दुआ नहीं जिसकी जाती, कभी खाली!! बंगला आलीशान है फिर कितना मगर, कमरा नहीं कोई, माँ को खाली!! कहना था बस कह दिया ~~~ निशान्त ~~~ बंगला
Ankit Mishra
हर मोड़ पर मिलते है हम दर्द हज़ारो, लगता है इस शहर में अदाकार बहुत है। #NojotoQuote मुखौटे
RAJESHWAR SINGH RAJU
मुखौटा मेरे इर्द-गिर्द अक्सर मंडराते अपनेपन का रौब जमाते मेरे अपने हैं भी कि नहीं मैं नहीं जानता । क्योंकि, लोग आजकल अपना सच छुपाने लगे हैं और वक्त के मुताबिक मुखौटा लगाने लगे हैं । ©RAJESHWAR SINGH RAJU मुखौटे
Manmohan Dheer
लिपे पुते चेहरों के भरम हमारी आँखों से यूँ चिपक गए मुखौटों के हुजूम में हम चौखटों की फितरत भूल गये . धीर मुखौटे
Ramchandra Shukla
दुःख हो या सुख हो,छायी हो उदासी। कर्तव्य हम करें,भूलें न जरा सी। असल रूप ही रखें,मुखौटे सब व्यर्थ हैं। नकल है धोखा,वास्तविक अर्थ है। मन में बनते हैं ,बिगड़ते कई रूप। ईश्वर का मार्ग,सत्य शिव अनूप। जब तक चन्द्रमा,चांदनी की चमक। सूर्य से प्रकाशित,वस्तुओं की दमक। जब मूल न रहेगा,प्रतिबिंब नष्ट होगा। जड़ से सुरक्षित,हर बृक्ष पुष्ट होगा। #स्वरा #SKG रामचन्द्र शुक्ल। मुखौटे
Raone
बड़ा हीं शातिर है मेहबूब मेरा हर काम सोच समझकर अंज़ाम देता है कहीं मेरे बाद सब ना पहचान ले नियत उनकी इसलिए मासूमियत का मुखौटा हरवक्त अपने पास रखता है राone@उल्फ़त-ए-ज़िन्दग़ी मुखौटे
CK JOHNY
आओ अपने मुखौटे आज उतारे अपना असली स्वरूप हम उघाड़े। पर्दे जो जो चढ़े हैं निर्मल रुह पर इक इक कर उन सबको आज उतारें। बात नहीं करे़गे पांच तत्व पच्चीस प्रकृतियों की हम तो उजागर करेंगे ओढ़ी हुई विकृतियों की। मन कुछ मुख कुछ और इस पर करेंगे आज कुछ गौर। कथनी जैसी वैसी करनी करेंगें जब हमने किया है तो हम ही भरेंगें। मुख में राम बगल में छुरी गाँठ बाँध लो बात है ये बुरी। जो पीठ पीछे मुँह पर वही बात करेंगे। निंदा चुगली और नुकताचीनी समझ लें ये बात है बड़ी कमीनी। सरल हृदय से स्पष्ट सही बातें कटे सकून से दिन चैन से रातें। जब इक इक चेहरे पे हैं कितने ही चेहरे मेरे मुँह पर मेरे हैं तेरे मुँह पर हैं तेरे। मतलब में खंड मिश्री हो जायें घी खिचड़ी वरना तोते की तरह ये हरजाई मुँह फेरे। मुख उजल दिल अति काला जीभ अमृत मन विषियर नाग काला। आज मन का फन कुचल डारें। आओ अपने मुखौटे आज उतारें अपना असली रूप हम उघाड़े। बी डी शर्मा चण्डीगढ़ 22.07.2020 मुखौटे
Pankaj Kumar
चैहरे मुखौटे है। मुखोटे ही तो चैहरे है। अंदर का राम जला दिया । कैसे उल्टे पड़े दशहरे हैं। अपनी ही आवाज सुन न पाए। हम पुर्ण रूप से हुए बेहरे है। मन की नदीयां उफान पा न सकी। हम दिखते कितने गेहरें है। ये मुखौटे कोई उतार न ले । लगा दियें लाखों पेहरे है चेहरे ही तो मुखौटे है मुखौटे ही तो चैहरे हैं। ©Pankaj Kumar मुखौटे