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Ek villain
आधी आबादी का सशक्तीकरण एक लक्ष्य मात्र नहीं आपूर्ति समानता सतत विकास शांति और लोकतंत्र के उपलब्ध है कि आप रहता तो नहीं है यदि महिला सशक्तिकरण केवल सेवर दैनिक प्रावधानों वैधानिक नियम और महिलाओं केंद्र की योजनाओं के निर्माण तथा पर्यावरण प्रतिकूल होता है तो गुस्सा वैश्विक पटल पर दर्शकों में खड़ा यह बर्तन कब का समाप्त हो चुका होता महिला सशक्तिकरण समानता की प्राप्ति विशेष पर निर्भर करती है कि भारतीय महिलाओं को सशक्तिकरण एक शब्द मात्र नहीं है आपूर्ति अवधारणा है जिसके मुख्य घटक स्वास्थ्य शिक्षा स्वयं बन और नेतृत्व क्षमता का विकास है स्वास्थ्य शिक्षा महिला ना केवल अपने अधिकारों के प्रति सजग रहती है आपूर्ति एक स्वस्थ पीढ़ी के निर्माण में अपना योगदान भी देती है स्वास्थ्य जीवन के प्रति केवल चिकित्सा सुविधाएं की उपलब्धि से संभव नहीं आई है स्वच्छ वातावरण के निर्माण से संभव है महिलाओं के सबलीकरण का द्वारा स्वच्छता पर आकर खुलता है इस सभ्यता को स्वीकारते 15 2014 के लाल किले की प्राचीर से हुई महिला सशक्तिकरण की ओर से स्वर्ण सुनाई देते हैं खुले में शौच से मुक्ति महिलाओं के स्वास्थ्य और आत्मसम्मान से प्रत्यक्ष रुप से संबंधित है ©Ek villain #समर्थ भारत में आधी आबादी का योगदान होगा #election
Rajesh rajak
एक हसीना थी,कल। एक हसीना है,आज। एक हसीना होगी और हमेशा रहेगी। बगैर हसीना के न तो कोई शायर,कवि लेखक बना है न कभी बनेगा,हसीना का बड़ा महत्व है लेखनी में। हसीना का योगदान
Premsukh
क्या आप जानते हैं कि भारत में एक AC ट्रेन की शुरुआत 1 सितंबर 1928 को हुई थी जिसका नाम था- पंजाब मेल और 1934 में इस ट्रेन में AC कोच जोड़े गए और इसका नाम फ्रंटियर मेल रख दिया गया. उस समय में ट्रेनों को फर्स्ट और सेकेंड क्लास में बांटा गया था, फर्स्ट क्लास में केवल अंग्रेजों को सफर करने की अनुमति थी। इसी कारण इसे ठंडा रखने के लिए AC बोगी में बदला गया था। अंग्रेजों ने अपनी सुविधा के लिए ये सिस्टम बनाया था, जिसमें AC की जगह पर बर्फ की सिल्लियों का इस्तेमाल किया जाता था, जो फ्लोर के नीचे रखी जाती थी. यह ट्रेन 1 सितंबर, 1928 को मुंबई के बैलार्ड पियर स्टेशन से दिल्ली, बठिंडा, फिरोजपुर और लाहौर होते हुए पेशावर (अब पाकिस्तान में) तक शुरू हुई थी, लेकिन मार्च 1930 में इसे सहारनपुर, अंबाला , अमृतसर और लाहौर की ओर मोड़ दिया गया। इसमें पहले बर्फ की सिल्लियों का इस्तेमाल करके बोगी को ठंडा रखने का काम नहीं किया जाता था, लेकिन बाद इसमें AC वाला सिस्टम जोड़ दिया गया. इस ट्रेन का नाम फ्रंटियर मेल था, जो बाद यानी 1996 में गोल्डन टेम्पल मेल के नाम से संचालित की जाने लगी। फ्रंटियर मेल को ब्रिटीश काल की सबसे लग्जरी ट्रेनों में से एक कहा जाता था। पहले यह भाप से 60 किमी की रफ्तार से चलती थी, लेकिन अब इसे इलेक्ट्रिक से चलाया जाता है. टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, यह ट्रेन 1,893 किमी की दूरी तय करती है, 35 रेलवे स्टेशनों पर रुकती है और अपने 24 डिब्बों में लगभग 1,300 यात्रियों को ले जाती है। यह टेलीग्राम ले जाने और लेकर आने के लिए भी चलाई जाती थी. इस ट्रेन को करीब 95 साल हो चुके हैं। ©Premsukh भारत में रेलवे का विकास
Dipika Saini
हमारी उपलब्धियों में दूसरों का भी योगदान होता है.... क्योंकी... समुद्र में भले ही पानी अपार हैं...पर सच तो यही है कि वह नदियों का उधार होता है... Radhe Radhe💥💫✍✍ ©Dipika Saini हमारी उपलब्धियों में दूसरों का भी योगदान होता है..........
LataVinodNowal
कविता के क्षेत्र में महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान है
J P Lodhi.
श्रमिक का योगदान श्रमिक के श्रम से यह जमाना ठाठ से खड़ा, ऊंची ऊंची इमारतों पर इठलाता रहा बड़ा। श्रमिक के श्रम से चमचमा रही लंबी सड़कें, श्रमिक के खून पसीने से बांध भरे बड़े बड़े। इनके बल पर ही चलते कल कारखाने सारें, इनके दम पर ही मोड़ें हमने नदियों के धारे। विकास क्रांति की बलि चढ़ें कितने श्रमिक, निर्माण मार्ग पर पीड़ा वेदना सही मार्मिक। विकाश की धारा में श्रम बहाया तन मन से, रक्त से बहते घावों को भरा बिना मरहम से। रोटी कपड़े के लिए खूब भाया खून पसीना, श्रमदान से न मिल पाया इन्हे सुख कभी ना। जग की नज़रों ने किया सदैव इन्हे अनदेखा, भूख,निर्धनता,बीमारी का नहीं लिखा लेखा। इनके हक के धन को भी गैरो को है परोसा, ईश्वर से भी उठ चुका अब तो इनका भरोसा। इनको परिश्रम का मिलता सही मोल नहीं है, जबकि शारीरिक श्रमसे अमूल्य कुछ नही है। JP lodhi #श्रमिक का योगदान #Nojoto