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राजा साहब
घर बहुत पहले छूट गया था मैं अपने घर से बहुत दूर हूं, कुछ बनने के लिए शहर आया था यहां पर मैं मजदूर हूं।। ©राजा साहब #श्रमिकदिवस #श्रमिक #श्रमिक_दिवस
Chitra Gupta
*श्रमिक दिवस* हां मैं भी श्रमिक हूं श्रमदान करती हूं अपने परिश्रम से चारदीवारी को सुंदर घर और मकान करती हूं नाहक ही कोसती हैं दुनिया इन हथेलियों को इन्ही हाथों से मैं सुबह को शाम करती हूं घिस घिस कर खुद को हर रोज थोड़ा थोड़ा अपनों के खुशियों के नाम करती हूं मैं स्त्री हूं अपने कर्मों पर नाज है मुझे मेरे अथक प्रयासों से ही मेरे अपनों का कल और आज है कई हिस्सों में बटकर भी दुनिया को एक साथ करती हूं हां मैं भी श्रमिक हूं श्रमदान करती हूं...। ©Chitra Gupta #श्रमिक दिवस
DR. LAVKESH GANDHI
हम अपनी मेहनत से औरों के भाग्य बदलते हैं हम खून पसीना बहा कर भी भूखे सो जाते हैं हम श्रमिक हैं जो फैक्ट्रीयों की शान बढ़ाते हैं हम श्रमिक अपने पसीने से फ़सल उगाते हैं ©DR. LAVKESH GANDHI श्रमिक #श्रमिक दिवस की हार्दिक शुभकामनायें #Labourday
DR. LAVKESH GANDHI
हम अपनी मेहनत से औरों के भाग्य बदलते हैं हम खून पसीना बहा कर भी भूखे सो जाते हैं हम श्रमिक हैं जो फैक्ट्रीयों की शान बढ़ाते हैं हम श्रमिक अपने पसीने से फ़सल उगाते हैं ©DR. LAVKESH GANDHI श्रमिक #श्रमिक दिवस की हार्दिक शुभकामनायें #Labourday
Abhishek kachhwah
है नमन उनको की जो राष्ट्र के निर्माता है , लेके अपनी मजबूरियों को , राह दुर्गम चल पड़े है ईंट ईंट से जोड़ कर जो देते हम सभी को क्षत्र है , धूप के आगोश में , छांव को निकल पड़े है भूख प्यास पीड़ा सह कर जो निरंतर चल रहे है है नमन उनको जो खुद कहें कुछ भी नहीं पर पांव के छाले कह चले है ,, #मजदूर #श्रमिक #lockdown #Nojoto
BhaskarSingh
"व्यथा श्रमिकों की" मन व्यथित हैं श्रमिकों के हालातों को देखकर , जो कुछ पैसे और रोटी की खातिर शहरों में आते हैं परिवारों को छोड़कर , लाक डाउन में हाल बुरा है इनका , कुछ पैदल ही चल दिए घर , कुछ ने पैसे जोड़े थे जो मेहनत से उससे साइकिल खरीद ली है घर जाने को , आंखें नम हो जाती है भुखे बच्चों के संग माताओं को रोता देखकर , परिस्थिति बहुत भयावह है , पर इनको बिमारी का ना भय है , यह तो मारे हैं ग़रीबी और भुख के , परिवारों की जिम्मेदारी और अपने बहुत से दुख के , आज खबर आई है कि श्रमिक मर गये है पटरियों पर रेल से कटकर , सो गए थे शायद वो उन्ही पटरियों पर जिम्मेदारी से थक कर , कोरोना महामारी क्या मारेगी उनको , जो गरीबी और भूखमरी से दबे हुए हैं , यह तो मजदूर हैं मजबूरी के बोझ तले दबकर पहले से ही मरे हुए हैं। #alone #गरीब #श्रमिक
Chandan Kumar
घर से रोज निकलते है कुछ सपनों को बुनने नहीं होते अपने फिर भी लगते है अपने । अमीरों की चार दीवारें या नेताओं की कुर्सी सभी को हम बड़ा बनाते मेहनत से अपने । #श्रमिक की जुबानी #Labourday