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Akhilesh Mishra

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राजा साहब

घर बहुत पहले 
छूट गया था मैं 
अपने घर से
 बहुत दूर हूं,
कुछ बनने के 
लिए शहर आया
 था यहां पर
 मैं मजदूर हूं।।

©राजा साहब #श्रमिकदिवस 
#श्रमिक #श्रमिक_दिवस

Chitra Gupta

#श्रमिक दिवस

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Devkaran Gandas

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DR. LAVKESH GANDHI

श्रमिक #श्रमिक दिवस की हार्दिक शुभकामनायें #Labourday

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हम अपनी मेहनत से औरों के भाग्य बदलते हैं
हम खून पसीना बहा कर भी भूखे सो जाते हैं
हम श्रमिक हैं जो फैक्ट्रीयों की शान बढ़ाते हैं
 हम श्रमिक अपने पसीने से फ़सल उगाते हैं

©DR. LAVKESH GANDHI
  श्रमिक
#श्रमिक दिवस की हार्दिक शुभकामनायें 

#Labourday

DR. LAVKESH GANDHI

श्रमिक #श्रमिक दिवस की हार्दिक शुभकामनायें #Labourday

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हम अपनी मेहनत से औरों के भाग्य बदलते हैं
हम खून पसीना बहा कर भी भूखे सो जाते हैं
हम श्रमिक हैं जो फैक्ट्रीयों की शान बढ़ाते हैं
 हम श्रमिक अपने पसीने से फ़सल उगाते हैं

©DR. LAVKESH GANDHI श्रमिक
#श्रमिक दिवस की हार्दिक शुभकामनायें 

#Labourday

Puneet Kashyap(PK)

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Abhishek kachhwah

है नमन उनको की जो  राष्ट्र के निर्माता है ,
लेके अपनी मजबूरियों  को , राह दुर्गम चल पड़े है 
 ईंट ईंट से जोड़ कर जो देते  हम सभी को  क्षत्र है ,
धूप के आगोश में ,  छांव को निकल पड़े है 
 भूख प्यास पीड़ा सह कर जो निरंतर चल रहे है 
 है नमन उनको जो खुद कहें कुछ भी नहीं 
पर पांव के छाले कह चले है  ,, #मजदूर #श्रमिक #lockdown  #Nojoto

BhaskarSingh

                         
   "व्यथा श्रमिकों की"
मन व्यथित हैं श्रमिकों के हालातों को देखकर ,
जो कुछ पैसे और रोटी की खातिर शहरों में आते हैं परिवारों को छोड़कर ,
लाक डाउन में हाल बुरा है इनका ,
कुछ पैदल ही चल दिए घर ,
कुछ ने पैसे जोड़े थे जो मेहनत से
उससे साइकिल खरीद ली है घर जाने को ,
आंखें नम हो जाती है भुखे बच्चों के संग माताओं को रोता देखकर ,
परिस्थिति बहुत भयावह है ,
पर इनको बिमारी का ना भय है ,
यह तो मारे हैं ग़रीबी और भुख के ,
परिवारों की जिम्मेदारी और अपने बहुत से दुख के ,
आज खबर  आई है कि श्रमिक मर गये है पटरियों पर रेल से कटकर ,
सो गए थे शायद वो उन्ही पटरियों पर जिम्मेदारी से थक कर ,
कोरोना महामारी क्या मारेगी उनको ,
जो गरीबी और भूखमरी से दबे हुए हैं ,
यह तो मजदूर हैं मजबूरी के बोझ तले दबकर पहले से ही मरे हुए हैं। #alone #गरीब #श्रमिक

Chandan Kumar

घर से रोज निकलते है कुछ सपनों को बुनने
नहीं होते अपने फिर भी लगते है अपने ।

अमीरों की चार दीवारें या नेताओं की कुर्सी
सभी को हम बड़ा बनाते मेहनत से अपने ।

#श्रमिक की जुबानी #Labourday
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