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Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी सदियों से चाँद हमारा, मामा यू ही नही था धरती माँ का भाई बनकर रहा था करवा चौथ का व्रत चाँद के वजूद पर ही था रिश्ते तो हम हजारो वर्षो से इससे निभा रहे थे हर कविता कहानियों में उपमा इसकी गा रहे थे दूर रहकर भी अपनापन दिखा रहे थे मगर आज हमने इसके यहाँ दस्तक देकर इतिहास रचा है खंगालेंगे और खोजेगे राज इसके हर त्योहार और छुट्टियो में चंदा मामा के घर जायेगे विश्व मे भारत की ध्वज पताका सबसे पहले फहरायेंगे प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #chandrayaan3 हर त्योहार और छुट्टियों में चंदा मामा के घर अब जायेगे #nojotohindi
KHEMPAL SISODIYA MOTIVATIONAL
Praveen Storyteller
Vijay Ratan
Tarique 'शादाब'
ये जो मोबाइल से दिल लगाए फिरते हो आज कल हर जगह सर झुकाए फिरते हो छुट्टियों में घर आना तुम्हारा क्या मालूम चला तुम तो बस फेसबुक पे रिश्ते निभाए फिरते हो #NojotoQuote ये जो मोबाइल से दिल लगाए फिरते हो आज कल हर जगह सर झुकाए फिरते हो छुट्टियों में घर आना तुम्हारा क्या मालूम चला तुम तो बस फेसबुक पे रिश्ते निभ
Aditya Fogat
अच्छा सुनो ! कुछ साल पहले हम बच्चो की छुट्टियों में एक दिन के लिए गांव गए थे ना, तब माँ के साथ एक फोटो ली थी, वो तुम्हारे फ़ोन में होंगी, भेजना जरा status लगा दूँ 🤔 :- Happy Mother's Day मेरी प्यारी माँ ❤❤❤ अच्छा सुनो ! कुछ साल पहले हम बच्चो की छुट्टियों में एक दिन के लिए गांव गए थे ना, तब माँ के साथ एक फोटो ली थी, वो तुम्हारे फ़ोन में होंगी, भेज
Aditya Fogat
अच्छा सुनो ! कुछ साल पहले हम बच्चो की छुट्टियों में एक दिन के लिए गांव गए थे ना, तब माँ के साथ एक फोटो ली थी, वो तुम्हारे फ़ोन में होंगी, भेजना जरा status लगा दूँ 🤔 :- Happy Mother's Day मेरी प्यारी माँ ❤❤❤ अच्छा सुनो ! कुछ साल पहले हम बच्चो की छुट्टियों में एक दिन के लिए गांव गए थे ना, तब माँ के साथ एक फोटो ली थी, वो तुम्हारे फ़ोन में होंगी, भेज
Dear diary
संडे का इक ख्याल । बालकनी से गार्डन में खेलते हुए नये नये बच्चो को देख इक ख्याल मन में आया । इस बढ़ती उम्र और भागती ज़िन्दगी में ।। नाना ,मामा का घर कितना दूर छूट गया । गर्मियों की छुट्टियों में बिताए वो दिन कहा भूल गया ।। सन्डे को इस ख्याल ने मुझको घेर लिया । में वो दिन केसे भूल गया ।। संडे का इक ख्याल । बालकनी से गार्डन में खेलते हुए नये नये बच्चो को देख इक ख्याल मन में आया । इस बढ़ती उम्र और भागती ज़िन्दगी में ।। नाना ,
Kalpana Agarwal
यार वो अपना जो रहते भले ही काफी दूर था मगर छुट्टियों में मिलने ज़रूर आ जाया करता था हर बार दोबारा फिर लौट आने के वादे किया करता था आज बड़े दिन हुए वो दोबारा नहीं लौटा, बहुत कोशिश की उसे तराशने की मगर जो सपनो में था वो हकीकत कैसे बन जाता मेरी यार वो अपना जो रहते भले ही काफी दूर था मगर छुट्टियों में मिलने ज़रूर आ जाया करता था हर बार दोबारा फिर लौट आने के वादे किया करता था आज बड़े दि
Ashish Kanchan
निमास की वो एक शाम हाल-फिलहाल में ना बात हुई, हुए थे अरसे उसका ज़िक्र होके गुज़रे थे कभी एक अंजान कस्बे से, जब हम कुछ बेफ़िक्र होके घुप्प अँधेरे में चमचमाते दिख रहे थे झूले, लिए हज़ारों बल्ब की लटें निमास लगी थी वहाँ, जो खींच लायी उस कच्चे इश्क़ की सलवटें वक़्त से हटी धूल तो वो मिला, जो दिल था कहीं पीछे भूल आया ज़ुल्फ़ें गिराके एक तरफ़ वो चेहरा, फिर इन रातों को करने वसूल आया शुरु हुई थी कहानी ऐसी ही एक शाम, जब हाथ से फिसली कुल्फ़ी ज़मीन में जा धंसी थी पास खड़े अपने नाना के साथ, वो इस हादसे पे बड़ी बेदर्द होके हंसी थी कमज़ोर दिल न थे, पर चौंका गया बगल की दुकान पे छर्रे वाली बंदूक का धमाका और उसपे बड़ी बेइज़्ज़ती से चुभा, भरे बाज़ार गूँजता वो उसका ठहाका चेहरे पे नज़र पड़ी तो, कुल्फ़ी से भी ठंडी जिस्म में एक सिहरन दौड़ी थी मोहल्ले की अपनी मेघा थी वो, जिसकी एक झलक को कभी कई शामें निचोड़ी थीं नाना से कहके एक और कुल्फ़ी ख़रीदे, उसके कदम पास आके जब कुछ रुके 2 रुपये की कुल्फ़ी वाली, ये बेशक़ीमती हरक़त देख हम तो थे कबके बिक चुके फिर क्या, बाकी शाम रही साथ गुब्बारों का पीछा करते, गुड़िया के बाल खाते कभी वो डरे जो किसी झूले की ऊँचाई से, तो आगे बढ़ बहादुरी की शेख़ी बघारते जज़्बातों को टटोला भी ना था, ना की तैयारी कैसे शुरू करेंगे पढ़ना इश्क़ की क़िताब ख़्वाबों में भी ना सोचा जो, अकेले निमास घूमने का वो फ़ैसला हुआ इतना क़ामयाब। बचपन में गर्मियों की छुट्टियों में अपने नाना के यहाँ जाते थे। वहाँ साल में दो बार नुमाइश लगती थी, जिसे हमारे नाना निमास बोलते थे। निमास में