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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
White ग़ज़ल:- वो ख्वाबों की दुनिया सजाने लगे थे हमें देखने आने जाने लगे थे ।। छुपाने पड़े थे हमें भी तो आँसूँ । सनम दूर हमसे जो जाने लगे थे ।। नज़र जब कभी इत्तफाकन मिली तो उन्हें देख कर मुस्कराने लगे थे ।। यहाँ चाँद सबको कहाँ मिल सका है । चरागों से जीवन बिताने लगे थे ।। कभी चैन हमको न आया किसी पल । सुनो हाल दिल जब छुपाने लगे थे ।। अभी भी तरसती है आँखें उन्ही को । जिन्हें दिल में अपने बसाने लगे थे ।। हुए दूर हमसे वही आज फिर से । जिन्हें ज़िन्दगी हम बनाने लगे थे ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल:- वो ख्वाबों की दुनिया सजाने लगे थे हमें देखने आने जाने लगे थे ।। छुपाने पड़े थे हमें भी तो आँसूँ । सनम दूर हमसे जो जाने लगे थे ।। नज़र जब
ग़ज़ल:- वो ख्वाबों की दुनिया सजाने लगे थे हमें देखने आने जाने लगे थे ।। छुपाने पड़े थे हमें भी तो आँसूँ । सनम दूर हमसे जो जाने लगे थे ।। नज़र जब #शायरी
read moreArora PR
White कितनी बड़ी समस्या है यहां पर मरने वालों की कि दो गज ज़मीन के लिए. तरसती है शहरी लाशें अगर तुम चाहो तो यहाँ गांव. में आकर देह त्यागो अपनी यहां तुम्हे अपनी कब्र के लिए मिल सकती है पर्याप्त जगह ©Arora PR तरसती लाशें
तरसती लाशें #कविता
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