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Rabindra Prasad Sinha
White बहुत वक्त बीत चुका है पर अभी भी बचा है वक्त अभी भी लकवाग्रस्त ऊँगलियों में बची है ताकत अभी भी बंध सकती है मुठ्ठी आज की सुबह फूलों की प्रार्थना है यह ©Rabindra Prasad Sinha #अ आ
Rabindra Prasad Sinha
White चाँद का मुँह ढेड़ा है सूरज का चेहरा मलीन है हवा की तासीर गरम है जल ठहरा हुआ है सड़ रहा है मुँहजोर झूठ पूछ रहा है सच से "तुम्हारी वल्दियत क्या है?" यह किसकी मृत्यु है ईश्वर या मनुष्य की? ©Rabindra Prasad Sinha #अ आ
Rabindra Prasad Sinha
White याद की तितली और मैं हूँ उसकी खुशबू और मैं हूँ बरबस भर आती हैं आँखें उसका खत है और मैं हूँ हाल मेरा पूछा है उसने रात अकेली और मैं हूँ उपवन से जो बिछड़ गया वही फूल है और मैं हूँ हिज्र का दरिया नीला नीला इश्क समंदर और मैं हूँ ©Rabindra Prasad Sinha ्#अ आ
्अ आ #शायरी
read moreRabindra Prasad Sinha
पहले वे आये समाजवादियों के लिये और मैं कुछ नहीं बोला क्योंकि मैं समाजवादी नहीं था फिर वे आये यहूदियों के लिये और मैं कुछ नहीं बोला क्योंकि मैं यहूदी नहीं था फिर वे मेरे लिये आये और तब तक कोई नहीं था जो मेरे लिये बोलता @पास्टर मार्टिन निमोलर हिटलर के समकालीन कवि ©Rabindra Prasad Sinha #अ आ
Rabindra Prasad Sinha
White 'उसने' तो इंसान बनाया इंसान ने फिर इंसानों को हिन्दू बनाया, मुस्लिम बनाया, इसाई बनाया हिन्दू ने फिर शैव बनाया, वैष्णव बनाया मुस्लिम ने फिर शिया बनाया, सुन्नी बनाया इसाई भी क्यों पीछे रहते कैथोलिक बनाया, प्रोस्टेंट बनाया 'उसने' तो बस 'एक' बनाया जोड़, घटाव और गुणा,भाग तो इंशा ने बनाया इंशा ने ही बनाया ©Rabindra Prasad Sinha #अ आ
Rabindra Prasad Sinha
वह चाय जिसे पिया था हम दोनों ने एक ही कप में घूँट घूँट, चुभलाते हुए महुए सी मादक और रसीली थी आज जब तुम नहीं हो पी रहा हूँ उसी कप में क्योंकि मेरे और तुम्हारे जीवन के सुंदरतम क्षणों का साक्षी है यह ©Rabindra Prasad Sinha #अ आ
Rabindra Prasad Sinha
White चाहो गर आना अनावृत आना खुशबू की तरह चाँदनी की तरह नदी और पहाड़ की तरह और पूछना पड़े अगर मेरा पता मत आना कोई अपने घर का पता पूछता है क्या ©Rabindra Prasad Sinha #अ आ
Rabindra Prasad Sinha
White जब मैं पेड़ो को पानी देता हूँ तब बदल जाता हूँ हरे भरे जंगल में जब मैं नदी में डूबकी लगाता हूँ तब बहने लगती है नदी मेरे अंतस में जब मैं छूता हूँ पहाड़ को तब जान पाता हूँ कठोरता में रची बसी कोमलता को प्रेम ने बदल दिया है इतना मुझे कि मैं धृणा से भी करना चाहता हूँ प्रेम ©Rabindra Prasad Sinha #अ आ
Rabindra Prasad Sinha
White पेड़ चाहिए छाया नहीं, लकड़ी के लिए पहाड़ चाहिए औषधि नहीं, पत्थर के लिए नदी चाहिए पानी नहीं, रेत के लिए खेत चाहिए धान्य नहीं, धन के लिए हमने लालसा के वशीभूत मार डाले पेड़ मार डाले पहाड़ मार डाली नदियाँ मार डाले खेत मार डाली अपनी खुशियाँ अपना सुख ©Rabindra Prasad Sinha #अ आ