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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

उडियाना छन्द :- स्वाद में सब जन बहे , जीव हत्या करें । और देते ज्ञान हैं , पाप क्यों सिर धरे ।। जानते है सब यहीं , पाप है ये बड़ा । देखता ह #कविता

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उडियाना छन्द :-
स्वाद में सब जन बहे , जीव हत्या करें ।
और देते ज्ञान हैं , पाप क्यों सिर धरे ।।
जानते है सब यहीं , पाप है ये बड़ा ।
देखता हूँ फिर वहाँ , घेरकर सब खड़ा ।।

मारकर सब डुबकियां ,  पाप धोने चले ।
मातु गंगा सोचती , तनय कैसे पले ।।
पीर इनकी सब मिटे,  और आगे बढ़े ।
राह जीवन की सभी , स्वयं चलकर गढ़े ।।

कष्ट सारे झेलकर , चक्षु  जिनके खुले ।
राम-सिय जपते रहे , श्वास जब तक चले ।।
लौट जायें वो सभी, सुगम पथ पर कहीं ।
विनय करता यह प्रखर , आप ठहरे वहीं ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR 

उडियाना छन्द :-
स्वाद में सब जन बहे , जीव हत्या करें ।
और देते ज्ञान हैं , पाप क्यों सिर धरे ।।
जानते है सब यहीं , पाप है ये बड़ा ।
देखता ह

Anjali Singhal

"जाने क्या रंग लाएँगे ये चाहतों के सिलसिले, जो तेरे और मेरे दर्मियां हैं पले; दिल की वादियों में सुबह जो एहसास की खिले, यादों की शबनम में भि #Poetry #AnjaliSinghal

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shamawritesBebaak_शमीम अख्तर

#ramadan 10 रमज़ान यौमे विसाल उम्मुल मोमिनीन सैय्यदा ख़दीजातुल कुबरा{ स.अलैहा }* टुकड़ो पे तेरे सारे मुसलमान पले है* भूलेगा न इस्लाम ये एहसान #Live #writersofindia #Eid #quotrs #shamawritesBebaak

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मुश्किलों में बड़ी पले हम हैं । आज भी होंठ ये सिले हम हैं ।। अपनी तकदीर से गिले कम हैं । क्योंकि पहले नहीं मिले हम हैं ।। #शायरी

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मुश्किलों में बड़ी पले हम हैं ।
आज भी होंठ ये सिले हम हैं ।।

अपनी तकदीर से गिले कम हैं ।
क्योंकि पहले नहीं मिले हम हैं ।।

माँगने से कहाँ मिली रोटी ।
उसकी खातिर देखो चले हम हैं ।।

इतनी आसान थी नहीं मंज़िल ।
देख लो ऐड़ियाँ मले हम हैं

तुम क्या जानो कशिश मुहब्बत की ।
चाँदनी रात में मिलें हम हैं ।।

हाथ जब गैर का थामा उसने ।
क्या कहें किस तरह जले हम हैं ।।

पी गये अश्क़ हम ज़फ़ाओ के ।
इतना देखो प्रखर भले हम हैं ।।

०२/०३/२०२४    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मुश्किलों में बड़ी पले हम हैं ।

आज भी होंठ ये सिले हम हैं ।।


अपनी तकदीर से गिले कम हैं ।

क्योंकि पहले नहीं मिले हम हैं ।।
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